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खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनने की सिफारिश, 60 प्रतिशत तक निर्भरता आयात पर

खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनने या इस आयात को कम करने पर हमारा आयात बिल भी कम हो जाएगा। गत वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने खाद्य तेल के आयात पर 123078 करोड़ रुपये खर्च किए। नीति आयोग के मुताबिक भारत में खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति खपत अभी 19.7 किलोग्राम प्रतिवर्ष है जबकि विकसित देशों में प्रति व्यक्ति यह खपत 25.3 किलोग्राम की है।

By Jagran News Edited By: Yogesh Singh Updated: Thu, 29 Aug 2024 09:15 PM (IST)
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घरेलू उत्पादन नहीं बढ़ाया गया तो वर्ष 2030 तक हमें 220 लाख टन आयात करना पड़ सकता है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नीति आयोग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनने के लिए तिलहन की खरीदारी हर हाल में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सुनिश्चित करना, खाद्य तेल के आयात पर शुल्क में बढ़ोतरी, तिलहन के उत्पादन के लिए क्षेत्रफल को बढ़ाना और तिलहन के बीज की उपलब्धता के लिए हर ब्लाक में एक गांव को तिलहन के बीज वाले गांव के रूप में विकसित करने जैसी कई सिफारिश की है।

आयोग ने फूड इंडस्ट्रीज को घरेलू खाद्य तेल के इस्तेमाल पर इंसेंटिव देने के साथ तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिए निजी सेक्टर के साथ सहभागिता की भी सिफारिश की है। आयोग की यह सिफारिश इसलिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि पिछले 20 सालों से भारत खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए संघर्षरत है, लेकिन आयात कम होने का नाम नहीं ले रहा है। वर्ष 2022-23 में भारत ने 165 लाख टन खाद्य तेल का आयात किया था। घरेलू स्तर पर खाद्य तेल के होने वाले उत्पादन से सिर्फ 40-45 प्रतिशत जरूरतें पूरी हो पाती है।

60 प्रतिशत जरूरत को पूरा करने के लिए हमें आयात करना पड़ता है। खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनने या इस आयात को कम करने पर हमारा आयात बिल भी कम हो जाएगा। गत वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने खाद्य तेल के आयात पर 1,23078 करोड़ रुपए खर्च किए। नीति आयोग के मुताबिक भारत में खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति खपत अभी 19.7 किलोग्राम प्रतिवर्ष है जबकि विकसित देशों में प्रति व्यक्ति यह खपत 25.3 किलोग्राम की है। देश के विकास के साथ भारत में भी प्रतिव्यक्ति खपत इस स्तर पर पहुंच सकती है और तब खाद्य तेल की घरेलू मांग व आपूर्ति का अंतर वर्ष 2030 तक 223 लाख टन तक जा सकता है।

मतलब, अगर घरेलू उत्पादन नहीं बढ़ाया गया तो वर्ष 2030 तक हमें 220 लाख टन आयात करना पड़ सकता है और अगर अमेरिका की तरह 40.3 किलोग्राम की खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति खपत भारत की हो जाती है तो वर्ष 2030 तक 295 लाख टन खाद्य तेल का आयात करना पड़ेगा। ऐसे में मांग व आपूर्ति के इस अंतर को कम करने के लिए देश के उन हिस्सों में भी तिलहन की खेती शुरू करने की जरूरत है जहां अब तक यह खेती नहीं होती है।

बुंदेलखंड जैसे इलाके में बड़े पैमाने पर यह खेती हो सकती है। अभी आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु व महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मुख्य रूप से तिलहन की खेती होती है। आयोग ने पाम ऑयल की खेती के एरिया को बढ़ाने के लिए भी कहा है। खाद्य तेल के आयात में पाम आयल की बड़ी हिस्सेदारी है।

सरकार खाद्य तेल के आयात पर इसलिए भी शुल्क नहीं बढ़ा पाती है क्योंकि ऐसा करने से खाद्य तेल की खुदरा कीमत बढ़ जाती है जिससे महंगाई प्रभावित होने लगती है। आयात शुल्क बढ़ाने पर घरेलू किसानों को अच्छी कीमत मिलेगी और वे तिलहन के अधिक उत्पादन के लिए आकर्षित होंगे।