जागरण संपादकीय: पारदर्शिता को प्रोत्साहन, महत्वाकांक्षी योजना है पीएम आवास योजना
PM Awas Yojana Scheme अनुत्पादक अथवा मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली योजनाओं की होड़ को खत्म करने की जरूरत है। सरकारी धन का इस्तेमाल वोट बैंक बनाने में नहीं होने दिया जाना चाहिए। यह सही समय है कि प्रत्येक सरकारी योजना में लोगों को वैसी ही सुविधा दी जाए जैसी पीएम आवास योजना के आवेदकों को दी जा रही है।
मोदी सरकार की अपने घर का सपना पूरा करने वाली पीएम आवास योजना के दूसरे चरण में जो विभिन्न सुधार किए गए, उनमें सबसे उल्लेखनीय यह है कि अब आवेदक यह भी जान सकेंगे कि उनके आवेदन की क्या स्थिति है। इससे उन्हें केवल यही पता नहीं चलेगा कि उनके अपने घर का सपना कब तक पूरा होगा, बल्कि कोई अड़चन आने पर वे इससे भी अवगत हो सकेंगे कि उसके लिए जिम्मेदार कौन है। इसके चलते सरकार को भी पीएम आवास योजना के तहत निर्मित होने वाले घरों को समय पर पूरा कराने में आसानी होगी। पीएम आवास योजना एक महत्वाकांक्षी योजना है। इस योजना के पहले चरण में 1.18 करोड़ घर बनाने की मंजूरी दी गई थी। इनमें से अधिकांश बन चुके हैं।
इस योजना के दूसरे चरण में एक करोड़ घर बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए दस लाख करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। इसमें से 2.3 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी भी शामिल है। इतनी बड़ी राशि का समय पर सही उपयोग हो, इसके लिए हरसंभव उपाय किए जाने चाहिए। फिलहाल यह कहना कठिन है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के उन सभी लोगों को एक अदद छत कब नसीब हो पाएगी, जिनके पास अपना घर नहीं है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पीएम आवास योजना करोड़ों लोगों की अभिलाषा को पूरा करने में सहायक बन रही है।
आवास विहीन लोग जब अपना घर हासिल करते हैं तो वे नागरिक सुविधाओं से लैस होकर बेहतर जीवन जीने के साथ स्वयं को कहीं अधिक सक्षम ही नहीं पाते, बल्कि उनमें आत्मविश्वास भी बढ़ता है। वे अपनी आय बढ़ाने के लिए तत्पर होते हैं और इस तरह राष्ट्र के आर्थिक उत्थान में सहायक होते हैं। केंद्र सरकार हो अथवा राज्य सरकारें, उन्हें ऐसी योजनाओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए, जो लोगों को अपने पैरों पर खड़ा कर सकें। यह ठीक नहीं कि जब लोगों को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से अधिकाधिक सक्षम बनाने वाली योजनाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता है, तब लोकलुभावन योजनाओं को लागू करने की होड़ मची है।
अनुत्पादक अथवा मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली योजनाओं की होड़ को खत्म करने की जरूरत है। सरकारी धन का इस्तेमाल वोट बैंक बनाने में नहीं होने दिया जाना चाहिए। यह सही समय है कि प्रत्येक सरकारी योजना में लोगों को वैसी ही सुविधा दी जाए, जैसी पीएम आवास योजना के आवेदकों को दी जा रही है। इससे न केवल योजनाओं के अमल में पारदर्शिता आएगी, बल्कि उन्हें समय पर पूरा करने में मदद भी मिलेगी। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सरकारी कामकाज में अभी भी पारदर्शिता का अभाव है। कम से कम यह तो हर सरकारी विभाग में होना चाहिए कि लोगों को यह पता चले कि उनके आवेदन की क्या स्थिति है या फिर उन्होंने जो शिकायत की है, उसका समाधान कहां और क्यों अटका है?