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Delhi: आखिर मेरी बिटिया कब मिलेगी... नहर किनारे रोते हुए पूछती रही मां, दरिंदगी के बाद हत्या कर फेंका था शव

मेरी इकलौती बिटिया को मुझसे बिछड़े आठ दिन हो गए आखिर मिल क्यों नहीं रही है। आखिरी बार अपने हाथों से उसे खाना खिलाया था। मुझे क्या पता था कि अब मेरी बिटिया मेरे हाथों का खाना नहीं खा पाएगी। मुनक नहर में बुधवार को सर्च आपरेशन के दौरान मृतक बच्ची की मां यह बात कहते हुए फफक-फफक कर रोने लगती हैं।

By shamse alamEdited By: GeetarjunUpdated: Thu, 21 Dec 2023 01:53 AM (IST)
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खेड़ा खुर्द स्थित मुनक नहर में बच्ची के शव को ढूंढती एनडीआरएफ की टीम।

जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली। मेरी इकलौती बिटिया को मुझसे बिछड़े आठ दिन हो गए, आखिर मिल क्यों नहीं रही है। आखिरी बार अपने हाथों से उसे खाना खिलाया था। मुझे क्या पता था कि अब मेरी बिटिया मेरे हाथों का खाना नहीं खा पाएगी। मुनक नहर में बुधवार को सर्च ऑपरेशन के दौरान मृतक बच्ची की मां यह बात कहते हुए फफक-फफक कर रोने लगती हैं।

पास में ही बैठे बच्ची के पिता के आंखों में भी आसूं आ जाते हैं। वह अपनी पत्नी को हर संभव दिलासा देने की कोशिश करते हैं, फिर भी उनके आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।

माता-पिता नहर किनारे एक टक लगाए इस उम्मीद में बैठे थे कि शायद उनकी बच्ची का शव मिल जाए। कभी झाडि़यों के तरफ तो कभी रेस्क्यू कर रही टीम के तरफ बार-बार देख रहे थे।

बच्ची की मां मौके पर मौजूद पुलिस के जवानों से बस एक ही एक ही बात पूछ रही थी कि आखिर मेरी बिटिया कब मिलेगी। पुलिस भी पीड़ित परिवार को दिलासा देती हुई दिखी। नहर किनारे जमीन पर बैठी बच्ची की मां के आंखों से आंसू नहीं थम रहे थे। उन्होंने कहा कि इंतजार अब लंबा होता जा रहा है। आखिर कब तक मेरी बिटिया का पता चलेगा।

घर में आते ही जुबान पर आता था बेटी का नाम

पिता को भी अपनी इकलौती बेटी से बहुत लगाव था। नहर किनारे निराशा में डूबे बच्ची के पिता ने रुंधे स्वर में कहा कि घर की चौखट के भीतर आते ही सबसे पहले बेटी का ही नाम ही जुबान पर आता था, अब घर जाते हैं तो बेटी का नाम जुबान पर आते-आते अटक जाता है, जब ये आभास होता है कि अब वो इस दुनिया में नहीं है। अब वे किसे आवाज दें।

दरिंदे को भगवान कभी नहीं करेगा माफ

फिर आगे खुद को कोसते हुए कहती हैं, मेरी बेटी के साथ बुरा करने वाले को भगवान कभी माफ नहीं करेगा। मेरी इकलौती बेटी थी, काफी लाड, प्यार से उसे पाला था। बेटी पढ़ने में काफी अच्छी थी। हम पति-पत्नी दोनों ही नौकरी करते थे, ताकि हमारी बिटिया को आगे पढ़ाई में किसी भी तरह की कोई परेशानी ना हो, आगे पढ़ लिखकर बिटिया समाज में अपना नाम रोशन करना चाहती थी, लेकिन हमारी बेटी के सपनों को कुचल दिया गया। दोनों मासूम बेटे भी बार-बार पूछते हैं कि मां दीदी घर कब आएगी। आखिर कब तक बेटों को इस सच्चाई से दूर रखूंगी।

क्या मालूम था कि अंतिम बार बेटी को खाना खिला रही हूं

आखिरी बार बेटी स्कूल से आई तो, बेटी कह रही थी कि मां आज आपके ही हाथों से ही खाना खाऊंगी। मैंने भी बच्ची की जिद्द पूरी की, और अपने हाथों से ही खाना खिलाया था। मुझे क्या पता था कि अब अपनी बिटिया को खाना नहीं खिला पाउंगी। यह बात कहते हुए फिर से मां रोने लगती है।