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Kolkata Murder Case: 'हथकंडे अपनाने की बजाय जमीन पर काम करें ममता', केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने महिला सुरक्षा के लिए बताई योजना

कोलकाता में डॉक्टर से दरिंदगी के बाद देश भर में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहा है लेकिन केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी इस पर बेहद संवेदनशील हैं। दैनिक जागरण की विशेष संवाददाता माला दीक्षित से खास बातचीत में वह कहती हैं कि महिलाओं को सुरक्षित और संरक्षित करना सरकार की प्राथमिकता है। उनसे आगे महिलाओं की सुरक्षा को लेकर काफी देर बात की गई।

By Jagran News Edited By: Shubhrangi Goyal Updated: Sat, 07 Sep 2024 04:19 PM (IST)
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केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने महिला सुरक्षा पर की बात (फाइल फोटो)

राज ब्यूरो जागरण, कोलकाता। कोलकाता में डॉक्टर से दरिंदगी के बाद देश भर में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहा है, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी इस पर बेहद संवेदनशील हैं।

दैनिक जागरण की विशेष संवाददाता माला दीक्षित से खास बातचीत में वह कहती हैं कि महिलाओं को सुरक्षित और संरक्षित करना सरकार की प्राथमिकता है। सरकार का पूरा जोर है कि वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी बढ़े और उसके लिए उन्हें सुरक्षित माहौल देने के कानूनी उपाय किये गए हैं। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश।

कोलकाता की ताजा घटना से देश हिल गया है। वर्क फोर्स में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए उन्हें रोजगार से जोड़ना होगा, लेकिन अभी भी पूरे देश में महिलाओं का कार्यस्थल पर सुरक्षित पहुंचना और सुरक्षित लौटना एक चुनौती बना हुआ है। कार्यस्थल पर भी महिलाओं की सुरक्षा खतरे में रहती है। महिलाओं को घर से बाहर निकालने की इस चुनौती से कैसे निपटा जाएगा? 

उत्तर - प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संकल्प वूमन लेड डेवलेपमेंट, यानी महिलाओं के नेतृत्व में विकास पर आधारित है। जब महिलाएं घर के अंदर और घर के बाहर स्वयं को सुरक्षित महसूस करेंगी, तभी वह अपनी पूरी क्षमता से आगे बढ़ पाएंगी। हमारी सरकार हर क्षेत्र में महिलाओं को पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिए हाल के वर्षों में अनेक प्रभावकारी और कड़े कदम उठाए गए हैं जिनका व्यापक असर भी हुआ है, लेकिन कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध अभी पूरी तरह रुके नहीं हैं। इन पर काबू पाना बेहद जरूरी है। हाल ही में कोलकाता की महिला डाक्टर के साथ हुई हैवानियत के बाद हत्या मानवता को शर्मसार करने वाली घटना है। सभ्य समाज में ऐसी दरिंदगी कतई बर्दाश्त नहीं की जा सकती। बंगाल पुलिस की नाकामी के कारण अब इस घटना की जांच सीबीआइ कर रही है। बहुत जल्द सारे दोषी पकड़े जाएंगे और उन्हें कठोरतम सजा मिलेगी। यहां गौर करने वाली बात यह है कि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है। अपराधों पर काबू पाना और आम नागरिकों को सुरक्षा व संरक्षा सुनिश्चित कराना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।

यह ध्यान रखना चाहिए कि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है। ममता बनर्जी को चिट्ठी लिखने या नए कानून की बात करने जैसे हथकंडे की बजाय जमीन पर काम करना चाहिए।

महिलाओं की सुरक्षा के लिए कौन-कौन सी योजनाएं हैं?

उत्तर - केंद्र सरकार महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए निर्भया फंड के माध्यम से कुल 45 योजनाएं संचालित कर रही है। इन परियोजनाओं के सफलतापूर्वक कार्यान्यवयन के लिए 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक का प्रविधान किया गया है। इसके तहत संकट में फंसी किसी भी महिला को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर एकल हेल्पलाइन नंबर 112 के माध्यम से एक आपातकालीन प्रतिक्रिया सहयोग प्रणाली (इमरजेंसी रिस्पांस सिस्टम) देश भर में शुरू की गई है, जिसने अभी तक 36 करोड़ से अधिक कालों का प्रबंधन किया है। इआरएसएस के अलावा महिलाओं के लिए एक समर्पित वूमेन हेल्प लाइन भी 2015 से काम कर रही है, जिसका उद्देश्य पूरे देश में हिंसा से प्रभावित महिलाओं को रेफरल सेवा के माध्यम से आपातकालीन और गैर आपातकालीन सहायता प्रदान करना है। इस योजना के तहत सहायता और जानकारी के लिए इच्छुक महिलाओं को शार्ट कट कोड 181 के माध्यम से 24 घंटे की टोल फ्री दूरसंचार सेवा प्रदान की जाती है। निर्भया फंड के तहत लगभग 2900 करोड़ रुपये की लागत से देश के आठ प्रमुख शहरों अहमदाबाद, बेंगलुरू, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ, और मुंबई में सुरक्षित शहर परियोजना के तहत स्मार्ट पुलिसिंग और सुरक्षा प्रबंधन में सहायता के लिए तकनीक स्थापित करना है। साथ ही देश भर के सैकड़ों रेलवे स्टेशनों और सड़क मार्ग पर महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विभिन्न सुरक्षा परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिसके लिए निर्भया फंड की राशि आवंटित की गई है। देश भर के सभी पुलिस थानों में महिला हेल्प डेस्क की स्थापना की जा रही है। वन स्टाप सेंटर हैं, जहां पीड़ित महिला को एक ही जगह चिकित्सा, काउंसिलिंग, कानूनी सलाह आदि की मदद उपलब्ध कराई जाती है। वन स्टाप सेंटर की योजना देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू है। आज की तारीख में 765 जिलों में 786 वन स्टाप सेंटर संचालित हो रहे हैं। हमारा मंत्रालय देश भर के प्रत्येक जिले में कम से कम एक वन स्टाप सेंटर संचालित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

घर, बाहर, कार्यस्थल सभी जगह महिलाओं के उत्पीड़न, हिंसा और दुष्कर्म की घटनाएं सामने आ रही हैं। कड़े कानून की मांग फिर उठ रही है यहां तक कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कड़े केंद्रीय कानून और फास्ट ट्रैक कोर्ट की आवश्यकता बताई है। क्या कानून को और कड़ा करने की जरूरत है। महिलाओं से संबंधी अपराधों के जल्दी निपटारे के लिए विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने की मुहिम कहां तक पहुंची?

कानून पर्याप्त हैं। अभी हाल में एक जुलाई से लागू हुए नये आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों और सामूहिक दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों के लिए बहुत कठोर सजा का प्रविधान किया गया है। जघन्य यौन अपराधों की पीड़ित महिलाओं और युवा लड़कियों को न्याय दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (एफटीएससी) स्थापित किये गए हैं। केंद्र सरकार ने 2019 में यह योजना लागू की थी। फास्ट ट्रैक कोर्ट केंद्र और राज्यों के संयुक्त प्रयास से स्थापित किये जाते हैं। जून 2024 तक देश भर में 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 752 एफटीएसी स्थापित हो चुके थे, जिनमें 405 विशेष तौर पर सिर्फ पाक्सो एक्ट के अपराधों के लिए हैं। इनमें बाल यौन उत्पीड़न के केस चलते हैं। इन एफटीएससी में अभी तक कुल 2,50,000 केस निपटाए गए हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने की मांग करना, बंगाल की जनता को गुमराह करने का एक हथकंडा मात्र है। हकीकत यह है कि केंद्र ने एफटीएससी योजना के तहत सिर्फ बंगाल के लिए 123 फास्ट ट्रैक कोर्ट आवंटित किये थे, लेकिन जून 2023 तक बंगाल सरकार ने एक भी एफटीएससी शुरू नहीं किया। केंद्र के बार-बार याद दिलाने पर जून 2023 में बंगाल सरकार सिर्फ 17 एफटीएससी बनाने के लिए राजी हुई, जिसमें से अभी मात्र छह पाक्सो एफटीएससी शुरू हो पाए हैं। केंद्र के बार-बार याद दिलाने के बावजूद बलात्कार पीड़िताओं के केसों के लिए अभी तक बंगाल में एक भी एफटीएससी शुरू नहीं किया जा सका है, जबकि वहां बलात्कार और पाक्सो एक्ट के 48,600 मामले लंबित हैं।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बहुत सफल योजना रही। लिंगानुपात सुधारने में इसका काफी असर हुआ, लेकिन अभी भी कुछ राज्य और जिलों में लड़कियों का अनुपात लड़कों की अपेक्षा कम है। इससे कैसे निबटा जा रहा है?

2011 की जनगणना में बच्चों के लिंगानुपात में गुणात्मक गिरावट दर्ज की गई। यह गिरावट प्रसव पूर्व और जन्म के पश्चात दोनों स्थितियों में देखी गई, जिसका सबसे बड़ा कारण था जन्म के पूर्व गर्भ में ही लड़का या लड़की का चयन और जन्म के बाद लड़कियों के साथ स्वास्थ्य पोषण और शिक्षा में भेदभाव। इस चिंताजनक स्थिति को भांपते हुए प्रधानमंत्री ने जनवरी 2015 में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की। पिछले नौ वर्षों में इस अभियान ने न सिर्फ राजनीतिक चेतना को स्पंदित किया है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर यह एक अभियान से शुरू होकर जन आंदोलन का रूप ले चुका है। इसी के परिणामस्वरूप कुछ प्रमुख संकेतकों में सकारात्मक सुधार देखा जा रहा है। जैसे कि किशोरियों और महिलाओं के बीच मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के प्रति जागरूकता बढ़ी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के हेल्थ मैनेजमेंट इन्फारमेशन सिस्टम की ताजा रिपोर्ट बताती है कि राष्ट्रीय स्तर पर लिंगानुपात 918 (2014-15 में) से बढ़कर 930 (2023-24) में हो गया है।

महिलाएं छोटे-मोटे रोजगार या मध्यम पदों की नौकरियां तो पा लेती हैं, लेकिन अभी भी उनका कंपनी के सर्वोच्च पद जैसे सीईओ या चेयरपर्सन बनना कठिन होता है। उन्हें उच्च पदों पर पुरुषों के समान बड़े पैकेज की नौकरियां पाने में अभी भी मुश्किल होती है। उनकी राह आसान करने के लिए क्या मंत्रालय की कोई योजना या पहल है?

प्रधानमंत्री का संकल्प देश को 2047 तक विकसित भारत के रूप में स्थापित करने का है। इस संकल्प की सिद्धि के लिए अगले पांच वर्षों में हमें दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनना है। हमारी सरकार वोमेन लेड डेवलपमेंट की दिशा में कदम बढ़ा रही है। महिला सशक्तिकरण की दिशा में सरकार द्वारा किये गए रहे प्रयासों के व्यापक परिणाम दिखने लगे हैं। सरकार ने कंपनी एक्ट में बदलाव करते हुए यह प्रविधान किया है कि 100 करोड़ शेयर कैपिटल और 300 करोड़ से अधिक के टर्न ओवर वाली सभी पब्लिक लिमिटेड कंपनी में कम से कम एक महिला डायरेक्टर होना अनिवार्य है। इसी का परिणाम है कि 31 मार्च 2024 तक देश की विभिन्न कंपनियों में 8,37,316 महिला डायरेक्टर कार्यरत थीं। ग्रांट थार्टन भारत एलएलपी की नवीनतम सर्वे रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रबंधन में वरिष्ठ पदों पर महिलाओं की भागीदारी 2014 में 14 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में 34 प्रतिशत हो चुकी है, जो 33 प्रतिशत के वैश्विक औसत से भी ज्यादा है। नागर विमानन के क्षेत्र में भारतीय महिला पायलटों की संख्या वैश्विक अनुपात से 10 प्रतिशत ज्यादा है। जहां वैश्विक स्तर पर कुल पायलेटों में पांच प्रतिशत महिलाएं हैं, वहीं भारत में कुल 15 प्रतिशत महिला पायलेट कार्यरत हैं। महिलाओं को ध्यान में रखकर पेटेंट कानून में बदलाव किया गया है। यदि आवेदनकर्ता महिला है तो न सिर्फ उसे कम फीस देनी होगी, बल्कि आवेदन का निपटारा भी तीव्र गति से होगा। इसका परिणाम है कि पिछले पांच वर्षों में महिलाओं द्वारा पेटेंट के आवेदनों में 905 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। स्टार्टअप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना सभी में महिलाओं के लिए विशेष प्रोत्साहन हैं ताकि महिलाओं का सशक्तिकरण संभव हो।