अनुमान नहीं, आंकड़े देख वेंटिलेटर से हटाए जाएंगे मरीज; BRD मेडिकल कॉलेज में किया गया अध्ययन
वेंटिलेटर से रोगियों को अनुमान से हटाने की स्थिति में कई बार रोगियों की हालत बिगड़ जाती है जिससे उन्हें दोबारा वेंटिलेटर पर ले जाना पड़ता है। यह स्थिति रोगियों के लिए खतरा उत्पन्न करती है। बीआरडी की अध्ययनकर्ता रेहाना अंसारी के अध्ययन में पाया गया कि फेफड़े व डायाफ्राम के अल्ट्रासाउंड से सही समय व स्थिति की जानकारी मिलेगी।
गजाधर द्विवेदी, गोरखपुर। बीआरडी मेडिकल कालेज के डाक्टरों ने अध्ययन कर वह समय व स्थिति पता कर ली है, जिसके आधार पर वेंटिलेटर से हटाने के बाद रोगियों को कोई खतरा नहीं होगा। पहले अनुमान व अनुभव के आधार पर रोगियों को वेंटिलेटर से हटाया जाता था तो 30-40 प्रतिशत की तबीयत पुनः बिगड़ जाती थी। उन्हें दोबारा वेंटिलेटर पर ले जाना पड़ता था। विशेषज्ञों के अनुसार जितनी बार रोगी वेंटिलेटर पर जाएगा, उसके पहले उसे बेहोश किया जाता है। साथ ही सांस की नली में पाइप डाली जाती है, जितनी बार पाइप डाली जाएगी, उतनी बार सांस की नली को चोट पहुंचती है। इससे उसकी जान को खतरा रहता है।
यूपीआइएसएकान- 2023 में रेहाना अंसारी के अध्ययन को मिला प्रथम पुरस्कार
नया अध्ययन रोगियों के जान के खतरे को कम करेगा। इस अध्ययन को 22 से 24 सितंबर तक कानपुर में आयोजित इंडियन सोसाइटी आफ एनेस्थीसियोलाजिस्ट के उत्तर प्रदेश चैप्टर के कांफ्रेंस (यूपीआइएसएकान-2023) में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है। एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष डा. सुनील कुमार आर्या के निर्देशन में डा. रेहाना अंसारी ने एक साल में 110 रोगियों पर अध्ययन किया।
फेफड़े व डायाफ्राम के अल्ट्रासाउंड से मिलेगी सही समय व स्थिति की जानकारी
फेफड़े का अल्ट्रासाउंड कर उसकी स्थिति जानी गई। साथ ही डायाफ्राम (फेफड़े व पेट के बीच की झिल्ली) का अल्ट्रासाउंड कर उसकी मोटाई और सांस लेने पर डायाफ्राम के ऊपर-नीचे आने की स्थिति पता की गई। इन तीनों का अध्ययन एक साथ भारत में पहली बार करने का दावा किया गया है। 110 में 96 रोगियों को वेंटिलेटर से हटाने पर दोबारा वेंटिलेटर पर ले जाने की जरूरत नहीं पड़ी। प्रयोग 94 प्रतिशत सफल रहा। इन सभी का लंग स्कोर 11 से कम था। फेफड़ों के अल्ट्रासाउंड में बनने वाली ए व बी लाइन से यह स्कोर निकाला गया।
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विशेषज्ञों के अनुसार स्वस्थ व्यक्ति के फेफड़ों में बी लाइन नहीं बनती है। बी लाइन यदि सात से ज्यादा है तो इसका मतलब फेफड़े ज्यादा खराब स्थिति में हैं। इनका डायाफ्राम 18 एमएम ऊपर-नीचे आ रहा था और उसका फ्रैक्शन (मोटाई नापने का फार्मूला) 31 प्रतिशत था। बोलचाल की भाषा में उसकी मोटाई 1.5 मिलीमीटर के आसपास थी। सामान्य व्यक्ति में इसकी मोटाई 1.5 से 3 मिलीमीटर तक होती है।
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क्या कहते हैं डॉक्टर
मेडिकल कालेज के एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष डा. सुनील कुमार आर्या ने कहा कि भारत में पहली बार इन तीनों स्थितियों का अध्ययन एक साथ बीआरडी मेडिकल कालेज में किया गया है। इस अध्ययन के आधार पर रोगियों को सही समय व स्थिति में वेंटिलेटर से हटाने का सूत्र हासिल हुआ है।
मेडिकल कालेज की अध्ययनकर्ता डा. रेहाना अंसारी ने कहा कि रोगियों को दोबारा वेंटिलेटर पर ले जाने से उनकी जान को खतरा रहता है, इसलिए उन्हें हटाने का सही समय जानने के लिए फेफड़ों व डायाफ्राम की स्थिति पर अध्ययन किया गया। अध्ययन 94 प्रतिशत सफल रहा।