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बिहार के इस मंदिर में आज भी होता है चमत्कार, मां दुर्गा भक्तों की हर मुराद करती है पूरी; 150 साल पुराना इतिहास

बिहार के अररिया में मां दुर्गा का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर मनोकामना सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। सच्चे मान से मांगी गई मुराद हर भक्तों की पूरी होती है। इस मंदिर में नेपाल से भी भक्त आते हैं। वहीं राज्य के अन्य जिलों से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। बताया जाता है कि दुर्गा मंदिर के स्थापना वर्ष से यहां छागर की बलि दी जाती थी।

By Prashant PrasharEdited By: Shashank ShekharUpdated: Thu, 12 Oct 2023 03:37 PM (IST)
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बिहार के इस मंदिर में आज भी होता है चमत्कार, मां दुर्गा भक्तों की हर मुराद करती है पूरी
संवाद सूत्र, सिकटी (अररिया)। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित सार्वजनिक दुर्गा मंदिर कुआड़ी किसी शक्तिपीठ से कम नहीं है। यह मंदिर मनोकामना सिद्ध पीठ के रूप में विख्यात है। यहां करीब 150 सालों से पूजा होती आ रही है।

नवरात्रि में मंदिर की रौनक बढ़ जाती है। दुर्गा मंदिर के स्थापना काल से ही यहां पर छागर की बलि दी जाती थी, लेकिन पिछले पांच सालों से इस प्रथा पर रोक लगा दी गई है।

अब वैष्णव पद्धति से पूजा अर्चना होती है। अब छागर के स्थान पर कुमढ़ अर्थात भतुआ की बलि दी जाती है। हिन्दू धर्म में नवरात्र का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यता है कि त्रेता युग में श्रीराम ने माता दुर्गा की विशेष आराधना कर रावण पर विजय प्राप्त की थी।

तब से हिन्दू धर्मावलंबी नवरात्र को धूमधाम से मनाते हैं। यहां कलश स्थापना से दशमी तक माता के सभी स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है।

मंदिर का इतिहास

यह मंदिर अतिप्राचीन है। बुजुर्गों का कहना है कि जब बकरा नदी के किनारे गांव बस रही थी, उससे पहले से यहां पूजा होती चली आ रही है। आजादी के पूर्व जब यहां महंत श्यामसुंदर भारती का कचहरी था तब उस स्थान पर मंदिर की स्थापना टिन और कच्ची दीवारों से मंदिर की देखरेख श्यामसुंदर भारती हीं किया करते थे।

उसके बाद महंथ परमानंद भारती के कंधों पर आया। जमींदारी प्रथा खत्म होने के बाद कुआड़ी के बड़े व्यवसायी भगवान लाल गुप्ता मंदिर की देख-रेख करने लगे।

एक दशक पहले जब मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच गया तो कुआड़ी निवासी किसान व महर्षि मेंही के परम शिष्य कृष्णचंद्र गुप्ता ने मंदिर के चारों तरफ दीवार का निर्माण करवाया। तब से लोगों का सहयोग मिलता गया और आज मंदिर भव्य रूप ले चुका है।

मंदिर की क्या है विशेषता

लोगों की मानें तो करीब डेढ़ सौ सालोंसे विधि-विधान पूर्वक प्राचीन मंदिर में पूजा-अर्चना होती आ रही है। नवरात्र में प्रत्येक दिन संध्या में भजन कीर्तन होता है। इसके बाद प्रसाद वितरण किया जाता है। षष्टी तिथि को जुड़वां बेल का संध्या पूजन होता है।

सप्तमी को माता के स्वरूप को पालकी पर प्रवेश कराया जाता है। महानिशा पूजा में सैकड़ों लोग भाग लेते हैं। वहीं, नवमी व दशमी को दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं के बीच महाप्रसाद खिचड़ी का वितरण किया जाता है।

भक्ति जागरण के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। आस्था के कारण हीं पड़ोसी देश नेपाल के श्रद्धालु भी मंदिर की चौखट पर नतमस्तक होते हैं।

क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी

मंदिर में सच्चे दिल से मन्नत मांगने पर हर मुरादें पूरी होती है। श्रद्धालु के आस्था के कारण यह मंदिर शक्तिपीठ का रूप ले चुका है। दिनों-दिन श्रद्धालुओं की इस मंदिर में आस्था बढ़ती जा रही है। मंदिर व पंडालों को स्थानीय कलाकारों द्वारा भव्यता से सजाया जाता है। रात्रि में दुधिया लाइिटंग लोगों को काफी आकर्षित करती है।- पंडित ज्ञानमोहन मिश्र, पुजारी

कहते हैं पूजा समिति के अध्यक्ष

यह प्राचीन मंदिर एक धरोहर है। हर साल पूजा सार्वजनिक रूप से होता है। दो मंजिला भवन निर्माण में सभी लोगों का सहयोग मिला है। आम लोगों के सहयोग से विधि-व्यवस्था का संधारण किया जाता है, जो इस मंदिर की बहुत बड़ी विशेषता है। नवमी व दशमी को भव्य मेले का आयोजन होता है। यहां आस-पास के दर्जनों गांव सहित नेपाल के श्रद्धालुओं की भीड़ होती है।- अमित कुमार साह, अध्यक्ष पूजा समिति

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