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उत्‍तराखंड के हालात: नीचे उफनाती नदी और ऊपर सूख और सड़ चुके दो पेड़ों के भरोसे 125 लोगों की जिदंगी

Uttarakhand News उत्तराखंड के हल्द्वानी में गौला नदी पर दानीजाला गांव के लोगों के लिए ट्रॉली से नदी पार करना खतरे से खाली नहीं है। दो पेड़ों के सहारे चलने वाली इस ट्रॉली की हालत जर्जर है और ग्रामीणों को हर दिन जान जोखिम में डालकर नदी पार करनी पड़ती है। दैनिक जागरण ने दानीजाला गांव का दौरा किया और ग्रामीणों से उनकी समस्याओं के बारे में बात की।

By govind singh Edited By: Nirmala Bohra Updated: Sat, 21 Sep 2024 02:11 PM (IST)
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Uttarakhand News: नदी के दो किनारों पर दो सूखे पेड़ों से बंधा है ट्राली का लोहे का तार। जागरण

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी। Uttarakhand News: दानीजाला की कहानी अभी बाकी...। सैन्य बहुल इस गांव के लोगों की जिदंगी जिन दो पेड़ों के भरोसे टिकी है, उनमें से एक सूख चुका है। जबकि दूसरा सूखने के साथ सड़ भी गया है। ट्राली को खींचने के लिए जरूरी लोहे का तार इन दो पेड़ों पर ही बांधा गया। इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं है।

अब सोचकर देखिए कि जिन दो पेड़ों के सहारे के गांव के 125 लोग आना-जाना करते हैं, जब उनका हाल ये है तो ट्राली में बैठने के बाद उफनाती गौला नदी को पार करने वाले ग्रामीणों की जिदंगी कितनी खतरे में होगी? हर दिन नई चुनौती और इस संकट से पार पाने के लिए दानीजाला के लोग सरकार और सिस्टम से सिर्फ एक पुल की मांग कर रहे हैं। लेकिन कोई उनकी सुनने को तैयार नहीं है।

क्या घर न जाएं या जरूरी काम से बाहर न जाएं?

उत्तराखंड को वीरों की भूमि कहा जाता है। देश में पहली बार सैन्य धाम की चर्चा भी हुई थी। स्थानीय हो या बाहरी राज्य से चुनाव-प्रचार के दौरान यहां आने वाले किसी भी पार्टी के नेता, मंच से यह कहना नहीं भूलते कि जरूरत पड़ने पर देवभूमि के लोगों ने हर बार देश के लिए बलिदान दिया है। मगर रानीबाग के पास स्थित इस गांव को सरकार और सिस्टम ने मानो भुला ही दिया है।

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दानीजाला के लोगों के प्रति यह संवेदनहीन रवैया किसी एक का नहीं बल्कि हर सरकार ने दिखाया। जबकि यह गांव भी देवभूमि और वीरभूमि दोनों के नाम से जुड़ा है। दैनिक जागरण की टीम के इस गांव में पहुंचने पर सबसे पहले स्थानीय निवासी और उत्तराखंड परिवहन निगम से सेवानिवृत्त पान सिंह से हुई। उम्र के 70वें पड़ाव पर पहुंच चुके पान सिंह गांव की महिलाओं और अन्य लोगों को एक-एक ट्राली में बैठाने के बाद झूलानुमा ट्राली को खींच रहे थे।

लोहे की इस ट्राली की रस्सी जिन दो पेड़ों पर बांधी गई थी, वह खुद अपने दिन गिन रहे हैं। बरसात संग तेज अंधड़ चली तो झटके में पेड़ उफनाती नदी में समा जाएंगे। वहीं, एक-एक कर ट्राली में बैठने का इंतजार कर रही महिलाओं से जब पूछा कि इस तरह नदी को आर-पार करने में डर नहीं लगता? तो उनकी कही बात में जवाब से ज्यादा सवाल नजर आया। बोलीं, बताओ फिर कैसे जाएं? क्या घर न जाएं या जरूरी काम से बाहर न जाएं?

खैर की जड़ें गहरी नहीं, कुकाट की मजबूती नहीं

ट्राली से जुड़ा लोहे का तार एक तरफ खैर के पेड़ से बंधा है, दूसरी तरफ कुकाट प्रजाति से जुड़े ढाक से। वन विभाग के रेंजर चंदन अधिकारी ने बताया कि खैर की जड़ें ज्यादा गहरी नहीं होतीं। जबकि कुकाट प्रजाति के पेड़ों को बहुत ज्यादा मजबूत नहीं माना जाता। ऐसे में ग्रामीणों के खतरे को समझा जा सकता है।

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मंच और कार्यक्रम पसंद नेता-अधिकारी दानीजाला जाएंगे? -हर छोटे-मोटे कार्यक्रम में मंच संभालने वाले नेता और गली-मोहल्ले की 200-400 मीटर सड़क तैयार करने के बाद उसकी जानकारी भेज अपनी जिम्मेदारी को बखूबी पूरा करने का दम भरने वाले अधिकारी दानीजाला के लोगों के बीच जाकर उनकी समस्या क्यों नहीं सुनते?

अनदेखा कर रही है सरकार

अपनी हर छुटमुट उपलब्धि का बकायदा मीडिया को प्रेसनोट भेज ढोल पीटने वाले ये जिम्मेदार लोग यहां जनसुनवाई का मंच क्यों नहीं सजाते होंगे। जबकि यहां अन्य जगहों की तरह शिकायतों या समस्याओं से मचने वाला शोर नहीं बल्कि एक अदद शब्द सुनने को मिलेगा। वह है पुल

दानीजाला के लोगों का दर्द गांव के लोगों का दर्द आप लोग देख चुके हैं, मगर सरकार अनदेखा कर रही है। पुल के अलावा हमारी कोई मांग नहीं है। मगर हर बार इस मांग को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

प्रेम सिंह बच्चों और बीमार लोगों को लेकर हमेशा मन में डर रहता है। ट्राली से नदी पार करना कभी भी खतरनाक हो सकता है। मगर मजबूरी यह है कि दानीजाला के लोग इसके अलावा और क्या करें। -  नर सिंह रजवार

इस पुल के लिए नैनीताल से लेकर देहरादून तक चक्कर लगा चुका हूं। दस्तावेजों का पुलिंदा लेकर घूमता हूं। बस एक ही मांग है कि हमें पुल मिले। सरकार को इस गांव की सुननी चाहिए। - पान सिंह बिष्ट

पुराने लोग जैसे-तैसे दिन काट रहे हैं। हमारी नई पीढ़ी के बारे में सोचा जाना चाहिए। अच्छे स्कूल और कोचिंग सेंटर हल्द्वानी में है। वहां जाने के लिए कम से कम एक पुल तो हमें मिलना चाहिए। - इंद्रा चंद

जिस तरह और जगहों पर पुल बनते हैं, वैसे ही मेरे गांव में भी पुल बन सकता है। सर्वे के बाद कई बार प्रस्ताव भी बन चुके हैं। उसके बावजूद धरातल पर कुछ नहीं हुआ। दानीजाला संग भेदभाव किसलिए। -  तुलसी बिष्ट

दिन के उजाले के समय ट्राली का सफर खतरनाक तो है ही, अंधेरा होते ही डर और बढ़ जाता है। गांव के लोगों को और परेशान नहीं किया जाना चाहिए। 100 मीटर पुल की मांग पूरी नहीं हो पा रही। - लीला देवी