जागरण संपादकीय: समस्या पर शोर मचे तो समाधान भी हो, बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ कब लगेगी रोक
कहना कठिन है कि देश में कितने बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए हैं लेकिन यह पक्का है कि वे ठीक-ठाक संख्या में हैं। प्रश्न यह है कि उनकी घुसपैठ थम क्यों नहीं रही और उन्हें बाहर निकालने में सफलता क्यों नहीं मिल रही है? केवल इतना ही पर्याप्त नहीं कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को चुनावी मुद्दा बनाया जाए। इस मुद्दे का समाधान भी होना चाहिए और वह भी प्राथमिकता के आधार पर।
राजीव सचान। त्रिपुरा, असम और बंगाल में जब भी चुनाव होते हैं, तब अन्य अनेक मुद्दों के साथ बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा अवश्य उठता है। इस बार ऐसा झारखंड में भी हो रहा है। बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ विधानसभा चुनावों में बड़ा मुद्दा बन गई है।
जहां भाजपा इस पर जोर देने में लगी हुई है कि बांग्लादेश से बंगाल के रास्ते आने वाले बांग्लादेशी न केवल झारखंड की जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) बदल रहे हैं, बल्कि आदिवासी लड़कियों से शादी कर रहे हैं और उनकी जमीन भी हड़प रहे हैं, वहीं सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा की मानें तो भाजपा जो कुछ कह रही है, वह सही नहीं। झामुमो नेताओं का कहना है कि यदि बांग्लादेश से घुसपैठ हो रही है तो फिर जवाबदेह केंद्र सरकार है, क्योंकि सीमा सुरक्षा उसके ही कंधों पर है।
पता नहीं चुनाव में झारखंड की जनता किसकी बातों को महत्व देगी, मगर इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि बांग्लादेशी घुसपैठियों का मसला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। दो वर्ष पहले झारखंड हाई कोर्ट में जमशेदपुर के सैयद दानियाल दानिश की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया था कि साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, दुमका, जामताड़ा आदि जिलों में आदिवासी आबादी घट रही है, क्योंकि बांग्लादेशी घुसपैठियों को आदिवासियों की जमीन पर बसाया जा रहा है।
वास्तव में भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर जो कुछ कह रही है, वह मोटे तौर वही है, जिसका उल्लेख दानिश की याचिका में किया गया है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सितंबर में झारखंड हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि बांग्लादेशी घुसपैठियों का पता लगाने के लिए केंद्र और राज्य के अधिकारियों की एक तथ्य खोजी यानी फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाई जाए। झारखंड सरकार पहले तो इसके लिए तैयार हो गई, लेकिन फिर पीछे हट गई और हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अपना पक्ष रखने को कहा है। पता नहीं, सुप्रीम कोर्ट किस नतीजे पर पहुंचेगा, लेकिन यह एक सच्चाई है कि बांग्लादेश से घुसपैठ होती है। यदि बंगाल के रास्ते घुसे बांग्लादेशी झारखंड आकर बस गए हों तो हैरानी नहीं। वैसे भी यह सच है कि झारखंड के आदिवासी बहुल इलाकों में डेमोग्राफी बदली है। यह असम, त्रिपुरा और बंगाल में भी बदली है और अब तो टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज की रिपोर्ट के अनुसार मुंबई में भी बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं के चलते आबादी का संतुलन बिगड़ रहा है।
इस रिपोर्ट के अनुसार यदि यही हाल रहा तो 2051 तक मुंबई में हिंदू आबादी घटकर 54 प्रतिशत से भी कम हो जाएगी और बांग्लादेशी घुसपैठियों एवं रोहिंग्याओं के कारण मुस्लिमों की आबादी 30 प्रतिशत हो जाएगी। इस रिपोर्ट के अनुसार 2011 में मुंबई में हिंदुओं की आबादी 66 प्रतिशत और मुसलमानों की 21 प्रतिशत थी।
इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि कुछ राजनीतिक संगठन वोट बैंक की राजनीति के लिए अवैध अप्रवासियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। चुनाव के चलते भाजपा ने इस रिपोर्ट का जोर-शोर से उल्लेख करना शुरू कर दिया है, लेकिन क्या इतना ही पर्याप्त है?
बांग्लादेश से भारत में तबसे घुसपैठ हो रही है, जब वह पूर्वी पाकिस्तान था। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश बन जाने के बाद भी वहां से घुसपैठ जारी रही और अब भी हो रही है। बंगाल, असम, त्रिपुरा के रास्ते अवैध रूप से भारत आए बांग्लादेशी घुसपैठिए आए दिन देश के विभिन्न हिस्सों में पकड़े जाते हैं। कुछ समय पहले पुणे में 21 बांग्लादेशी घुसपैठिए गिरफ्तार किए गए। इनके पास नकली आधार, पैन और वोटर आइडी भी थे। इसी तरह हाल में अहमदाबाद में करीब 50 बांग्लादेशी गिरफ्तार किए गए।
इनमें से कई के पास फर्जी पहचान पत्र थे। इस पर चकित होने की जरूरत नहीं कि भारत में घुसने वाले बांग्लादेशी पुणे, अहमदाबाद तक कैसे पहुंच जा रहे हैं, क्योंकि पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा में घुसकर रोहिंग्याओं ने दिल्ली, जम्मू, हैदराबाद तक में अपने ठिकाने बना लिए हैं।
कहना कठिन है कि देश में कितने बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए हैं, लेकिन यह पक्का है कि वे ठीक-ठाक संख्या में हैं। प्रश्न यह है कि उनकी घुसपैठ थम क्यों नहीं रही और उन्हें बाहर निकालने में सफलता क्यों नहीं मिल रही है? केवल इतना ही पर्याप्त नहीं कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को चुनावी मुद्दा बनाया जाए। इस मुद्दे का समाधान भी होना चाहिए और वह भी प्राथमिकता के आधार पर।
भाजपा बंगाल और झारखंड के मुख्यमंत्रियों पर यह आरोप लगाती रहती है कि वे बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर उदार हैं और उन्हें अपना वोट बैंक बनाने की ताक में रहते हैं। ऐसा ही आरोप रोहिंग्याओं को लेकर भी लगता है। इस नतीजे पर पहुंचने के पर्याप्त कारण हैं कि बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं की घुसपैठ कराकर उन्हें सुनियोजित तरीके से भारतीय नागरिक बनाया जा रहा है, लेकिन इस सवाल में भी दम है कि आखिर केंद्र सरकार घुसपैठ रोकने के लिए क्या कर रही है? सीमाओं की सुरक्षा के साथ घुसपैठियों की पहचान करना और उन्हें निकालना तो उसका ही काम है।
पिछले दस वर्षों में गृहमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री कई बार बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों का मुद्दा उठा चुके हैं, लेकिन उनकी घुसपैठ रोकने और उन्हें निष्कासित करने के मामले में नतीजा ढाक के तीन पात वाला है। घुसपैठ एक राष्ट्रघाती समस्या है।
इस समस्या पर शोर मचाने से ज्यादा जरूरी यह है कि उसका समाधान हो। घुसपैठिए यानी अवैध अप्रवासी पश्चिमी देशों में भी एक बड़ा मुद्दा बन गए हैं, लेकिन वे उनकी आमद रोकने और उन्हें निकाल बाहर करने को लेकर गंभीर हैं। दुर्भाग्य से अपने देश में घुसपैठिए केवल चुनावी मुद्दे तक सीमित हैं।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)