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Uttarkashi Avalanche : बच्चों का शौक माता-पिता को दे गया जीवनभर का शोक, बुझे दो घरों के इकलौते चिराग

Uttarkashi Avalanche हिमस्खलन से हुआ हादसा देश के 27 से अधिक परिवारों को जीवनभर का गम दे गया। भावनगर (गुजरात) निवासी अर्जुनसिन गोहिल और शिमला (हिमाचल प्रदेश) निवासी अंशुल कैंथला अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। उनकी भी हादसे में मौत हो गई।

By Shailendra prasadEdited By: Nirmala BohraUpdated: Mon, 10 Oct 2022 09:46 AM (IST)
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Uttarkashi Avalanche : 27 से अधिक परिवारों को जीवनभर का गम दे गया हादसा।

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी : Uttarkashi Avalanche : द्रौपदी का डांडा में हिमस्खलन से हुआ हादसा देश के 27 से अधिक परिवारों को जीवनभर का गम दे गया। कुछ परिवार तो ऐसे हैं, जिनके घर का इकलौता चिराग भी इस हादसे में बुझ गया।

भावनगर (गुजरात) निवासी अर्जुनसिन गोहिल और शिमला (हिमाचल प्रदेश) निवासी अंशुल कैंथला अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। दोनों अभी दुनिया को ठीक से देख भी नहीं पाए थे, बस! पहाड़ चढ़ने का प्रशिक्षण लेने के लिए यहां आए और माता-पिता के आगे दुखों का पहाड़ खड़ा कर गए।

27 सदस्यों की मौत, दो सदस्य लापता

  • नेहरू पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी में पर्वतारोहण का एडवांस कोर्स कर रहा जो दल हिमस्खलन की जद में आया, उसमें 27 सदस्यों की मौत हो चुकी है और दो सदस्य अभी लापता हैं।
  • इन सब की उम्र 18 से लेकर 25 वर्ष के बीच थी।
  • होनहार और पूरी तरह स्वस्थ होने के कारण प्रशिक्षण के तहत इनका चयन बेस कैंप से द्रौपदी का डांडा (5670 मीटर) चोटी के आरोहण के लिए हुआ, जो इनके लिए अंतिम चयन साबित हुआ।
  • ग्राम चित्राबाहु उमराला (भावनगर-गुजरात) निवासी भूपेंद्रसिन गोहिला के अर्जुनसिन गोहिल इकलौती संतान थे।
  • भूपेंद्रसिन ने खेती-किसानी कर किसी तरह बेटे को पढ़ाया। एनसीसी में अर्जुनसिन ने कई मेडल हासिल किए।
  • माता-पिता ने होनहार बेटे को लेकर बड़े-बड़े सपने देखे थे।
  • अर्जुनसिन स्वामी विवेकानंद पर्वतारोहण संस्थान, माउंट आबू में राक क्लाइंबिंग के प्रशिक्षक भी थे।
  • वह स्नापर शूटिंग के भी प्रशिक्षक रहे। कई बार वह आगरा व अन्य स्थानों पर प्रशिक्षण देने के लिए भी गए।

अंशुल कैंथला भी इकलौती संतान थे

इसी तरह शेरकोट हलनीधार (शिमला-हिमाचल प्रदेश) निवासी इंद्र कैंथला व गीता कैंथला के अंशुल कैंथला भी इकलौती संतान थे। पूर्व सैनिक इंद्र कैंथला अपने रिश्तेदारों के साथ चार अक्टूबर को ही उत्तरकाशी पहुंच गए थे।

इंद्र कैंथला बेटे को सेब की बागवानी कर स्वरोजगार के लिए प्रेरित करते थे, लेकिन अंशुल को पर्वतारोहण का शौक था। उसकी यही शौक माता-पिता के लिए जीवनभर का शोक बन गया।