Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Nithari Kand: कोर्ट ने केस को साक्ष्य विहीन मानकर दिया निर्णय, अधिवक्ता ने CBI की कमजोर पैरवी को बताया आधार

वर्ष 2006 में हुए निठारी कांड पर उस समय सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा थ कि यह पुलिस की सरासर लापरवाही का नतीजा है। निठारी कंकाल कांड में उच्च न्यायालय द्वारा बीते सोमवार को दिए ऐतिहासिक निर्णय के बाद पीड़ितों की ओर से केस लड़ने वाले अधिवक्ता खालिद खान ने सीबीआइ को कठघरे में खड़ा किया है।

By Gaurav SharmaEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Wed, 18 Oct 2023 09:24 AM (IST)
Hero Image
पीड़ितों की ओर से केस लड़ने वाले अधिवक्ता खालिद खान

गौरव भारद्वाज, नोएडा। निठारी कंकाल कांड में उच्च न्यायालय द्वारा बीते सोमवार को दिए ऐतिहासिक निर्णय के बाद पीड़ितों की ओर से केस लड़ने वाले अधिवक्ता खालिद खान ने सीबीआइ को कठघरे में खड़ा किया है।

उनका कहना है कि सीबीआइ ने पुलिस से केस अपने हाथ में लेने के दौरान पुलिस से मिले कई साक्ष्यों को गंभीरता से नहीं लिया। जिसके चलते कोर्ट ने यह केस साक्ष्य विहीन मानते हुए आरोपितों को बरी कर दिया। उन्होंने कहा कि पुलिस को कोठी डी-5 से आरी बरामद हुई थी।

कोली और पंधेर ने उस समय स्वीकार भी किया था कि वह कैसे शवों को इस आरी से काटते थे। आरी एक बड़ा साक्ष्य है, लेकिन शायद सीबीआइ न्यायालय को ठोस साक्ष्य और गवाह पेश न कर सकी या पुलिस ने इस साक्ष्य को संदेह का लाभ दिया। जिसके चलते केस पलट गया।

उनका कहना है कि यदि यह केस पुलिस के हाथ में रहता तो शायद अंजाम तक पहुंच सकता था। फिलहाल कोर्ट के आदेश की प्रति मिलने के बाद सर्वोच्च न्यायालय का रुख करने पर विचार किया जाएगा।

Also Read-

निठारी कांड : दो साल में गायब हुए थे 44 बच्चे, गांव में खोली गई थी मिसिंग सेल; हर रोज दर्ज होते थे 40 से 50 मामले

सरकार के दबाव में अधिकारियों ने नहीं किया निठारी कांड का पर्दाफाश, एक साल राजनीति के चक्रव्यूह में फंसा रहा मामला

कदम-कदम पर बरती गई थी लापरवाही

प्रकरण की जांच को लेकर पहले दिन से ही पुलिस द्वारा लापरवाही बरती गई थी। घटना का पर्दाफाश होने के कुछ दिन बाद ही विशेषज्ञों ने भी आशंका जताई थी कि पुलिस ने लापरवाही बरती। विशेषज्ञों ने कहा था कि कोठी डी-5 से फारेंसिक नमूनों से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला।

फारेंसिक टीम के सदस्यों का भी मानना था कि कोठी से बरामद होने वाले साक्ष्य इतने अस्त-व्यस्त हो चुके थे कि यह मामला और अधिक उलझ गया था। दिल्ली पुलिस में आयुक्त अजयराज शर्मा ने भी कहा था कि इसमें शुरू से ही एहतियात बरती जानी चाहिए थी।

अगर लोग इस तरह के स्थान पर लोगों के आने जाने से साक्ष्यों पर असर पड़ जाता है। विशेषज्ञों का मानना था कि मामले का पर्दाफाश होने के तुरंत बाद कोठी को सील किया जाना चाहिए था। सात दिनों तक जिस तरह से इसके अंदर ग्रामीण एवं अन्य लोगों की आवाजाही रही और लोग सामान से खिलवाड़ करते रहे, इससे कई साक्ष्य प्रभावित हो सकते हैं।

सीबीआइ को जांच मिलने से पहले कब-कब क्या हुआ?

  •  29 नवंबर को नंदलाल की बेटी पायल के मामले की जांच क्षेत्राधिकारी दिनेश यादव को सौंपी गई।
  • 15 दिसंबर को पड़ताल के दौरान क्षेत्राधिकारी नंदलाल को बुलाकर पूछताछ हुई ।
  • 13 दिसंबर को विशेष टीम को पायल की सुरागरशी के लिए टीम को मुंबई भेजा गया। इसी दौरान टीम को जानकारी मिली कि पायल का मोबाइल फोन भी चालू है।
  • 27 दिसंबर को पुलिस डी-5 में रहने वाले सुरेंद्र द्वारा मोबाइल इस्तेमाल किये जाने की बात जान गई।
  •  28 दिसंबर की रात में पूछताछ के लिए सुरेंद्र को हिरासत में लिया।
  • 29 दिसंबर को निठारी कंकाल कांड का पर्दाफाश, आरोपित सुरेंद्र व मोहिंदर गिरफ्तार, कोठी से पायल की चप्पल व मोबाइल बरामद।
  •  30 दिसंबर को दोनों आरोपित दो दिन की पुलिस रिमांड पर।
  • पीड़ितों ने मामूली पथराव किया, जिसमें कुछ पुलिसकर्मियों को चोट भी आई।
  • 31 दिसंबर को पांच पुलिस अधिकारी निलंबित, एक थानाध्यक्ष लाइन हाजिर
  • 01 जनवरी को आरोपितों को फिर से अदालत में पेश किया गया, दस दिन के लिए पुलिस रिमांड पर फिर से सौंप दिया गया।
  •  02 जनवरी को गुस्साई भीड़ ने डी-5 कोठी में जमकर तोड़-फोड़ की।
  •  02 जनवरी को उच्च स्तरीय कमेटी का गठन, जांच आरंभ
  •  03 जनवरी को पुलिस व पीड़ित लोगों के बीच तीखी नोंक-झोंक
  •  03 जनवरी को कमेटी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री को रिपोर्ट सौंपी, पुलिस अधिकारियों पर गिरी गाज।
  • 04 जनवरी को आरोपितों को नारको टेस्ट के लिए अहमदाबाद ले जाने के दौरान कार दुर्घटनाग्रस्त, यात्रा स्थगित।
  • 05 जनवरी को क्षेत्राधिकारी के नेतृत्व में चार सदस्य पुलिस टीम आरोपियों को लेकर अहमदाबाद पहुंची
  • 05 जनवरी की रात में ही क्षेत्राधिकारी अकेले वापस लौट आए।
  • 07 सीबीआइ जांच व पीड़ितों को मकान देने की मुख्यमंत्री ने की घोषणा।

निठारी कांड पुलिस की लापरवाही का नतीजा

वर्ष 2006 में हुए निठारी कांड पर उस समय सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा थ कि यह पुलिस की सरासर लापरवाही का नतीजा है।

यदि पुलिस सुधारों के प्रति इच्छाशक्ति दिखाई गई होती और पुलिस तंत्र निरंकुश न होता तो निठारी में मासूम बच्चों के साथ ऐसा हादसा पेश न आता। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाईके सब्बरवाल की अध्यक्षता वाली पीठ ने पुलिस सुधारों पर न्यायालय के हाल में दिए गए दिशा-निर्देशों का भी उल्लेख करते हुए यह टिप्पणी की थी।