Railway News: एक्सप्रेस ट्रेनों में जनरल कोचों की कमी ने बढ़ाई यात्रियों की मुश्किलें, टॉयलेट में सफर करने को मजबूर हैं लोग
एक्सप्रेस ट्रेनों में जनरल और स्लीपर की जगह वातानुकूलित कोच लग रहे हैं। ऐसे में आम यात्रियों को सीट नहीं मिल रही है। जनरल कोचों में पैर रखने की जगह नहीं मिल रही तो लोग टायलेट में सफर करने को मजबूर हैं। नई व्यवस्था में अधिकतम 22 में 18 एसी बोगी लगेंगी। स्लीपर व जनरल के सिर्फ दो-दो कोच लगेंगे।
प्रेम नारायण द्विवेदी, गोरखपुर। एक्सप्रेस ट्रेनों में जनरल कोचों की कमी ने आम यात्रियों की मुश्किलें बढ़ा दी है। लंबी दूरी की ट्रेनों के रेक में साधारण और स्लीपर श्रेणी की जगह वातानुकूलित (विशेषकर एसी थर्ड) कोच लगने लगे हैं। पूर्वोत्तर रेलवे में पिछले एक साल में करीब 40 एक्सप्रेस ट्रेनों की 60 रेक में एसी के 100 से अधिक कोच लग गए, जिसमें एसी थर्ड के ही 75 से अधिक हैं। शेष एसी टू और फर्स्ट के लगे हैं। वहीं जनरल और स्लीपर के कोच लगातार घटते जा रहे हैं। ऐसे में आम यात्रियों को जनरल कोचों में पैर रखने की जगह नहीं मिल रही तो लोग टायलेट में सफर करने को मजबूर हैं।
छठ पर्व के दौरान पूर्वांचल और बिहार के लोगों की परेशानी और बढ़ गई है। धक्कामुक्की नियति बनती जा रही है। नई व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक ट्रेन की रेक में अधिकतम 22 में से कम से कम 18 एसी कोच लगाए जाएंगे। एसी थर्ड के अधिकतम 14 कोच होंगे। एसी इकोनामी कोचों पर विशेष जोर रहेगा। एसी इकोनोमी के करीब 45 और कोच आए हैं, उन्हें जल्द अन्य ट्रेनों में लगाया जाएगा। स्लीपर और साधारण श्रेणी के सिर्फ दो-दो कोच ही लगेंगे। रेलवे बोर्ड का दावा है कि ट्रेनों में अधिक एसी कोच लगने से यात्रियों को सहूलियत मिलेगी। ट्रेनों की रफ्तार भी बढ़ जाएगी।
वर्तमान में ट्रेनों की गति तो नहीं बढ़ी, लेकिन आम यात्रियों की दुश्वारियां जरूर बढ़ गईं। पूर्वोत्तर रेलवे सहित क्षेत्रीय रेलवे ने बोर्ड के नए नियमों और शर्तों के आधार पर ट्रेनों का संचालन शुरू कर दिया है। दिल्ली रूट पर गोरखपुर से प्रतिदिन चलने वाली 12555 गोरखधाम में जनरल के नौ कोच लगते थे, अब घटकर तीन हो गए हैं। एसी थर्ड के दस व सेकेंड एसी के दो और फर्स्ट के एक कोच तथा स्लीपर के चार कोच लग रहे हैं। गोरखपुर-आनंदविहार हमसफर में 20 कोच सिर्फ एसी थर्ड के लगते हैं। सप्ताह में एक दिन गुरुवार को जाने वाली 15057 गोरखपुर-आनंदविहार एक्सप्रेस में भी जनरल के चार ही कोच लगते हैं।
गोरखपुर मंडल के दो करोड़ की आबादी के लिए गोरखधाम एक्सप्रेस में जनरल की सिर्फ 300 सीटें मिलती हैं। जबकि, रोजाना हजारों लोग आवागमन करते हैं। गोरखपुर रूट से होकर दिल्ली जाने वाली वैशाली, बिहार संपर्क क्रांति, सत्याग्रह, सप्तक्रांति आदि एक्सप्रेस ट्रेनों की स्थिति भी यही है। ट्रेनों में स्लीपर और जनरल बोगियों के घटने के साथ ही लोगों की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं।
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जानकारों का कहना है कि जब आरक्षित कन्फर्म टिकट नहीं मिलता है तो लोग जनरल की तरफ भागते हैं, लेकिन जनरल कोचों में भी सीटें नहीं मिल पातीं। कुछ जान जोखिम में डालकर आपातकालीन खिड़की से जनरल कोचों में प्रवेश करते हैं तो कुछ जब खड़ा होने की जगह नहीं पाते तो सफर तय करने के लिए टायलेट में ही घुस जाते हैं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर कब तक।
जनरल कोच के साथ घटते जा रहे लोकल यात्री
ट्रेनों में जनरल कोचों की कमी व सीट नहीं मिलने के चलते लोकल व जनरल टिकट के यात्री भी घटते जा रहे। कोविड काल से पहले गोरखपुर जंक्शन से प्रतिदिन 35 से 40 हजार जनरल टिकट बुक होते थे। त्योहारों में यह संख्या 50 हजार तक पहुंच जाती थी। आज यह संख्या अधिकतम 20 से 25 हजार पर सिमट कर रही गई है। पैसेंजर ट्रेनों का किराया भी एक्सप्रेस का लगने लगा है।