डॉ. सुरजीत सिंह। अजरबैजान के बाकू शहर में चल रहे वार्षिक जलवायु सम्मेलन काप 29 में वैश्विक कार्बन बाजार की संकल्पना को अंतिम रूप देने के लिए मतदान किया जा चुका है। यद्यपि संयुक्त राष्ट्र निकाय के अंतर्गत यह 2022 से लागू हो गया था, परंतु काप 29 में इस पर पूर्ण रूप से सहमति व्यक्त कर दी गई है।

यूएन द्वारा स्वीकृत यह पहला कार्बन क्रेडिट बाजार 2025 से अस्तित्व में आएगा। इसमें विभिन्न देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को अधिक प्रभावी ढंग से कम करने के साथ-साथ एक दूसरे के साथ कार्बन क्रेडिट का व्यापार भी करेंगे। कार्बन बाजार नियमों के अनुसार यदि कोई इकाई या देश तय सीमा से कम कार्बन का उत्सर्जन करता है तो उसको कार्बन क्रेडिट दिया जाएगा, जिसे वह किसी दूसरी इकाई या देश को पैसे से बेच भी सकता है।

यह समझौता द्विपक्षीय या बहुपक्षीय हो सकता है। इस बाजार को बनाने का उद्देश्य जलवायु क्रियाओं की लागत को कम करके प्रभावी ढंग से लागू करना है। इससे न सिर्फ वैश्विक सामंजस्य स्थापित होगा, बल्कि हम एक हरित स्थायी भविष्य की ओर भी अग्रसर हो सकेंगे। कार्बन बाजार उन देशों और संगठनों के लिए विकास के नए रास्ते खोलेगा, जो उत्सर्जन को कम करने एवं जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए तकनीकी नवाचारों के साथ कार्बन क्रेडिट के विकास और व्यापार को प्रोत्साहन दे रहे हैं।

क्रेडिट बाजार में यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन आन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) एक केंद्रीयकृत संस्था के रूप में कार्य करेगी, जो प्रत्येक देश या उसके विभिन्न क्षेत्रों के लिए कार्बन उत्सर्जन की सीमा का निर्धारण करेगी। यदि किसी देश ने अपनी निर्धारित सीमा का कार्बन उत्सर्जित कर लिया है, फिर भी वह उत्पादन जारी रखना चाहता है, तो वह ऐसे किसी देश से कार्बन खरीद सकता है, जिनका कार्बन उत्सर्जन निर्धारित सीमा से कम रहा हो।

कार्बन क्रेडिट को मुद्रा से जोड़ने से न केवल सभी देश कार्बन डाईआक्साइड के उत्सर्जन में कमी को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित होंगे, बल्कि एक ऐसे तंत्र को भी विकसित करने में मदद करेंगे, जिससे गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित किया जा सके। वैश्विक कार्बन बाजार के आपसी व्यापार से देशों में न केवल परस्पर निकटता बढ़ेगी, बल्कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को और अधिक मजबूत भी बनाया जा सकेगा।

कार्बन बाजार के अस्तित्व में आने के बाद से न केवल जलवायु पविर्तन की दशा एवं दिशा में परिवर्तन आएगा, बल्कि संसाधनों पर नियंत्रण के लिए वैश्विक भू-राजनीति का नया अध्याय भी प्रारंभ होगा, जो भू-राजनीति के लिए गेम चेंजर साबित होगा। विकसित देश विशेषकर यूरोपीय संघ और अमेरिका अब कार्बन केडिट के लिए तैयार हैं। चीन भी अपने उत्सर्जन को नियंत्रित कर पश्चिमी देशों के साथ संबंध मजबूत बनाने के लिए तत्पर है। ऊर्जा प्रधान देश रूस भी इस संतुलन को साधने का प्रयास करेगा।

भारत पहले से ही कार्बन उत्सर्जन में कमी को लेकर एवं राष्ट्रीय स्तर पर कार्बन बाजार स्थापित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धताएं व्यक्त करता रहा है। पंचामृत योजना के तहत भारत वर्ष 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में बढ़ रहा है। भारत ने अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के हिस्से के रूप में 2005 के स्तर से 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करने और 2030 तक 2.5 से तीन अरब टन अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण का कार्बन सिंक बनाने की प्रतिबद्धता जताई है।

भारत इस दिशा में कितना गंभीर है इसे हाल के आम बजट से भी समझा जा सकता है, जिसमें सरकार ने उद्योगों को ऊर्जा दक्षता लक्ष्यों से उत्सर्जन लक्ष्यों में स्थानांतरित करने की दिशा में कार्य की शुरुआत की है। ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 के तहत देश में राष्ट्रीय कार्बन बाजार बनाने पर भी काम शुरू कर दिया गया है।

जुलाई 2023 में ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन को कम करने के लिए कार्बन क्रेडिट और ट्रेडिंग योजना (सीसीटीएस) की शुरुआत की जा चुकी है। भारत का स्वैच्छिक कार्बन बाजार 1.2 अरब डालर से अधिक का है। कार्बन क्रेडिट उत्पन्न करने वाली भारत की शीर्ष संस्थाएं उत्सर्जन की भरपाई के लिए उपयोग किए जाने वाले कार्बन क्रेडिट से लगभग 65.2 करोड़ डालर कमा चुकी हैं।

अब भारत सरकार को उद्योगों में आधुनिकीकरण, नवीन तकनीकी और नवाचार के प्रयोगों को बढ़ाकर कार्बन क्रेडिट को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। खाली पड़ी लगभग 15 लाख हेक्टेयर भूमि पर पेड़ लगाकर एवं जंगलों का संरक्षण करके भी कार्बन क्रेडिट को बढ़ाने की दिशा में कार्य किया जाना चाहिए। ग्रीन बांड और सतत वित्त की योजनाओं से अधिक लाभ मिलने से ग्रीन निवेश के प्रति आकर्षण को बढ़ाकर अंतरराष्ट्रीय निवेश को भी आकर्षित किया जा सकता है।

किसान कार्बन खेती करके अधिक कमाई कर सकते हैं। ऊर्जा से लेकर रियल एस्टेट तक के विभिन्न क्षेत्रों में कार्बन क्रेडिट से संबंधित नए नियम बनाकर ऊर्जा की बचत एवं वनीकरण को प्रोत्साहित किया जा सकता है जिससे न सिर्फ ग्रीनहाउस उत्सर्जन में कटौती होगी, बल्कि कार्बन क्रेडिट भी अर्जित किए जा सकते हैं।

शहरों के कचरे से बिजली उत्पादन को बढ़ावा देकर भी कार्बन क्रेडिट बनाए जा सकते हैं। वर्तमान में भारत एक ऐसे महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है, जहां कार्बन बाजार और आर्थिक विकास के साथ अपने जलवायु लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से संतुलित स्थापित करना होगा। इसके लिए कार्बन बाजार को रणनीतिक रूप से डिजाइन करके, मौजूदा योजनाओं को एकीकृत करके और नवाचार को प्रोत्साहित करके भारत खुद को सतत विकास में एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित कर सकता है।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)