जागरण संपादकीय: बुलडोजर कार्रवाई, सुप्रीम कोर्ट के अहम दिशा-निर्देश
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों से यह स्पष्ट है कि अनधिकृत निर्माण के खिलाफ नोटिस भेजने और मामले की सुनवाई करने के बाद बुलडोजर कार्रवाई संभव है। इसी के चलते सुप्रीम कोर्ट के फैसले की व्याख्या इस रूप में भी की जा रही है कि इससे माफिया तत्वों और पेशेवर अपराधियों पर नियंत्रण करना आसान हो जाएगा। देखना है कि ऐसा होता है या नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर दिशा-निर्देश जारी करके यह सुनिश्चित करने का काम किया कि अतिक्रमण, अवैध निर्माण के साथ-साथ अपराध के खिलाफ मनमानी कार्रवाई न होने पाए। ऐसा किया जाना आवश्यक था, क्योंकि बुलडोजर कार्रवाई अपराध में लिप्त तत्वों के खिलाफ भी होती थी और इस आधार पर होती थी कि उन्होंने अपना मकान, दुकान या अन्य कोई इमारत अवैध रूप से बना रखी है। शासन-प्रशासन को ऐसी कार्रवाई करने में इसलिए आसानी होती थी, क्योंकि प्रायः लोग अपने भवनों का निर्माण स्वीकृत मानचित्र या तय मानकों के हिसाब से नहीं कराते।
बुलडोजर कार्रवाई को इसलिए जनता का समर्थन मिलता था, क्योंकि उसकी यह आकांक्षा रहती है कि अपराधी तत्वों को यथाशीघ्र दंड मिले। इसी कारण बुलडोजर कार्रवाई की सराहना होती थी, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस तरह की कार्रवाई में संदिग्ध अपराधी-अभियुक्त का घर-दुकान ध्वस्त होने से उसके स्वजन भी सजा पाते थे। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि किसी आरोपित की सजा उसके परिवार वालों को नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई को लेकर जो दिशानिर्देश जारी किए, उनके आधार पर इस नतीजे पर भी नहीं पहुंचा जाना चाहिए कि अवैध निर्माण और अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई का रास्ता बंद होने जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों से यह स्पष्ट है कि अनधिकृत निर्माण के खिलाफ नोटिस भेजने और मामले की सुनवाई करने के बाद बुलडोजर कार्रवाई संभव है। इसी के चलते सुप्रीम कोर्ट के फैसले की व्याख्या इस रूप में भी की जा रही है कि इससे माफिया तत्वों और पेशेवर अपराधियों पर नियंत्रण करना आसान हो जाएगा। देखना है कि ऐसा होता है या नहीं? जो भी हो, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर अतिक्रमण हटाने और जमीनों पर कब्जे रोकने पर नहीं पड़ना चाहिए। इसी तरह अपराधी तत्वों का दुस्साहस भी नहीं बढ़ना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह सही कहा कि बिना फैसले किसी को दोषी न माना जाए और अपराधी को दंड देना अदालत का काम है, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या अदालतें यह काम सही तरह से कर पा रही हैं? अच्छा होता कि सुप्रीम कोर्ट पर इस प्रश्न पर भी गौर करता, क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं कि अपराधी और माफिया तत्वों को उनके किए की सजा मुश्किल से ही मिलती है। मिलती भी है, तो बहुत विलंब से। बाहुबली, धनबली किस्म के या फिर राजनीतिक असर वाले अपराधी तत्वों के मामलों में यही अधिक देखने को मिलता है कि वे अपने खिलाफ चल रहे मुकदमों को लंबा खींचने में सफल हो जाते हैं। यह भी किसी से छिपा नहीं कि संगीन अपराध में लिप्त तत्वों को भी शीघ्र सजा नहीं मिल पाती। इसी कारण लोग बुलडोजर कार्रवाई को न्याय की संज्ञा देते हैं। अच्छा होता कि सुप्रीम कोर्ट यह देख पाता कि बुलडोजर कार्रवाई न्याय में देरी की उपज है।