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उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में नियुक्त अस्थाई कर्मचारियों के बर्खास्तगी के आदेश को हाई कोर्ट ने सही ठहराया

नैनीताल हाईकोर्ट (Nainital High Court) ने विधानसभा सचिवालय के बर्खास्त कर्मचारियों की अपील पर गुरुवार को सुनवाई की। मामले में कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के बर्खास्तगी के आदेश सही ठहराते हुए एकलपीठ के बर्खास्तगी के आदेश पर रोक को गलत ठहराया।

By Jagran NewsEdited By: Skand ShuklaUpdated: Thu, 24 Nov 2022 01:16 PM (IST)
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नैनीताल हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय के बर्खास्त कर्मचारियों की अपील पर गुरुवार को सुनवाई की।

जागरण संवाददाता, नैनीताल : dismissal employees of Uttarakhand Assembly : जागरण संवाददाता, नैनीताल : हाई कोर्ट ने उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों को एकलपीठ के बहाल किए जाने के आदेश को चुनौती देती विधान सभा की ओर से दायर विशेष अपीलों पर गुरुवार को सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश को निरस्त करते हुए विधान सभा सचिवालय के आदेश को सही ठहराया है।

कोर्ट ने कहा कि बर्खास्तगी के आदेश को स्टे नहीं किया जा सकता। विधान सभा सचिवालय की तरफ से कहा गया कि इनकी नियुक्ति काम चलाऊ व्यवस्था के लिए की गई थी। शर्तों के मुताबिक इनकी सेवाएं कभी भी बिना नोटिस व बिना कारण के समाप्त की जा सकती हैं, इनकी नियुक्तियां विधान सभा सेवा नियमावली के विरुद्ध की गई हैं।

कर्मचारियों की ओर से कहा गया कि उनको बर्खास्त करते समय अध्यक्ष ने संविधान के अनुच्छेद 14 का पूर्ण रूप से उलंघन किया है। स्पीकर ने 2016 से 2021 तक के कर्मचारियों को ही बर्खास्त किया है, जबकि ऐसी ही नियुक्तिय विधान सभा सचिवालय में 2000 से 2015 के बीच भी हुई हैं, जिनको नियमित भी किया जा चुका है। यह नियम तो सब पर एक समान लागू होना था। उन्हें ही बर्खास्त क्यों किया गया। उमा देवी बनाम कर्नाटक राज्य का निर्णय उन पर लागू नहीं होता क्योंकि यह वहां लागू होता है, जहां पद खाली नहीं हो और बैकडोर नियुक्तियां की गई हों। यहां पद खाली थे तभी नियुक्ति हुई।

विधानसभा से बर्खास्त बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ठ व कुलदीप सिंह व 102 अन्य ने एकलपीठ के समक्ष बर्खास्तगी आदेश को चुनौती दी थी। याचिकाओं में कहा गया था कि विधान सभा अध्यक्ष ने लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 , 29 सितम्बर को समाप्त कर दी। बर्खास्तगी आदेश में उन्हें किस आधार पर किस कारण की वजह से हटाया गया, कहीं इसका उल्लेख नहीं किया गया, न ही उन्हें सुना गया जबकि उन्होंने सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया है। एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नहीं है। यह आदेश विधि विरुद्ध है। विधान सभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2002 से 2015 के बीच में भी हुई है जिनको नियमित किया जा चुका है, उनको किस आधार पर बर्खास्त किया गया।

याचिका में कहा गया है कि 2014 तक हुई तदर्थ रूप से नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई किन्तु उन्हें 6 वर्ष के बाद भी स्थायी नहीं किया, अब उन्हें हटा दिया गया। पूर्व में भी उनकी नियुक्ति को 2018 में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गयी थी ,जिसमे कोर्ट ने उनके हित में आदेश देकर माना था कि उनकी नियुक्ति वैध है। उसके बाद एक कमेटी ने उनके सभी शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की जांच की, जबकि नियमानुसार छह माह की नियमित सेवा करने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था।

एकलपीठ ने बर्खास्तगी आदेश पर लगा दी थी रोक

  • विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भूषण ने पूर्व प्रमुख सचिव डीके कोटिया की अध्यक्षता में बनाई समिति की सिफारिशों के आधार पर 228 कर्मचारियों को बर्खास्त किया था।
  • बीते अक्टूबर माह में नैनीताल हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय के 228 कर्मचारियों की 27, 28 व 29 सितंबर को जारी बर्खास्तगी के आदेश पर रोक लगा दी थी।
  • न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने अस्थाई कर्मचारियों को सुनवाई का मौका न देने पर नाराजगी जताई थी।
  • बर्खास्तगी आदेश के विरुद्ध 55 से अधिक कर्मचारियों की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।

याचिकाकताओं की ये थी दलील

  • याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष ने लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं।
  • बर्खास्तगी आदेश में उन्हें किस आधार पर किस कारण से हटाया गया, कहीं इसका उल्लेख नहीं किया गया, न ही उनका पक्ष सुना गया।
  • एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नहीं है। यह आदेश विधि विरुद्ध है।
  • विधान सभा सचिवालय में 396 पदों पर बैकडोर नियुक्तियां 2002 से 2015 के बीच भी हुई हैं, जिनको नियमित किया जा चुका है।
  • याचिका में कहा गया है कि 2014 तक हुई तदर्थ रूप से नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई ।
  • जबकि याचिकाकर्ताओं को छह वर्ष के बाद भी स्थायी नहीं किया गया और अब उन्हें हटा दिया गया।
  • पूर्व में भी उनकी नियुक्ति को जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गयी थी, जिसमें कोर्ट ने उनके हित में आदेश दिया था।
  • याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि नियमानुसार छह माह की नियमित सेवा करने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था।