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Mangal Pandey Birth Anniversary : वीर सपूत के बलिदान से जागा था भारतीयों का स्वाभिमान

Mangal Pandey Birth Anniversary आजादी की जंग में सबसे पहले अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिलाने वाले शहीद मंगल पाण्डेय में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का गजब जज्बा था। प्यास लगने पर फैक्ट्री के एक कर्मचारी ने सैनिक मंगल पांडेय से एक लोटा पानी मांगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Sat, 30 Jan 2021 09:23 AM (IST)
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Mangal Pandey Birth Anniversary मंगल पांडेय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत 34 वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में सिपाही थे।

बलिया, जेएनएन। Mangal Pandey Birth Anniversary आजादी की जंग में सबसे पहले अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिलाने वाले शहीद मंगल पाण्डेय में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का गजब जज्बा था। उनके इसी जज्बे ने अंग्रेजों को भारत छोडऩे के लिए छेड़े गए आंदोलन के दौरान लोगों के अंदर स्वाभिमान जगाने का काम किया।

30 जनवरी 1831 को तत्कालीन गाजीपुर जिले के बलिया तहसील अंतर्गत नगवां गांव की मिट्टी में मंगल पांडेय का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुदिष्ट पाण्डेय तथा माता का नाम जानकी देवी था। मंगल पाण्डेय 22 वर्ष की आयु में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हो गए। उस समय सेना में धर्म के अनुसार वेशभूषा में रहने की छूट थी। उस समय सेना में अंग्रेजों की ओर से सैनिकों को ईसाई बनाने का कुचक्र चला जा रहा था। पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में एक फैक्ट्री थी जहां कारतूस बनाए जाते थे। उस फैक्ट्री के अधिकांश कर्मचारी दलित समुदाय के थे। एक दिन प्यास लगने पर फैक्ट्री के एक कर्मचारी ने सैनिक मंगल पांडेय से एक लोटा पानी मांगा। मंगल पांडेय ने उस कर्मचारी को यह कहकर पानी देने से मना कर दिया कि तुम अछूत हो। यह बात उस कर्मचारी को चुभ गई। उसने कटाक्ष करते हुए मंगल पाण्डेय से कहा कि उस समय  तुम्हारा धर्म कहां रह जाता है जब बंदूक में कारतूस डालने से पहले उसे दांत से तोड़ते हो, उस कारतूस पर गाय और सूकर की चर्बी लगी होती है। कर्मचारी मातादीन की बात मंगल पांडेय को चुभ गई। इसके बाद मंगल पांडेय अंग्रेजों से बदला लेने के लिए मौके की तलाश में लग गए।

मंगल पांडेय के बगावत के बाद बढ़ा विद्रोह

मंगल पांडेय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत 34 वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में एक सिपाही थे। 29 मार्च 1857 की क्रांति के दौरान मंगल पाण्डेय ने एक ऐसे विद्रोह को जन्म दिया जो जंगल में आग की तरह सम्पूर्ण उत्तर भारत और देश के दूसरे भागों में भी फैल गया। उनके विद्रोह के पश्चात अंग्रेजों के बीच ÓपैंडीÓ शब्द बहुत प्रचलित हुआ जिसका अभिप्राय था गद्दार या विद्रोही।

राष्ट्रधर्म के लिए हंसते-हंसते चढ़े फांसी पर

फौजी अदालत में मंगल पाण्डेय पर मुकदमा चला। उन्होंने जज के सामने कहा कि मैंने जो भी किया सोच समझकर राष्ट्रधर्म के लिए किया है। इसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। बैरकपुर के परेड मैदान में फांसी का मंच बनाया गया ओर सात अप्रैल की सुबह फांसी दी जानी थी ङ्क्षकतु बैरकपुर के जल्लाद मंगल पाण्डेय को फांसी देने से मना कर दिए। अंत में कोलकाता से जल्लाद बुलाए गए। अंग्रेज अफसर जनरल हीयरसी ने निर्देश जारी किया कि 8 अप्रैल 1857 को सुबह 5.30 बजे बी-ग्रेड परेड के मैदान में 14 वीं देशी पैदल सेना की 19 वीं रेजीमेंट नेटिव इन्फेंट्री की पांचवी कंपनी के 1446 नंबर के सिपाही मंगल पाण्डेय को फांसी दी जाएगी। आठ अप्रैल को भारत माता के इस वीर सपूत को फांसी पर चढ़ा दिया गया। मंगल पाण्डेय के इस बलिदान ने पूरे भारत को झकझोर कर रख दिया। इस बलिदान के बाद जगह-जगह अंग्रेजों के खिलाफ बगावत तेवर दिखाई देने लगे। इसका परिणाम 15 अगस्त 1947 को सामने आया जब हमेशा के लिए अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए।