वाराणसीः प्रकृति के सुमधुर संगीत संग सुनिए इतिहास की गाथा, प्राचीन किलों के रूप में मौजूद हैं अतीत के दस्तावेज
यदि कहा जाए कि प्रकृति ने अपने सबसे अनमोल उपहार पूर्वांचल की वादियों में बिखेर रखे हैं तो अतिशयोक्ति न होगी। पूर्वांचल के सोनभद्र मीरजापुर और चंदौली जनपद में विंध्य पर्वतश्रेणी की अटूट लय पर थिरकता प्रकृति की हरीतिमा का संगीत आपको अपूर्व उल्लास और ताजगी से भर देगा। झरनों की कल-कल घने जंगल में गूंजता पक्षियों का कलरव इनके बीच स्वर्णिम अतीत की गौरव गाथा कहते विशाल प्राचीन किले...
अनुपम निशान्त, वाराणसी। हमारा वर्तमान जिस अतीत की नींव पर खड़ा है, उसके भीतर झांकना और बीते हुए कल को अपने सामने सांस लेते महसूस करना वास्तव में अद्भुत अनुभव देता है। इस अनुभव को आप अपनी स्मृतियों में हमेशा के लिए सहेजकर रख सकते हैं। बस, इसके लिए आना होगा उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में।
यदि कहा जाए कि प्रकृति ने अपने सबसे अनमोल उपहार पूर्वांचल की वादियों में बिखेर रखे हैं, तो अतिशयोक्ति न होगी। पूर्वांचल के सोनभद्र, मीरजापुर और चंदौली जनपद में विंध्य पर्वतश्रेणी की अटूट लय पर थिरकता प्रकृति की हरीतिमा का संगीत आपको अपूर्व उल्लास और ताजगी से भर देगा।
झरनों की कल-कल, घने जंगल में गूंजता पक्षियों का कलरव और इनके बीच स्वर्णिम अतीत की गौरव गाथा कहते विशाल प्राचीन किले... इन सभी को एक साथ महसूस करना हो तो चलिए चलते हैं पूर्वांचल की यात्रा पर।
विजयगढ़ का किला
सोनभद्र में स्थित विजयगढ़ का किला। जागरण
मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर राबट् र्सगंज-चुर्क मार्ग पर एक पहाड़ी पर 400 फीट की ऊंचाई पर स्थित है विजयगढ़ का किला। आज से करीब 1600 वर्ष पूर्व विजयगढ़ किले का निर्माण कोल राजाओं द्वारा कराया गया था।कालांतर में बड़हर के चंदेल राजाओं के अधीन रहा। इसके बाद इस पर शेरशाह सूरी और काशिराज बलवंत सिंह का आधिपत्य भी रहा। इस किले के अंतिम शासक काशिराज चेत सिंह थे।
सोनभद्र के विजयगढ़ किले का मुख्य प्रवेश द्वार। (फाइल फोटो) जागरणऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से भी यह किला महत्वपूर्ण है। प्राचीन गुफा चित्र, मूर्तियां, शिलालेख और बारहों मास पानी से भरे रहने वाले दो प्राकृतिक तालाब इसकी विशेषताओं में चार चांद लगाते हैं। पुराने मंदिर और लाल पत्थर पर उत्कीर्ण समुद्रगुप्त के सामंत विष्णुवर्धन के शिलालेख इसकी महत्ता बताते हैं।
समय के थपेड़े सहते-सहते किले का अधिकांश भाग जर्जर हो चुका है, लेकिन इसकी विशाल प्राचीरें आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। आपने बाबू देवकीनंदन खत्री के सुप्रसिद्ध-सुपठित उपन्यास चंद्रकांता में जिस विजयगढ़ को पढ़ा, वह यही दुर्ग है।
सोनभद्र में ही जिला मुख्यालय राबर्ट्सगंज से करीब 35 किलोमीटर दूर तीन तरफ से सोन, बिजुल और रेणु नदी से घिरे अगोरी के किले की प्राचीन दीवारें रहस्य-रोमांच की अद्भुत कहानी कहती हैं। लगभग दो सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर निर्मित यह किला दूर से एक ऊंचे टापू पर होने का आभास कराता है।किले का निर्माण 12वीं शताब्दी में खरवार वंश के राजा बालेंदु शाह ने कराया था। उसके बाद यह किला चंदेल वंश के शासकों के अधीन रहा। किले में मां काली का प्राचीन मंदिर है। एक दीवार पर सन 1616 ई. में फारसी में लिखा एक शिलालेख भी है। लोकमान्यता है कि कालांतर में इस किले में अघोरी तांत्रिकों का भी वास था।
वाराणसी से सटे चंदौली जिले की सकलडीहा तहसील के वर्तमान हेतमपुर गांव में इस किले का निर्माण लगभग 500 वर्ष पूर्व शेरशाह सूरी के सिपहसालार हेतम खां ने कराया था। इस स्थान का नाम भी उसी के नाम पर पड़ा। डिस्ट्रिक्ट गजेटियर के अनुसार इस किले का स्थापत्य पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में झेलम नदी के तट पर स्थित रोहतास किले से मिलता है, जिसे शेरशाह सूरी के शासनकाल में बनवाया गया था। चंदौली के हेतमपुर किले की कचहरी। जागरण
2.18 एकड़ भूमि पर विस्तारित इस किले में हेतम खां ने तीन कचहरियां बनवाई थीं, जिनकी स्थिति देखरेख के अभाव में बहुत बेहतर नहीं। किले का भव्य मुख्यद्वार आकर्षक है। यह किला पुरातत्व विभाग के अधीन है।
वाराणसी की सीमा से लगे जौनपुर जिले में आज से 661 वर्ष पूर्व इस किले का निर्माण फिरोज शाह तुगलक ने करवाया था। जौनपुर शहर की हृदयस्थली में निर्मित शाही किले का मुख्य द्वार विशाल और भव्य है। भीतर तुर्किये स्थापत्य शैली में निर्मित शाही हमाम (स्नानागार) आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। पर्यटक आनलाइन या ऑफलाइन टिकट लेकर शाही किले का दीदार कर सकते हैं। जल्द ही यहां लाइट एंड साउंड शो शुरू कराने की भी तैयारी है। इस साल जनवरी से अब तक यहां 50 विदेशी सैलानी भी पहुंचे। यह किला पुरातत्व विभाग की निगरानी में है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।अगोरी का किला
सोनभद्र में तीन नदियों से घिरी पहाड़ी पर बना अगोरी का किला। साभार इंटरनेट मीडिया।सोनभद्र में ही जिला मुख्यालय राबर्ट्सगंज से करीब 35 किलोमीटर दूर तीन तरफ से सोन, बिजुल और रेणु नदी से घिरे अगोरी के किले की प्राचीन दीवारें रहस्य-रोमांच की अद्भुत कहानी कहती हैं। लगभग दो सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर निर्मित यह किला दूर से एक ऊंचे टापू पर होने का आभास कराता है।किले का निर्माण 12वीं शताब्दी में खरवार वंश के राजा बालेंदु शाह ने कराया था। उसके बाद यह किला चंदेल वंश के शासकों के अधीन रहा। किले में मां काली का प्राचीन मंदिर है। एक दीवार पर सन 1616 ई. में फारसी में लिखा एक शिलालेख भी है। लोकमान्यता है कि कालांतर में इस किले में अघोरी तांत्रिकों का भी वास था।
हेतमपुर का किला
चंदौली के हेतमपुर के किले का मुख्य द्वार। जागरणवाराणसी से सटे चंदौली जिले की सकलडीहा तहसील के वर्तमान हेतमपुर गांव में इस किले का निर्माण लगभग 500 वर्ष पूर्व शेरशाह सूरी के सिपहसालार हेतम खां ने कराया था। इस स्थान का नाम भी उसी के नाम पर पड़ा। डिस्ट्रिक्ट गजेटियर के अनुसार इस किले का स्थापत्य पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में झेलम नदी के तट पर स्थित रोहतास किले से मिलता है, जिसे शेरशाह सूरी के शासनकाल में बनवाया गया था। चंदौली के हेतमपुर किले की कचहरी। जागरण
2.18 एकड़ भूमि पर विस्तारित इस किले में हेतम खां ने तीन कचहरियां बनवाई थीं, जिनकी स्थिति देखरेख के अभाव में बहुत बेहतर नहीं। किले का भव्य मुख्यद्वार आकर्षक है। यह किला पुरातत्व विभाग के अधीन है।
शाही किला
जौनपुर स्थित शाही किले का मुख्य प्रवेश द्वार। जागरणवाराणसी की सीमा से लगे जौनपुर जिले में आज से 661 वर्ष पूर्व इस किले का निर्माण फिरोज शाह तुगलक ने करवाया था। जौनपुर शहर की हृदयस्थली में निर्मित शाही किले का मुख्य द्वार विशाल और भव्य है। भीतर तुर्किये स्थापत्य शैली में निर्मित शाही हमाम (स्नानागार) आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। पर्यटक आनलाइन या ऑफलाइन टिकट लेकर शाही किले का दीदार कर सकते हैं। जल्द ही यहां लाइट एंड साउंड शो शुरू कराने की भी तैयारी है। इस साल जनवरी से अब तक यहां 50 विदेशी सैलानी भी पहुंचे। यह किला पुरातत्व विभाग की निगरानी में है।