विचार : एक बुरे धंधे पर लगाम, आनलाइन गेमिंग कंपनियों पर कसा शिकंजा
भारत का आनलाइन गेमिंग बाजार तेजी से बढ़ा है। 2023- 24 में यह 23 प्रतिशत की दर से बढ़कर 3.8 अरब डालर तक पहुंच गया था। एक आंकड़े के अनुसार अपने देश में 2024 में आनलाइन गेम खेलने वालों की संख्या 45 करोड़ से अधिक हो चुकी थी लेकिन इस आकर्षक तस्वीर के पीछे उस बुरे धंधे की अनदेखी नहीं की जा सकती जो खतरा बन गया था।
संजय गुप्त। मोदी सरकार की ओर से लोकसभा और फिर राज्यसभा में आनन-फानन पारित प्रमोशन एंड रेगुलेशन आफ आनलाइन गेमिंग बिल, 2025 कानून में परिवर्तित हो गया और इसी के साथ उस पर अमल भी शुरू हो गया। इसके चलते कई आनलाइन गेमिंग कंपनियों ने अपने आनलाइन मनी गेम बंद करने शुरू कर दिए। जब से इंटरनेट का प्रसार एवं उसकी उपलब्धता बढ़ी है और मोबाइल फोन पर आनलाइन गेम्स का चलन बढ़ा है, तब से आनलाइन गेमिंग के क्षेत्र में कुछ ऐसी कंपनियां भी आईं, जिन्होंने गेम की आड़ में सट्टेबाजी और जुए का कारोबार शुरू कर दिया।
पिछले कई वर्षों से केंद्र एवं राज्य सरकारें इससे अच्छी तरह परिचित थीं कि पैसे के लेन-देन आधारित आनलाइन गेम्स कंपनियां गेम के नाम पर सट्टेबाजी का खेल खेल रही थीं। इस सट्टेबाजी के कारण तमाम लोग जुए की लत में अपना नुकसान कर रहे थे। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश आदि सरकारों ने तो उन पर पाबंदी भी लगाई, लेकिन संबंधित उच्च न्यायालयों ने राज्य सरकारों के तर्कों को खारिज कर दिया और सट्टेबाजी वाले आनलाइन गेम्स को कौशल से जुड़ा खेल करार दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि ऐसी कंपनियां अपना कारोबार खुलकर करने लगीं और इनमें से एक कंपनी तो भारतीय क्रिकेट टीम की प्रायोजक भी बन गई और उसका प्रचार नामी क्रिकेटर करने लगे।
यह अच्छा हुआ कि केंद्र सरकार आनलाइन गेमिंग के नाम पर जारी सट्टेबाजी और जुए को लेकर चेती। उसकी ओर से आनलाइन मनी गेम्स पर रोक लगाना आवश्यक हो गया था। इस संदर्भ में जो कानून बनाया गया है, वह आनलाइन सट्टेबाजी और जुए पर तो नियंत्रण की कोशिश है, लेकिन इसी के साथ वह कौशल वाले आनलाइन गेम्स को बढ़ावा भी देने वाला है। इन दोनों के बीच अंतर करना आवश्यक है, क्योंकि जहां आनलाइन सट्टेबाजी सामाजिक और आर्थिक समस्याएं पैदा कर रही थी, वहीं कौशल वाले आनलाइन गेम इंटरनेट आधारित एक नया उद्यम हैं। इन्हें पूरी दुनिया में बढ़ावा मिल रहा है और लोग अपने कौशल एवं शौक के हिसाब से उन्हें खेलते हैं। इसकी प्रतियोगिताएं भी होने लगी हैं। चूंकि इनमें पैसे का कोई लेन-देन नहीं होता, इसलिए इन्हें बढ़ावा मिलने में हर्ज नहीं। आज करोड़ों लोग और विशेष रूप से युवा आनलाइन गेमिंग में रुचि रखते हैं। यह भी एक उद्योग का रूप ले चुका है और लोगों को रोजगार और सरकार को राजस्व उपलब्ध कराता है।
भारत का आनलाइन गेमिंग बाजार तेजी से बढ़ा है। 2023- 24 में यह 23 प्रतिशत की दर से बढ़कर 3.8 अरब डालर तक पहुंच गया था। एक आंकड़े के अनुसार अपने देश में 2024 में आनलाइन गेम खेलने वालों की संख्या 45 करोड़ से अधिक हो चुकी थी, लेकिन इस आकर्षक तस्वीर के पीछे उस बुरे धंधे की अनदेखी नहीं की जा सकती, जो खतरा बन गया था। यह खतरा सट्टेबाजी और जुए की लत बढ़ने के रूप में था। इस लत के चलते अनेक लोगों ने अपने लाखों रुपये गंवाए और हताश-निराश होकर आत्महत्या भी की।
आत्महत्या के ऐसे कुछ मामलों का उल्लेख केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी किया। उन्होंने यह भी बताया कि आनलाइन मनी गेम्स की आड़ में हो रही सट्टेबाजी पर रोक लगाने के लिए कई प्रयास किए गए, लेकिन नाकामी मिली। सट्टेबाजी वाली आनलाइन गेमिंग को बढ़ावा देकर अपनी तिजोरी भरने वाली गेमिंग कंपनियों ने एक अनैतिक समानांतर अर्थव्यवस्था कायम कर ली थी। इसमें उपभोक्ताओं यानी आनलाइन गेमिंग के जरिये सट्टेबाजी करने वालों को न तो किसी तरह का संरक्षण प्राप्त था और न ही उनकी शिकायतों-समस्याओं की सुनवाई की कोई व्यवस्था थी। कुल मिलाकर मनमानी हो रही थी।
अब इस मनमानी पर एक बड़ी हद तक रोक लगेगी, क्योंकि सट्टेबाजी वाले आनलाइन गेम का प्रचार-प्रसार प्रतिबंधित किया जाएगा। इसका उल्लंघन करने वालों को जुर्माने के साथ जेल भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त सट्टेबाजी कराने वाली आनलाइन कंपनियों को बैंक भुगतान प्रणाली से अलग किया जाएगा। अच्छा होगा कि सरकार नए कानून के हिसाब से नियामक प्राधिकरण जल्द बनाए, ताकि आनलाइन सट्टेबाजी और जुए पर रोक लगने के साथ ई-स्पोर्ट्स और ई-सोशल जैसे गेम्स का बेहतर नियमन हो, उनका बाजार बढ़े और रोजगार मिलने के साथ राजस्व भी मिले।
सट्टेबाजी और जुए की लत लोगों को बर्बाद ही करती है। जो कंपनियां लोगों को आनलाइन जुआ खिला रही थीं, उनके बारे में यह संदेह है कि वे मनी लांड्रिग का भी काम करती थीं और उनका पैसा देश विरोधी गतिविधियों में भी खपाया जाता था। ऐसी कंपनियों पर अंकुश लगाने के लिए 2021 में आइटी नियमों में संशोधन किया गया, लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद भी कुछ लोगों का तर्क है कि अन्य देशों की तरह भारत में भी आनलाइन मनी गेम्स पर पूरी तरह पाबंदी लगाने के बजाय उनका नियमन किया जाना चाहिए।
यह एक तर्क तो है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यह एक कठिन काम है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि इंटरनेट आधारित कंपनियां किस प्रकार हर तरह के नियमन का तोड़ निकालने में समर्थ होती हैं। अभी भी इसकी आशंका है कि ऐसी कंपनियां छल-छद्म से सक्रिय होने की कोशिश कर सकती हैं। सरकार को इसके प्रति सतर्क रहना होगा।
सरकार की पहली प्राथमिकता एक बुरे धंधे से लोगों को बचाने की होनी चाहिए। इस धंधे की बुराई को इससे समझा जा सकता है कि एक अनुमान के मुताबिक अपने देश में लोगों को सट्टेबाजी वाले आनलाइन गेम्स के कारण सालाना 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा था। इन हालात में इस पर जोर देना ठीक नहीं कि आनलाइन मनी गेम्स पर पाबंदी लगाने से सरकार को राजस्व का नुकसान होने के साथ ही हजारों नौकरियां भी जाएंगी। फौरी तौर पर कुछ नौकरियां अवश्य जाएंगी, लेकिन क्या राजस्व के लोभ में सरकार एक अनैतिक और हानिकारक धंधे की अनदेखी कर दे? आखिर इस आवश्यक पहलू पर विचार क्यों नहीं किया जाता कि आनलाइन मनी गेम्स के कारण लोगों के जो हजारों करोड़ों रुपये बर्बाद हो रहे थे, वे अब उनके काम आएंगे और इसका लाभ किसी न किसी रूप में देश की अर्थव्यवस्था को भी मिलेगा।
[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।