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History Of Gyanvapi Masjid: इतिहास से वर्तमान तक...1194 से 1669 के बीच ज्ञानवापी ने झेले हैं कई झंझावात

History Of Gyanvapi Masjid भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के अंतर्गत अल्तेकर की पुस्तक में उल्लेखित तथ्य व चीनी यात्री ह्वेनसांग द्वारा विश्वनाथ मंदिर के लिंग की सौ फीट उंचाई और उस पर निरंतर गिरती गंगा की धारा के संबंध में उल्लेख है। हैं। - विजय शंकर रस्तोगी वाद मित्र

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 16 May 2022 04:16 PM (IST)
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Gyanvapi Masjid History : ज्ञानवापी मस्जिद मामले में अब पर्याप्‍त साक्ष्‍य मंदिर के पक्ष में मिल चुके हैं।

जागरण संवाददाता, वाराणसी : Gyanvapi Masjid History वाराणसी स्थित ज्ञानवापी परिसर आज सर्वेक्षण को लेकर चर्चा में है। 16 मई को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में एडवोकेट कमिश्‍नर की कार्यवाही के दौरार शिवलिंग मिलने के बाद अदालत ने संबंधित क्षेत्र को सील करने का आदेश दिया है।

पुरातात्विक सर्वेक्षण के जरिए नीर-क्षीर विवेचन की बात चल रही है। गुरुवार को अदालत के आदेश ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह सर्वे जारी रहेगा। ऐसे में यह जानना रोचक होगा कि आजादी से पहले भी इससे संबंधित मुकदमे चल चुके हैं। ज्ञानवापी को लेकर इतिहासकारों और पक्षकारों द्वारा पुस्तकों, प्रशासनिक दस्तावेजों व तस्वीरों के माध्यम से अब तक रखी गई दलीलों के कुछ महत्वपूर्ण अंशों को उभारती रिपोर्ट:

पौराणिक स्थली ज्ञानवापी का सच इतिहास के पन्नों में दर्ज है जो गवाही देते हैं कि किस तरह इस तीर्थ स्थली ने 1194 से 1669 के बीच कई झंझावात ङोले। इसका उल्लेख काशी हिंदू विश्वविद्यालय व पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे ख्यात इतिहासकार डा. अनंत सदाशिव अल्तेकर की वर्ष 1936 में प्रकाशित पुस्तक हिस्ट्री आफ बनारस में प्रमुखता से है। इसे ज्ञानवापी मामले में संदर्भ के तौर पर पेश किया जा चुका है। इसमें मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को तहस-नहस करने का विवरण भी दर्ज है।

पुस्तक के अध्याय चार में वर्णन है कि श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर की वजह से बनारस दो हजार साल पहले से ख्याति प्राप्त है। पौराणिक साक्ष्य बताते हैं कि श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानकूप के उत्तर तरफ स्थित है। इस मंदिर को 1194 से 1669 के बीच कई बार तोड़ा गया।

नारायण भट्ट की लेखनी भी गवाह: ज्ञानवापी के झंझावात नारायण भट्ट लिखित पुस्तक त्रिस्थली सेतु में भी वर्णित हैं। इसमें वर्णन है कि यदि कोई मंदिर तोड़ दिया गया हो और वहां से शिवलिंग हटा दिया गया हो या नष्ट कर दिया गया हो तब भी स्थान महात्म्य की दृष्टि से वह स्थान विशेष पूजनीय है। इसकी परिक्रमा करके पूजा-अभिषेक संपन्न किया जा सकता है। 

15वीं शताब्दी में अकबर के कार्यकाल में पुनरुद्धार: 15वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर के कार्यकाल में राजा मान सिंह और राजा टोडरमल द्वारा मंदिर का पुनरुद्धार कराया गया था। डा. अल्तेकर की पुस्तक में कहा गया है कि अकबर के शासन काल में बनारस की स्थिति बदली और 1567 में शांति व्यवस्था कायम हुई। सात मार्च 2020 को इससे जुड़े दस्तावेज और 23 छाया चित्र कोर्ट में पेश किए गए थे।

परमात्मा शरण की गवाही से खारिज हो गई थी दावेदारी: कागजातों के अनुसार 1936 में चले मुकदमे में प्रो. एएस अल्तेकर समेत कई लोगों के बयान हुए। इसमें यूनिवर्सिटी आफ लंदन के बनारसी मूल के इतिहासकार प्रो. परमात्मा शरण ने 14 मई 1937 को अतिरिक्त सिविल ब्रिटिश सरकार की ओर से बतौर साक्षी बयान दिया। उन्होंने औरंगजेब के दरबार के इतिहास लेखक मुश्तैद खां द्वारा लिखित ‘मा आसिरे आलम गिरि’ पेश करते हुए बताया था कि यह 16वीं शताब्दी के अंतिम चरण में एक मंदिर था।

  • 1936 में पूरे ज्ञानवापी परिसर में नमाज पढ़ने के अधिकार को लेकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जिला न्यायालय में दायर किया गया था मुकदमा
  • 7 गवाह दावेदारों की ओर से और 15 गवाह ब्रिटिश सरकार की ओर से पेश किए गए थे
  • 15 अगस्त 1937 को मस्जिद के अलावा अन्य ज्ञानवापी परिसर में नमाज पढ़ने के अधिकार को नामंजूर कर दिया गया था
  • 10 अप्रैल 1942 को सब जज के फैसले को सही ठहराते हुए अपील निरस्त कर दी थी हाई कोर्ट ने
  • (इसका उल्लेख एआइआर (29) 1942 एएलएएबीएडी 353 में है)

बैरिकेडिंग होने से पहले ऐसा नजर आता था ज्ञानवापी परिसर। सौ: प्रो. विनोद जायसवाल

तीसरे एडवोकेट कमिश्नर हैं अजय कुमार मिश्र : श्रृंगार गौरी के दर्शन-पूजन की इजाजत के लिए दिल्ली की राखी सिंह, मंजू व्यास, सीता साहू, लक्ष्मी देवी व रेखा पाठक ने श्रृंगार गौरी के दैनिक दर्शन व विग्रहों को संरक्षित करने के बाबत 18 अगस्त 2021 को सिविल जज (सीडि.) रवि कुमार दिवाकर की अदालत में वाद दाखिल किया था। कमिश्नर नियुक्त किए गए, लेकिन कोई कार्रवाई न किए जाने पर अदालत की ओर से आठ अप्रैल 2022 को अजय कुमार मिश्र तीसरे एडवोकेट कमिश्नर बनाए गए। उन्होंने छह मई को सर्वेक्षण की प्रक्रिया शुरू की।

आजादी के बाद.. 1991 में दायर हुआ मुकदमा

  • 15 अक्टूबर 1991 को वाराणसी की अदालत में ज्ञानवापी में नव मंदिर निर्माण और हिंदुओं को पूजन-अर्चन का अधिकार को लेकर पं.सोमनाथ व्यास, डा. रामरंग शर्मा व अन्य ने वाद दायर किया था।
  • 1998 में हाईकोर्ट में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद व यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनऊ की ओर से दो याचिकाएं दायर की गई थी इस आदेश के खिलाफ, 7 मार्च 2000 को पं.सोमनाथ व्यास की मृत्यु हो गई।
  • 11 अक्टूबर 2018 को पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी को वाद मित्र नियुक्त किया मामले की पैरवी के लिए।
  • 8 अप्रैल 2021 को वाद मित्र की अपील मंजूर कर पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश जारी कर दिया।

डा. अनंत सदाशिव अल्तेकर। फाइल

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 57 (13) के तहत सामान्य इतिहास की पुस्तकों में भी वर्णित ऐतिहासिक तथ्य को साक्ष्य के तौर पर मान्यता है। 

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