जागरण संपादकीय : अमेरिका को जवाब, ट्रंप का दोहरा रवैया बेनकाब
अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के खिलाफ अपनी मनमानी टैरिफ नीति को लेकर चाहे जितने बड़े बोल बोलें सच्चाई यह है कि भारत अब उनके दबाव में आने वाला नहीं है। उसे आना भी नहीं चाहिए। विदेश मंत्री जयशंकर ने यही संदेश देने के लिए यह कहा कि भारत ने अमेरिका से व्यापार वार्ता के मामले में लक्ष्मण रेखा खींच दी है। वस्तुत यह नए भारत का संदेश है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह कहकर एक तरह से अमेरिका को उसी की भाषा में जवाब दिया कि यदि आपको भारत की ओर से रूस से तेल खरीदने में परेशानी है तो आप उसे हमसे न खरीदें। ज्ञात हो कि भारत रूस से जो कच्चा तेल खरीदता है, उसके रिफाइंड उत्पादों के खरीदारों में यूरोप के साथ अमेरिका की भी गिनती होती है। यह तथ्य सामने रखकर भारतीय विदेश मंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के दोहरे रवैये को बेनकाब करने का ही काम किया।
ऐसा करना इसलिए आवश्यक था, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने द्विपक्षीय व्यापार वार्ता सफल न होने के कारण भारत पर 25 प्रतिशत का टैरिफ लगाया है। इतना ही नहीं, उन्होंने रूस से तेल खरीदने को तूल देकर जुर्माने के रूप में 25 प्रतिशत और टैरिफ लगाने की घोषणा की। इस घोषणा पर 27 अगस्त से अमल होना है। ट्रंप का तर्क है कि भारत रूस से तेल खरीदकर पुतिन को यूक्रेन के खिलाफ युद्ध जारी रखने में मदद कर रहा है। यह बेतुका और हास्यास्पद आरोप है, क्योंकि रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार तो चीन है, जिसके प्रति वे कठोर कदम उठाने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। यूरोप भी बड़ी मात्रा में रूस से गैस खरीदता है। खुद अमेरिका रूस से उर्वरक खरीद रहा है।
यह अच्छा हुआ कि विदेश मंत्री जयशंकर ने यह कहने में संकोच नहीं किया कि जो व्यापार समर्थक अमेरिकी प्रशासन के लिए काम करते हैं, वे दूसरों अर्थात भारत पर व्यापार करने का आरोप लगा रहे हैं। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि जो अमेरिका एक समय मुक्त व्यापार की वकालत करता था और दुनिया भर के देशों पर इसके लिए दबाव डालता था, वह आज घनघोर संरक्षणवादी रवैया अपनाए हुए है। इस रवैये का परिचय ट्रंप के साथ-साथ अमेरिका के अरबपति कारोबारी भी दे रहे हैं। इस सबके बावजूद अमेरिकी अर्थव्यवस्था मजबूत होने का नाम नहीं ले रही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के खिलाफ अपनी मनमानी टैरिफ नीति को लेकर चाहे जितने बड़े बोल बोलें, सच्चाई यह है कि भारत अब उनके दबाव में आने वाला नहीं है। उसे आना भी नहीं चाहिए। विदेश मंत्री जयशंकर ने यही संदेश देने के लिए यह कहा कि भारत ने अमेरिका से व्यापार वार्ता के मामले में लक्ष्मण रेखा खींच दी है। वस्तुत: यह नए भारत का संदेश है।
यदि ट्रंप ने अपने मनमाने रवैये का परित्याग नहीं किया तो अमेरिका को और मुश्किल होगी, क्योंकि अब वह इस स्थिति में नहीं कि भारत जैसे देशों को अपनी ऐसी सामग्री खरीदने के लिए बाध्य कर सके, जो उपयोगी नहीं। वैसे भी अमेरिका मुख्यत: हथियार बेचता है और इसके लिए अस्थिरता एवं टकराव को बढ़ावा देता है। यह भी ध्यान रहे कि ब्रिक्स जैसे संगठन अमेरिका का मुकाबला करने के लिए कमर कस रहे हैं।
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