विचार: सुधार की दिशा में उठे कदम, जीएसटी में सुधार से आत्मनिर्भर भारत अभियान को मिलेगा बढ़ावा
जीएसटी में सुधारों का आर्थिक प्रभाव ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देगा प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाएगा उद्यमों को औपचारिक स्वरूप अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा अनुपालन में सुधार करेगा कारोबारी सुगमता बढ़ाने के साथ आत्मनिर्भर भारत के अभियान को आगे बढ़ाएगा। इससे जहां महंगाई की स्थिति सुधरेगी वहीं जीडीपी में 0.20 से 0.22 प्रतिशत का योगदान बढ़ेगा।
जीएन वाजपेयी। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन की चर्चा अभी तक जारी है। लाल किले की प्राचीर से दिया गया उनका संबोधन ऊर्जावान, प्रेरक और आश्वस्तकारी था। व्यापक विषयों के समावेश वाले इस भाषण में भविष्य की झलक भी दिख रही थी। इस संबोधन में उस नेता की भावनाएं मुखर हो रही थीं, जिसने देश को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने की आकांक्षाओं से ओतप्रोत किया है।
राष्ट्रीय मनोबल को बढ़ाने वाले उनके संबोधन की गूंज पूंजी बाजार तक सुनाई दी। इससे सेंसेक्स में तेजी और रुपये की स्थिति में मजबूती का रुख दिखा। आर्थिक समृद्धि और किसी राष्ट्र की सुरक्षा का संबंध भू-राजनीतिक तथा ऊर्जा सुरक्षा के साथ गहराई से जुड़ा होता है। मोदी ने अपने सारगर्भित संबोधन में बताया कि ये तीनों सुरक्षा तत्व किस तरह उनके दृष्टिकोण में भारत के भविष्य का तानाबाना बुनेंगे।
आर्थिक वृद्धि के संदर्भ में महान अर्थशास्त्री जान मेनार्ड कींस ने एनिमल स्पिरिट यानी उत्साही प्रवृत्ति की आवश्यकता रेखांकित की थी। इस उत्साही प्रवृत्ति को कारोबारी सुगमता और जीवन सुगमता से प्रोत्साहन मिलता है। इस दिशा में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी में सुधारों की घोषणा महत्वपूर्ण और दूरगामी असर करने वाली रही। जुलाई 2017 में तमाम जटिल करों और अप्रत्यक्ष करों को एकीकृत करते हुए एक राष्ट्र-एक कर जैसी संकल्पना के साथ जीएसटी अस्तित्व में आया। इसे 1991 के बाद का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार करार दिया गया। इसने कर राजस्व बढ़ाने के साथ अनुपालन को बेहतर बनाया।
इसके चलते निवेश बढ़ा और एकीकृत बाजार के रूप में भारत का कायाकल्प हुआ। जीडीपी वृद्धि पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ा। विभिन्न राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारों के बावजूद इसने संघीय सहमति का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। हालांकि इसमें कायम कुछ विसंगतियां उद्यमों, राजस्व और विभिन्न हितधारकों पर प्रतिकूल प्रभाव भी डाल रही थीं। इसमें टैक्स ढांचे की जटिलता, नियमों और दरों में अक्सर होने वाले परिवर्तन, इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ जुड़े मसले और कुछ मामलों में अनुपालन बोझ जैसे मुद्दे शामिल हैं।
अच्छी बात है कि इन विसंगतियों का संज्ञान लेकर सुधार की दिशा में कदम बढ़ाने की पहल हुई है। जीएसटी सुधारों का प्रस्तावित उद्देश्य मौजूदा चुनौतियों का समाधान करना और इसे एक विश्वस्तरीय अप्रत्यक्ष कर संरचना में बदलना है। प्रस्तावित सुधारों को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: दरों को तार्किक बनाना और घटाना, इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर में परिवर्तन, अनुपालन बोझ को कम करना और विवादों का समाधान करना। उम्मीद है कि 12 प्रतिशत की 99 प्रतिशत वस्तुएं 5 प्रतिशत वाली श्रेणी में और 28 प्रतिशत वाली 90 प्रतिशत वस्तुएं 18 प्रतिशत वाली श्रेणी में स्थानांतरित हो जाएंगी। नई दरें न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा और जापान जैसे विकसित बाजारों के अनुरूप ही होंगी। इन देशों में जीएसटी दरें 5 से 15 प्रतिशत के बीच हैं।
दरों को तार्किक बनाने से विसंगतियों पर भी अंकुश लगेगा। इससे उद्योग की लागत में बढ़ोतरी, मूल्य शृंखला में विसंगतियां और इनपुट क्रेडिट का संचय होता रहा। वर्गीकरण की जटिलता को समाप्त करने से अनुपालन में सुधार होगा एवं कर संरचना और मजबूत बनेगी। आवश्यक और आकांक्षी वस्तुओं पर कर की दर में कमी आम आदमी, एमएसएमई, किसानों को लाभ पहुंचाने के साथ ही खपत को बढ़ावा देगी और अंततः जीडीपी वृद्धि में योगदान करेगी।
कुछ क्षेत्रों में इनपुट क्रेडिट की विसंगतियां जैसे कच्चे माल और तैयार माल के लिए अलग-अलग दरों को तार्किक बनाना एवं उनका स्पष्टीकरण भी स्थिति को सुधारेगा। प्रौद्योगिकी संचालित समाधान जैसे निर्बाध पंजीकरण, पूर्व में भरे हुए रिटर्न और स्वचालित रिफंड अनुपालन में आसानी प्रदान करेंगे और प्रशासन की लागत को काफी घटाने का काम करेंगे। त्वरित रिफंड कार्यशील पूंजी में वृद्धि करेगा, ब्याज लागत को कम करेगा और प्रतिस्पर्धात्मकता को मजबूत करेगा।
जीएसटी के आठ वर्षों के दौरान कई विवाद भी सामने आए। खासतौर से वर्गीकरण को लेकर ऐसा कई बार दिखा। उन विवादों को सुलझाने पर ध्यान केंद्रित करने से जटिलता, अनिश्चितता को कम किया जाएगा और भविष्य की रूपरेखा स्पष्ट रूप से सुनिश्चित की जा सकेगी। इसके अलावा, वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र का प्रस्ताव कार्यान्वयन प्रक्रिया को सुगम बनाने और भरोसा बढ़ाने में सहायक होगा।
विभिन्न वित्तीय संस्थानों ने प्रस्तावित दरों में परिवर्तनों से राजस्व संग्रह पर प्रभावों का अपना आकलन दिया है। इस कड़ी में एचएसबीसी बैंक ने 1.43 लाख करोड़ रुपये की क्षति का अनुमान लगाया है तो एसबीआई के अनुसार यह 85,000 करोड़ रुपये है, जिसमें केवल 45000 करोड़ रुपये वर्तमान वर्ष के लिए है। एसबीआई की ही रिपोर्ट में इससे खपत में 1.98 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि का अनुमान है और आयकर दरों में कमी के साथ मिलकर इसे 5.31 लाख करोड़ रुपये आंका है, जो जीडीपी का 1.6 प्रतिशत तक हो सकता है। इसका दूसरा पहलू यही है कि खपत में वृद्धि कर राजस्व में वृद्धि करेगी और समय के साथ दरों में कमी और उनके तर्कसंगत के कारण संभावित अनुमानित क्षति की समय के साथ भरपाई होती जाएगी।
जीएसटी में सुधारों का आर्थिक प्रभाव ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देगा, प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाएगा, उद्यमों को औपचारिक स्वरूप अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा, अनुपालन में सुधार करेगा, कारोबारी सुगमता बढ़ाने के साथ आत्मनिर्भर भारत के अभियान को आगे बढ़ाएगा। इससे जहां महंगाई की स्थिति सुधरेगी, वहीं जीडीपी में 0.20 से 0.22 प्रतिशत का योगदान बढ़ेगा। हालांकि इस भली मंशा वाले सुधार की सफलता इसके प्रभावी क्रियान्वयन और विभिन्न हितधारकों के बीच बेहतर समन्वय पर ही निर्भर होगी।
(लेखक सेबी और एलआईसी के पूर्व चेयरमैन हैं)
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