टीबी की जांच अब महज ढाई घंटे और 35 रुपये में! ICMR ने तैयार की नई तकनीक
आपको टीबी है या नहीं यह महज ढाई घंटे और 35 रुपये के खर्च में ही पता चल सकेगा। आईसीएमआर ने इस नई को विकसित की है। इससे एक बार में 1500 से ज्यादा नमूनों की जांच संभव है। पारंपरिक तरीकों से डेढ़ महीने लगने वाली जांच अब चंद घंटों में पूरी हो जाएगी। जानिए इस क्रांतिकारी तकनीक के बारे में।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के डिब्रूगढ़ स्थित क्षेत्रीय केंद्र ने क्षयरोग (टीबी) की जांच की ऐसी किफायती तकनीक विकसित की है जिसमें महज 35 रुपये में रोगी के बलगम से रोग का पता लगाया जा सकता है।
यही नहीं, इस तकनीक के तहत एक बार में करीब ढाई घंटे में 1500 से ज्यादा नमूनों की जांच की जा सकती है। यानी चंद घंटों में ही रिपोर्ट आ जाएगी जबकि अभी आमतौर पर टीबी की पुष्टि होने में 42 दिन लग जाते हैं। वर्तमान जांच तकनीक भी महंगी है।
हल्का और पोर्टेबल सिस्टम: ICMR
आइसीएमआर के सूत्रों ने कहा कि यह ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) निदान प्रणाली बेहद सरल है और इसमें तीन चरणों में परीक्षण होता है। इस तकनीक का नाम 'क्रिसपर केस बेस्ड टीबी डिटेक्शन सिस्टम' है। यह हल्का व पोर्टेबल सिस्टम है। वर्तमान में माइक्रोस्कोपी और न्यूक्लियक एसिड आधारित विधियों के जरिये टीबी की जांच होती है। इनमें समय भी अधिक लगता है और उत्तम श्रेणी के उपकरणों की भी जरूरत पड़ती है।
पारंपरिक तरीके से डेढ़ माह का लगता है समय
दूसरे शब्दों में कहें तो पारंपरिक निदान तकनीक के जरिये टीबी की पुष्टि करने के लिए अभी करीब डेढ़ माह लग जाता है। एक अधिकारी ने बताया कि टीबी की बीमारी एक वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है। इसके प्रभावी रोग प्रबंधन के लिए सटीक और त्वरित निदान उपकरणों के विकास की जरूरत है। वर्तमान निदान पद्धतियां (डायग्नोस्टिक मैथड) संवेदनशील, अधिक समय लगाने वाली और महंगी हैं।
व्यावसायीकरण के लिए संगठनों से मांगे आवेदन
आईसीएमआर ने अब माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस का पता लगाने के लिए 'क्रिसपर केस बेस्ड टीबी डिटेक्शन सिस्टम' के व्यावसायीकरण के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण करने हेतु पात्र संगठनों, कंपनियों, निर्माताओं को आमंत्रण दिया है। आइसीएमआर का क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र डिब्रूगढ़ इसके लिए सभी चरणों में मार्गदर्शन और तकनीकी सहयोग प्रदान करेगा।