क्रिप्टो पर जादुई सोच कितनी कारगर, क्या अब भी रोशन है उम्मीदों का आसमान
जो चंद भारतीय निवेशक क्रिप्टो से जुड़े हुए थे उनमें से बहुत थोड़े ही बचे हैं जिनका विश्वास अब भी गहरा है। बाकियों ने अपनी जुए की इस आदत का गला घोंट लिया है और अपने घाव सहला रहे हैं। (जागरण फाइल फोटो)
धीरेंद्र कुमार, नई दिल्ली। क्रिप्टो ढहने के बाद कई गलों में आवाज और आवाजों में जान लौट आई है। ये वो लोग थे जो पहले कहा करते थे कि क्रिप्टो में कुछ नहीं है और जल्द ही बड़े पैमाने पर इसके प्रचार का अंत हो जाएगा। कई लोग फाइनेंशियल मेनिया के लंबे इतिहास में क्रिप्टो को कुछ अनोखा मानते हैं, तकनीकी तौर पर ये है भी। हालांकि, इसमें शामिल लोग अपनी सोच और मन:स्थिति में, हमारी नजरों से गुजरे करीब-करीब हर एसेट-प्राइस मेनिया जैसे ही हैं।
क्रिप्टो मेनिया को किसी अनोखी चीज की तरह देखना, हमें उसे समझने से रोकता है। इस बारे में सोचेंगे तो आपको भी यही लगेगा। डाट-काम मेनिया अनोखा था क्योंकि जिन ग्लोबल नेटवर्किंग के बिजनेस पर ये आधारित था, वो नए थे।
2008-10 का वैश्विक संकट अनोखा था क्योंकि इसकी शुरुआत उन सबप्राइम आधारित फाइनेंशियल एसेट्स से हुई थी, जो कुछ नए थे। 19वीं सदी का रेलवे मेनिया अनोखा था, क्योंकि रेल नई थी। 17वीं सदी में हालैंड का प्रसिद्ध ट्यूलिप मेनिया अनोखा था, क्योंकि फूलों में निवेश नई बात थी।
क्रिप्टो : कितना मुनाफा, कितनी सच्चाई
कुछ दिन पहले हार्वर्ड के फाइनेंस प्रोफेसर मिहिर देसाई का एक लेख पढ़ा। इसमें एक बड़ा दिलचस्प किस्सा था। इसका अनुवाद कुछ इस तरह होगा। 'एक सैन्य अकादमी में गेस्ट लेक्चर के दौरान जब एक बिटकाइन का मूल्य 60 हजार डालर के पास पहुंच गया तो मुझसे पूछा गया कि मैं क्रिप्टोकरेंसी के बारे में क्या सोचता हूं? बजाए अपना स्वाभाविक संदेह जताने के, मैंने छात्रों के बीच वोटिंग कराई। उनमें से आधे से ज्यादा लोन लेकर क्रिप्टोकरेंसी में ट्रेड कर चुके थे।'
देसाई क्रिप्टो-मेनिया का दोष उसे देते हैं, जिसे वो 'जादुई सोच' कहते हैं, जिसकी व्याख्या कुछ ऐसी होगी, 'ऐसी धारणा कि बिना इतिहास की परवाह किए अच्छी परिस्थितियां हमेशा कायम रहेंगी।' जाहिर है, इस तर्क में कुछ सच्चाई है और ऐसा कई लोगों ने कहा है।
लालच या निवेश?
क्रिप्टो पर इस जादुई सोच की मदद वो जबरदस्त प्रचार करती है, जिसके मुताबिक क्रिप्टो इंसानी इतिहास की पहली सरकार से स्वतंत्र करेंसी है। क्रिप्टो में निवेश को लेकर इतने सारे लोगों की दिलचस्पी पर की गई इस विवेचना के प्रति मुझे संदेह है। मैं समझता हूं कि ये सीधे-सीधे लालच का मामला है, जिसमें अथाह लाभ को टैक्स अधिकारियों से छुपा पाना इसके लालच को दोगुना कर देता है। क्रिप्टो में ट्रेड करने वाले अपने आसपास के लोगों पर एक नजर डालिए। जैसे ही भारी-भरकम लाभ और जीरो टैक्स के फायदे गायब हुए, क्रिप्टो में उनकी सारी दिलचस्पी हवा हो गई।
उम्मीदों की हिलोर
क्या आप अपने-आप से एक काल्पनिक सवाल पूछेंगे? क्रिप्टो में लोगों की दिलचस्पी का स्तर क्या होता अगर इसके रिटर्न सालाना 6-7 प्रतिशत की दर पर ही मंडराते रहते? इसके स्वतंत्र करेंसी होने के सारे सिद्धांत अपनी जगह अटल रहते तो भी इसपर कोई ध्यान नहीं देता। चलिए एक काम करते हैं कि किसी प्रचार से प्रभावित नहीं होते।
असल में, लोग क्रिप्टो में उसी वजह से निवेश कर रहे थे जिस वजह से उन्होंने ट्यूलिप से लेकर डाट काम तक हर बबल में निवेश किया था। वो वजह थी ग्राफ का तेजी से ऊपर चढ़ना। दरअसल, ये सारी बात सिर्फ उम्मीद पर टिकी थी। अब बिटकाइन में तेजी है। साल की शुरुआत से अब तक दाम करीब 20 प्रतिशत बढ़े हैं। इससे क्रिप्टो-सनकियों के दिलों में उम्मीद फिर से हिलोरे मारने लगी हैं।
(लेखक वैल्यू रिसर्च आनलाइन डाट काम के सीईओ हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)