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Tikait Rai Shiva Temple: ऐतिहासिक और पौराणिक बिठूर की धरती पर टिकैतराय शिव मंदिर को दमकाने की तैयारी

Tikait Rai Shiva Temple स्वतंत्रता संग्राम के समय आंदोलन का बड़ा केंद्र रहे बिठूर की एक और धरोहर चमकाने की तैयारी चल रही है। यहां स्थित टिकैतराय शिव मंदिर को पुरातत्व विभाग द्वारा सुंदरीकरण के लिए चुना गया है। इसके कारण पर्यटन के नए द्वार खुल सकते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Prabhapunj MishraUpdated: Wed, 14 Dec 2022 11:43 AM (IST)
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बिठूर पत्थर घाट स्थित है टिकैत राव शिव मंदिर

कानपुर, जागरण संवाददाता: स्वतंत्रता संग्राम के समय आंदोलन का बड़ा केंद्र रहे बिठूर की एक और धरोहर चमकाने की तैयारी चल रही है। गंगा के पावन तट पर पत्थर घाट के पास स्थित ऐतिहासिक टिकैत राय शिव मंदिर को सहेजने की दिशा में पर्यटन विभाग ने कदम आगे बढ़ा दिया है। यहां 1.29 करोड़ की लागत से फसाड लाइटें लगाई जाएंगी, जो मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगा देंगी। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

इस धरोहर को गोद लेने की योजना

राज्य पुरातत्व निदेशालय ने एडाप्ट ए हेरिटेज योजना के दूसरे चरण में प्रदेश की 10 धरोहरों का चयन किया है। इसमें बिठूर का टिकैतराय मंदिर भी शामिल है। इसे महाकालेश्वर मंदिर या बारादरी के नाम से भी जाना जाता है। योजना के तहत इस धरोहर को सहेजने के लिए गोद लिया जा सकता है। इसके लिए स्मारक मित्र के साथ पांच साल का सहमति पत्र साइन किया जाएगा। इसी क्रम में अब राज्य पर्यटन विभाग मंदिर का सुंदरीकरण कराने जा रहा है। पर्यटन अधिकारी अर्जिता ओझा ने बताया कि पूरी प्रक्रिया लखनऊ से हो रही है।

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रामायण की रचना और लक्ष्मीबाई की धरती बिठूर

मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में अवध के नवाब गाजीउद्दीन हैदर के मंत्री राजा टिकैतराय ने कराया था। बलुआ मिट्टी के पत्थरों से निर्मित मंदिर को चारों कोनों से देखने पर हाथी के मस्तक दिखाई पड़ते हैं। सूर्य की किरणें श्याम रंग के शिवलिंग पर पड़ते ही अलौकिक छटा बिखेरती हैं। उत्तर दिशा में 10 फीट लंबा पत्थर का त्रिशूल है।

कानपुर से सटे और गंगा के तट पर बसे बिठूर में ही झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का बचपन बीता है। स्वत्रंता संग्राम के प्रमुख किरदार नानाराव और तात्या टोपे यहां अपनी योजना बनाते थे। नानाराव पेशवा के महल के अवशेष वीरता की कहानी बयां करते हैं। ब्रह्म खूंटी और ब्रह्मावर्त घाट ब्रह्मा से जुड़ाव बताते हैं। वाल्मीकि आश्रम यहीं है और माना जाता है कि यहीं रामायण की रचना हुई। ध्रुव टीला और पत्थर घाट भी यहीं हैं। यहां कई अन्य स्थल ऐसे हैं जिन्हें अगर चमका दिया जाए तो पर्यटन के नए द्वार खुल सकते हैं।

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