Kushinagar News: सियासी रसूख व मजबूत नेटवर्क के बल पर रफीक ने खड़ा किया काला साम्राज्य, कई राज्यों में चलता है नाम का 'सिक्का'
कुशीनगर के मोहम्मद रफीक उर्फ बबलू ने कोयले और इलायची के धंधे से धन कमाने के बाद सियासत का सहारा लिया और महज तीन साल में समाजवादी पार्टी के लोहिया वाहिनी के प्रदेश महासचिव बन गए। पैसे और सियासी रसूख के बल पर उन्होंने अपना काला साम्राज्य खड़ा कर लिया। जाली नोटों के इस मास्टरमाइंड का तार असम कोलकाता से लेकर बिहार और नेपाल तक फैला हुआ है।
जागरण संवाददाता, कुशीनगर। कोयले व इलायची के धंधे से धन कमाने के बाद मोहम्मद रफीक उर्फ बबलू ने इसका सियासी कनेक्शन जोड़ने को लेकर कदम बढ़ाया तो फिर तीन वर्ष में ही समाजवादी पार्टी के लोहिया वाहिनी का प्रदेश महासचिव बन गया। पैसे से उसकी शान-ओ-शौकत बढी तो सियासी रसूख से उसकी हनक बढ़ाई। फिर इन दोनों की आड़ में उसने अपना काला साम्राज्य खड़ा कर लिया।
चर्चा इस बात की है कि जाली नोटों के इस मास्टर माइंड का तार असम, कोलकाता से लेकर बिहार व नेपाल तक जुड़ा है। इसी मजबूत नेटवर्क के बल पर उसने इतने कम समय में अपराध की दुनिया में लंबी दूरी तय कर ली। रफीक ने राजनीतिक चादर ओढ़ने के बाद अपने धंधे को तेज गति देने का कार्य किया।
पुलिस अधिकारी भी सियासी रसूख के चलते उस पर हाथ डालने से कतराते रहे। दूसरी ओर बड़े राजनीतिक मंचों की साझेदारी ने उसके इस काले चेहरे को छिपाए रखने का कार्य किया। हालांकि, गरीबी से इतनी जल्दी अमीरी की यात्रा को लेकर सवाल जरूर उठते रहे।
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बताया जाता है कि काले धंधे का उसका साथ समाजवादी पार्टी के लोहिया वाहिनी के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ का प्रदेश सचिव नौशाद खान ने उसे सपा से जोड़ने का कार्य किया था। दोनों के गठजोड़ ने अपराध की दुनिया में उनको मजबूती से स्थापित करने का कार्य किया तो काले धंधे से आय का जरिया भी बढ़ता गया।
दोनों के सियासी रसूख की ही देन थी कि अधिकारियों के वहां भी उनके उठने-बैठने का दौर चलता रहा तो रौब गांठने का भी कार्य करते रहे।
मोहल्ले में पसरा सन्नाटा, कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं
तमुकहीराज के जिस मोहल्ले में मोहम्मद रफीक उर्फ बबलू रहता है, उसमें मंगलवार को पूरी तरह से सन्नाटा छाया रहा। उसके जिस आवास पर लोगों भीड़ रहती थी, वहां कोई नजर नहीं आया। पुलिस की कार्रवाई को लेकर कोई भी मोहल्लावासी कुछ बोलने को तैयार नहीं था। मगर, इस खामोशी के बीच भी उसकी कारगुजारियों की चर्चा बिन बोले पसरे सन्नाटे के रूप में बोल रही थीं।
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