Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

अनोखा है गोरखपुर का तिब्बती बाजार, तीन दशक से लोगों के दिलों पर कर रहा राज- यहां ऊनी कपड़ों का है भंडार

गोरखपुर का तिब्बती बाजार ठंड के कपड़ों के लिए काफी मशहूर है। यहां हर साल नवंबर से फरवरी तक लोगों का तांता लगा रहता है। ग्राहकों की हर डिमांड को पूरी करने में यह बाजार खरा उतरा है। एक बार फिर से बाजार में रौनक बढ़ गई है।

By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandUpdated: Wed, 30 Nov 2022 07:59 AM (IST)
Hero Image
तिब्बती बाजार ऊलेन कपड़े देखते ग्राहक। -जागरण

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। फैशन का संसार। विकल्प बेशुमार। ऐसा है तिब्बतियों के ऊनी कपड़ों का बाजार। जो एक बार फिर परंपरागत अंदाज में सज चुका है, लोगों के दिलों में बस चुका है। गांव से लेकर शहर तक के ग्राहकों की भीड़ उमड़ रही है। युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक और युवतियों से लेकर महिलाओं तक की हर डिमांड पूरी हो रही है। बच्चों के लिए भी पर्याप्त ऊनी कपड़े भी बाजार में मौजूद होते हैं। शहर में इस बाजार की साख यूं ही नहीं है। तीन दशक से भी ज्यादा समय से यह ग्राहकों की मांग पर खरा उतर रहा है। माल और शापिंग कांप्लेक्स के दौर में भी खुद की उपयोगिता साबित कर रहा है। कहने की जरूरत नहीं कि टाउनहाल मैदान में जाड़े के मौसम में मात्र चार महीने का यह बाजार गोरखपुरियों की जरूरत बन गया है। 

नवंबर में आते हैं फरवरी में जाते हैं

तिब्बत बाजार हर बार नवंबर के पहले सप्ताह में सजना शुरू हो जाता है। बीच नवंबर तक यह पूरे रौ में आ जाता है। फरवरी के अंत तक इसकी रौनक बनी रहती है क्योंकि उसके बाद उनके अपने मूल स्थान पर लौटने का सिलसिला शुरू हो जाता है।

वापसी से पहले बन जाती है अगले वर्ष की योजना

अलग-अलग शहरों और प्रदेशों से आने के बावजूद हर वर्ष निर्धारित समय से ऊनी कपड़ों का तिब्बती बाजार सज जाता है क्योंकि इसकी पुख्ता व्यवस्था है। फरवरी में वापसी से पहले अगले वर्ष नवंबर में लौटने की योजना बना ली जाती है। सर्वसम्मति से वह दो नाम तय कर लिए जाते हैं, जिन्हें पहले आकर बाजार सजाने की सरकारी औपचारिकता पूरी कर लेनी होती है। उनके ग्रीन सिग्नल के बाद भी बाकी दुकानदारों के आने का सिलसिला शुरू हो जाता है।

किराये पर लेते हैं कमरा, बनाते खुद खाना

चूंकि तिब्बती दुकानदारों को सपरिवार चार महीने तक रहना होता है, ऐसे में रिहाइश का सभी पुख्ता इंतजाम करते हैं। कोई कमरा किराये पर लेकर रहता है तो चंद्रलोक लाज में अपनी व्यवस्था करता है। कोशिश यही होती है कि रहने की व्यवस्था बाजार के आसपास ही हो, जिससे वह दुकान को आसानी से संचालित कर सकें। आमतौर पर सभी दुकानदार हर बार एक ही मकान में रहते हैं। उन्होंने बाकायदा मकान मालिकों से इसे लेकर करार कर रखा है। चूंकि लंबे समय तक उन्हें रहना होता है, इसलिए खाने की इंतजाम भी खुद का करते हैं। सामान साथ लेकर आते हैं और खुद बनाते हैं।

अब नहीं आते बाजार में अराजक तत्व

दुकानदार नेफा बताते अब से पांच-छह वर्ष पहले तक बाजार में हर दिन कुछ अराजक तत्व आ जाते थे। एक निर्धारित रेट होने के बावजूद वह दाम करने का दबाव बनाते थे। बाकायदा धमकी देते थे। कई बार असहज स्थिति हो जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं के बराबर होता। निश्चित रूप से शहर के लोगों में खासकर युवाओं में सभ्यता आई है। समय के साथ गोरखपुर की युवा पीढ़ी सुसंस्कृत हुई है।

क्या कहते हैं दुकानदार

  • महिला दुकानदार यंकी ने कहा कि दो दशक से मैं अपने पति के साथ दुकान इस बाजार में लगा रही हूं। अनुभव बहुत अच्छा है। हर बार पूरी कोशिश होती है कि आधुनिकतम ऊनी कपड़े ग्राहकों को सामने मौजूद रहें। इसमें पूरा परिवार लगता है।
  • महिला दुकानदार चुमला ने बताया कि हमारी कोशिश होती है कि दुकान पर हर वर्ग को लुभाने वाला कपड़ा रहे। ताकि कोई भी ग्राहक अगर दुकान की ओर रुख करे तो वह खाली हाथ वापस न लौटे। हर बार इसमें सफलता मिलती है। इस बार भी मिलने की उम्मीद है।
  • पुरुष दुकानदार तेनजिंग ने बताया कि करीब 30 साल से तिब्बत बाजार में दुकान लगा रहा हूं। ऐसे में यह कह सकता है कि ऊनी कपड़ों में फैशन की शुरुआत करने वालों में हम सबसे आगे है। अपनी इस साख को बनाए रखने के लिए आज भी सतर्क रहते हैं।
  • पुरुष दुकानदार अमीर ने कहा कि हम रहने से लेकर खाने-पीने तक की समुचित व्यवस्था के साथ आते हैं। इसके पीछे मंशा यह होती है कि पूरे चार महीने ग्राहकों को निर्बाध सेवा दे सकें। पूरा परिवार साथ होता है, इसलिए खाने-बनाने में कोई दिक्कत न हो।