श्रीराम चौलिया। 19वें जी-20 शिखर सम्मलेन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ब्राजील के रियो डी जेनेरो में होंगे। गत वर्ष भारत ने इस अहम अंतरराष्ट्रीय संस्थान की मेजबानी में ऊंचे मानक स्थापित किए और विश्व स्तर पर अपने नेतृत्व एवं कौशल का परिचय दिया था। हालांकि जी-20 की अध्यक्षता रोटेशन नीति के तहत अभी ब्राजील के पास है जो अगले साल दक्षिण अफ्रीका के पास रहेगी।

जहां तक इस संस्था को प्रभावित करने का पहलू है तो भारत ने इसकी प्रकृति और दिशा को आकार देने में सतत प्रतिबद्धता दिखाई है। जी-20 को केवल राष्ट्रीय प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले माध्यम के रूप में देखने के बजाय भारत ने इसे विश्व कल्याण हेतु अपने कर्तव्य के तौर पर देखा है और अध्यक्षता छोड़ने के बाद भी उतनी ही लगन एवं श्रद्धा से इसकी सफलता के लिए योगदान दिया है।

इस संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान अतिशयोक्ति नहीं है कि वर्तमान अध्यक्ष ब्राजील ने ‘भारत की विरासत को आगे बढ़ाया है।’ आज भारत जी-20 की ‘तिकड़ी’ का सदस्य है, जो संस्था की निरंतरता को सुनिश्चित करती है। इस उत्तरदायित्व को भारत ने निष्ठा से निभाया है और कई मुद्दों पर अमिट छाप छोड़ी है।

अपनी अध्यक्षता में ब्राजील की पहली प्राथमिकता भूख और गरीबी के खिलाफ लड़ाई है। इससे संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों पर प्रगति में तेजी लाने के लिए भारत की मेजबानी के दौरान दी गई प्राथमिकता को ही आगे बढ़ाया जा रहा है। विश्व के कम विकसित देशों में ब्राजील ने स्वयं गरीबी और भुखमरी जैसी समस्याओं से निपटने के लिए कई परियोजनाओं और कार्यक्रमों को कार्यान्वित किया है और वह चाहता है कि जी-20 द्वारा ब्राजीलियाई खाके को वैश्विक मान्यता मिले।

उल्लेखनीय है कि भारत का भी विकासशील जगत में सहयोग प्रदान करने का बड़ा अनुभव है और जी-20 अध्यक्षता के दौरान भारतीय ‘डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे’ को मान्यता मिली थी। डिजिटल माध्यमों के जरिये अंतिम कतार में खड़े आम व्यक्ति तक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने में मोदी युग में भारत ने जो कीर्तिमान बनाए हैं, अब वह जी-20 के सहारे दुनिया के कोने-कोने में अपनाए जा रहे हैं।

इसके अलावा भारत ने ‘महिला नेतृत्व वाले विकास’ की संकल्पना कर उसे अपनी जी-20 अध्यक्षता की आधारशिलाओं में से एक बनाया था। ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की जी-20 अध्यक्षताओं के अंतर्गत इन दो भारतीय पहलों को आगे ले जाया जा रहा है।

मेजबान ब्राजील की दूसरी प्राथमिकता हरित ग्रह बनाने के लिए ऊर्जा परिवर्तन से जुड़े संक्रमण को सक्षम बनाना है। इस ध्येय में भी भारत द्वारा रखी गई नींव की साफ झलक दिखती है। भारत ने ‘हरित विकास’ और ‘जलवायु वित्त’ के विचारों को 2023 में जी-20 के एजेंडे में सर्वोपरि रखा और विकसित देशों को वित्तीय सहायता के लिए अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के लिए सहमत किया।

जी-20 के दिल्ली घोषणापत्र में जलवायु संबंधित निवेश और वित्त को बड़े पैमाने पर बढ़ाने की आवश्यकता पर सर्वसम्मति बनी थी और “वैश्विक स्तर पर सभी स्रोतों से अरबों से खरबों डालर तक का वित्तीय सहयोग” जुटाने का निर्णय लिया गया था।

हालांकि, आज भी जी-20 के विकसित सदस्य विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से जूझने के लिए बड़े पैमाने पर वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने से कतरा रहे हैं। ऐसी स्थिति में भारत ने इस विषय को प्रमुखता देने में भूमिका निभाई है और अब ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका उसी आधार को विस्तार दे रहे हैं।

अमेरिका में आर्थिक राष्ट्रवादी डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में वापसी के चलते जलवायु परिवर्तन संबंधित वित्तीय सहायता के मोर्चे पर मुश्किलें बढ़ने के आसार हैं। यदि ऐसा होता है तो भारत, ब्राजील और अन्य अग्रणी विकासशील देशों को यूरोप, ब्रिटेन और जापान के साथ मिलकर अभिनव हल तलाशने होंगे।

प्रधानमंत्री मोदी ने जी-20 में ‘लाइफ’ (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) का महामंत्र दिया था और इस अवधारणा को दिल्ली जी-20 शिखर बैठक में प्रमुखता से सराहा गया था। ब्राजील ने पर्यावरण के लिए सामाजिक समावेशन पर जोर दिया है, जिसमें आदिवासियों और पारंपरिक समुदायों की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित किया गया है। यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन जैसे महा संकट से निपटने के लिए कार्रवाई व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर दोनों पर होनी चाहिए। भारत और ब्राजील ने इस समस्या की तह तक जाकर जो सकारात्मक और सरल समाधान पेश किए, वे मानवता को नष्ट होने से बचा सकते हैं।

ब्राजील की तीसरी प्राथमिकता वैश्विक शासन में सुधार से जुड़ी है। भारत के नेतृत्व में जी-20 ने “बेहतर, व्यापक एवं अधिक प्रभावी” अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान और बहुपक्षीय बैंक बनाने की पहल की थी ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आम नागरिकों में वैश्विक शासन के प्रति विश्वास कायम रखा जा सके।

ब्राजील ने इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, जिसकी बनावट 1965 से नहीं बदली है, में सुधार के लिए प्रभावी और ठोस कार्रवाई को विषयवस्तु में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि भारत, ब्राजील, जापान और जर्मनी ‘जी-4’ के सदस्य हैं जो सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के हकदार हैं। दुख की बात है कि प्रक्रियात्मक और राजनीतिक बाधाओं ने सुरक्षा परिषद सुधारों की राह में अवरोध खड़े कर रखे हैं। भारत जी-20 के जरिये गतिरोध दूर करने के लिए ब्राजील के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है।

पिछले साल की तरह इस बार भी जी-20 में भूराजनीतिक ध्रुवीकरण और विश्व के कई हिस्सों में चल रहे घमासान युद्धों के कारण सर्वसम्मति बनाना काफी कठिन है। भारत ने जिस समझबूझ के साथ जी-20 शिखर सम्मेलन में व्यापक सर्वानुमति हासिल करने का प्रयास किया था, उन प्रयासों में ब्राजील भी हमारा सहभागी था।

पीएम मोदी ने अशांत, अस्थिर एवं अनिश्चित वैश्विक वातावरण में ‘सेतु’ का किरदार बखूबी निभाया था और उसी परिपक्वता की आवश्यकता ब्राजील और उसके बाद दक्षिण अफ्रीका को है। भारत ने आशा की किरण बनकर अपने आदर्श व्यवहार से जो नई राह दिखाई है, वह कुंजी भविष्य में भी जी-20 के लिए सफलता के द्वार खोलती रहेगी।

(लेखक जिंदल स्कूल आफ इंटरनेशनल अफेयर्स में प्रोफेसर और डीन हैं)