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Bihar News: रबी की फसल लगाने से पहले किसान जरूर करें ये काम, बंपर पैदावार के साथ होगी तगड़ी कमाई

रबी फसलों में भरपूर उत्पादन लेने के लिए उन्नत व प्रतिरोधी प्रभेदों के स्वच्छ स्वस्थ व पुष्ट बीज की बोआई करें। खेतों में बीज की बोआई के बाद फसल के रूप में स्वस्थ रहें इसके लिए बीज की अनुशंसित बीज शोधक से उपचार आवश्यक है। बीजों के अंदर व बाहर रोगाणु सुाुप्तावस्था में मिट्टी में व हवा में मौजूद रहते हैं।

By Navaneet MishraEdited By: Mohit TripathiUpdated: Sat, 18 Nov 2023 10:32 PM (IST)
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रबी फसल लगाने के पूर्व बीज का करें उपचार, अच्छी होगी फसल। ()

जागरण संवाददाता, भागलपुर। रबी फसलों में भरपूर उत्पादन लेने के लिए उन्नत व प्रतिरोधी प्रभेदों के स्वच्छ, स्वस्थ व पुष्ट बीज की बोआई करें। खेतों में बीज की बोआई के बाद फसल के रूप में स्वस्थ रहें, इसके लिए बीज की अनुशंसित बीज शोधक से उपचार आवश्यक है।

बीजों के अंदर व बाहर रोगाणु सुाुप्तावस्था में मिट्टी में व हवा में मौजूद रहते हैं। यह अनुकूल वातावरण मिलने पर अंकुरित पौधों पर रोग के लक्षण के रूप में आते हैं।

फसल में रोग के कारक फफूंद रहने पर फफूंदनाशी से, जीवाणु रहने पर जीवाणुनाशक से, सूत्रकृमि रहने पर सौर उपचार या कीटनाशी से उपचार किया जाता है। मिट्टी में रहने वाले कीटों से बीज की सुरक्षा के लिए कीटनाशी से बीजोपचार किया जाता है।

बीजोपचार करने से लागत में आती है कमी

पौधा संरक्षण विभाग के सहायक निदेशक सुजीत कुमार पाल ने बताया कि बीजोपचार बहुत ही सस्ता व सरल उपाय है। बीजोपचार करने में लागत से 11 गुणा लाभ व कभी-कभी महामारी स्थिति में 40 से 80 गुणा तक लागत से बचत तक होती है।

दलहनी फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार करना चाहिए। इसके लिए 250 ग्राम गुड़ को एक लीटर पानी में खौला लेते हैं। जब यह तार की चासनी बन जाए, तब इसे ठंडा कर इसमें राइजोबियम कल्चर को मिला दिया जाता है। फिर इसको बीज के उपर डालकर अच्छे से मिला दिया जाता है।

अलग-अलग दलहनी फसलों के लिए अलग-अलग राइजोबियम कल्चर उपलब्ध है। एक एकड़ खेत के लिए लगभग दो सौ ग्राम राइजोबियम कल्चर की आवश्यकता होती है।

बीज को उपचार करते समय हाथ में दस्ताना पहनना आवश्यक है। बीज को कभी भी शोधन के बाद धूप में नहीं सूखाना चाहिए। शोधित बीज को सूखाने के लिए खुली व छायादार जगह का व्यवहार करना चाहिए।

इस तरह करें बीज का उपचार

सीडड्रम विधि: सीडड्रम में बीज डालकर उसमें बीजोपचार के लिए अनुशंसित शोधक की मात्रा को डालकर उसमें लगे हैंडल के सहारे ड्रम को घूमाया जाता है, ताकि बीज के उपर एक परत चढ़ जाए।

घड़ा विधि: घड़ा में थोड़ा बीज व आवश्यक अनुपात में शोधक डालते हैं। थोड़ा-थोड़ा करके घड़े का दो तिहाई भाग भर देते हैं। घड़े का मुंह बंद कर हिलाते हैं कि बीज व शोधक अच्छी तरह मिल जाए।

स्लरी विधि: इस विधि में शोधक की अनुशंसित मात्रा गाढ़ा घोल बनाकर बीज के ढेर पर देकर उसे दस्ताना पहने हाथों से अच्छी तरह मिला देते हैं, ताकि बीज पर शोधक का परज चढ़ जाए।

घोल विधि: इस विधि से शोधक की अनुशंसित मात्रा का घोल पानी की निर्धारित मात्रा में बनाकर उसमें बीज को नियत समय तक डूबाकर रखा जाता है। आलू का उपचार इसी विधि से करना चाहिए।

आलू का बीजोपचार: आलू फसल में लगने वाली मुख्य बीमारियों से बचाव के लिए बीजशोधन आवश्यक है। इसके लिए मैन्कोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी का दो ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर बीज को लगभग आधे घंटे तक डूबाकर उपचारित कर छाया में सूखाकर 24 घंटे के अंदर बुआई कर देना चाहिए।

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