मोटे अनाजों की वापसी का वर्ष, शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में बेहतर विकल्प
मोटे अनाजों को पोषण का पावर हाउस कहा जाता है। ये सूक्ष्म पोषक तत्वों विटामिनों और खनिजों का भंडार हैं। छोटे बच्चों और प्रजजन आयु वर्ग की महिलाओं के पोषण में विशेष लाभप्रद होते हैं। शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में मोटे अनाज बढ़िया विकल्प हैं।
डा. जयंतीलाल भंडारी: नववर्ष में अधिकांश लोग अपने जीवन को व्यवस्थित बनाने और स्वास्थ्य पर ध्यान देने का संकल्प लेते हैं। देखा जाए तो यह दोनों ही पहलू एक दूसरे जुड़े हुए हैं और उसकी एक अहम कड़ी है खानपान। खानपान सुधारने से बेहतर स्वास्थ्य जीवन को संतुलन प्रदान करने में सहायक होता है। खानपान की बदली आदतों ने भी आज के प्रतिस्पर्धी एवं भागदौड़ भरे जीवन की चुनौतियों को बढ़ाया है। एक समय हमारी पारंपरिक थाली मोटे अनाजों से सजी रहती थी, लेकिन समय के साथ आए बदलाव से मोटे अनाज हाशिये पर जाते गए। कुपोषण और जीवनशैली से जुड़ी तमाम समस्याओं के लिए एक कारण मोटे अनाजों की उपेक्षा को भी माना जाता है। अच्छी बात है कि अब इस दिशा में सुधार के संकेत दिख रहे हैं और उस दृष्टि से यह साल अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होने जा रहा है, क्योंकि भारत सरकार की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने इस वर्ष को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है।
सरकार ने इस पहल को सफल बनाने के प्रयास भी आरंभ कर दिए हैं। इसी सिलसिले में बीते दिनों संसद भवन में कृषि मंत्रालय की ओर से एक भोज आयोजित किया गया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सहित तमाम दिग्गजों ने भाग लिया। उसमें बाजरे से बनी खिचड़ी, रागी डोसा, रागी रोटी, ज्वार की रोटी, हल्दी की सब्जी और बाजरे का चूरमा सहित कई व्यंजन परोसे गए। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जी-20 से जुड़े तमाम कार्यक्रमों में मोटे अनाजों से बने व्यंजन शामिल किए जाएंगे। इससे दुनिया भर में मोटे अनाजों की महत्ता बढ़ेगी।
मोटे अनाजों को पोषण का पावर हाउस कहा जाता है। ये सूक्ष्म पोषक तत्वों, विटामिनों और खनिजों का भंडार हैं। छोटे बच्चों और प्रजजन आयु वर्ग की महिलाओं के पोषण में विशेष लाभप्रद होते हैं। शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में मोटे अनाज बढ़िया विकल्प हैं। इनकी खेती भी किफायती होती है, जिसमें ज्यादा देखभाल नहीं करनी पड़ती। इनका भंडारण भी आसान है। अतीत में मोटे अनाज हमारी थाली का एक प्रमुख हिस्सा हुआ करते थे। फिर हरित क्रांति और गेहूं-चावल के दौर में मोटे अनाज लगातार उपेक्षित होते गए। स्थिति यह हो गई है कि हमारे खाद्यान्न उत्पादन में करीब 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले मोटे अनाजों की हिस्सेदारी अब सिमटकर 10 प्रतिशत से भी कम रह गई है। वैसे, एशिया और अफ्रीका ही मोटे अनाज के प्रमुख उत्पादन और खपत केंद्र हैं। भारत, सूडान और नाइजीरिया इनके प्रमुख उत्पादक हैं। दुनिया में मोटे अनाजों के उत्पादन का करीब 40 प्रतिशत अभी भी भारत में होता है।
मोदी सरकार ने मोटे अनाजों को मुख्यधारा में लाने के लिए तमाम प्रयास किए हैं। विशेषकर अप्रैल 2018 से सरकार मोटे अनाजों का उत्पादन बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम कर रही है। उनके न्यूनतम समर्थन मूल्य में अच्छी-खासी वृद्धि की है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत मिलेट के लिए पोषक अनाज घटक 14 राज्यों के 212 जिलों में क्रियान्वित किया जा रहा है। भारत के अधिकांश राज्यों में एक या एक से अधिक मोटे अनाज की प्रजातियां उगाई जाती हैं। राज्यों को विशेष रियायतें दी गई हैं। इसमें तीन महीने के भीतर इन अनाजों के वितरण की अनिवार्यता को समाप्त कर इसे छह से 10 महीने कर दिया गया है। केंद्रीय पूल में इन अनाजों की खरीद का लक्ष्य 2021 के 6.5 लाख टन से बढ़ाकर 2022 में 13 लाख टन किया है। चालू खरीफ सत्र में ही 30 नवंबर तक हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात और तमिलनाडु में इस निर्धारित लक्ष्य से अधिक की खरीद हो गई। चालू फसल वर्ष के दौरान 2.88 करोड़ टन मोटे अनाज के उत्पादन का लक्ष्य है और यह लक्ष्य प्राप्त होता भी दिख रहा है।
इस समय मोटे अनाज की अहमियत दो प्रमुख कारणों से उभर रही है। एक तो रूस-यूक्रेन युद्ध से अनाज की वैश्विक आपूर्ति प्रभावित हुई, जिससे कुपोषण का खतरा मंडरा रहा है। इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र की ‘द स्टेट आफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड रिपोर्ट, 2022’ के अनुसार वर्ष 2021 से जहां भारत में 22.4 करोड़ लोग भूख एवं कुपोषण की चुनौती से जूझते रहे तो दुनिया में करीब 76.8 करोड़ लोग इस चुनौती का सामना कर रहे हैं। ऐसे में करोड़ों लोगों के लिए पोषक आहार की व्यवस्था करना आवश्यक है, जिसमें मोटे अनाजों को मददगार के रूप में देखा जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी सरकार मोटे अनाजों को प्रोत्साहन देने के प्रति गंभीर है, लेकिन इस दिशा में और प्रयास आवश्यक होंगे। जैसे कि सरकार ने पिछले चार-पांच दशकों में अन्य नकदी फसलों को बढ़ावा देने के उपाय किए हैं, उसी तरह के कदम मोटे अनाजों के संदर्भ में भी उठाए जाएं।
देश के कृषि अनुसंधान संस्थानों को मोटे अनाजों पर शोध-अनुसंधान को बढ़ावा देना होगा। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गेहूं एवं चावल की तुलना में मोटे अनाज की अधिक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मोटे अनाजों की सरकारी खरीद बढ़ानी होगी। हम उम्मीद करें कि अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के मद्देनजर जिस तरह मोटे अनाज को बढ़ावा देने की कोशिश बीते दिनों संसद में दिखी, उसके दूरगामी प्रभाव होंगे। भारत 2023 में जी-20 की अध्यक्षता के दौरान अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के उद्देश्यों एवं फायदों के दृष्टिकोण से वैश्विक स्तर पर जागरूकता प्रसार में सफल होगा। इससे मोटे अनाजों का उत्पादन एवं उपभोग तो बढ़ेगा ही, साथ ही फसल चक्र भी संतुलित होगा और कुपोषण के विरुद्ध युद्ध में भी निर्णायक विजय की ओर कदम बढ़ेंगे।
(लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं)