पड़ोस में प्रताड़ित हिंदू: पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं का जीना हुआ दूभर, धार्मिक स्थल हैं निशाने पर
नागरिकता कानून के विरोधी न केवल खुद को आईने में देखें बल्कि बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं की दुर्दशा पर भी गौर करें। कानून में ऐसे भी प्रविधान किए जाएं जिससे हिंदू अल्पसंख्यकों को और अधिक उदारता से नागरिकता देने का रास्ता साफ हो सके।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के रहीम यार खान जिले में एक हिंदू मंदिर पर हमले की खबर के बाद बांग्लादेश के खुलना जिले में चार हिंदू मंदिरों पर हमला किया जाना यही बताता है कि इन दोनों पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों और खासकर हिंदुओं के लिए जीना कितना दूभर हो गया है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं और उनके धार्मिक स्थलों पर हमले की खबरें नई नहीं हैं। इन दोनों देशों से ऐसी खबरें आती ही रहती हैं। चिंता की बात यह है कि इस तरह की खबरें आने का सिलसिला तेज होता जा रहा है। भले ही पाकिस्तान में हिंदू मंदिर पर हमले के आरोपितों की धरपकड़ की जा रही हो, लेकिन इसमें संदेह है कि उन्हेंं कठोर दंड का भागीदार बनाया जा सकेगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि जिन तत्वों ने मंदिर को निशाना बनाया, उनकी पैरवी करने वाले सामने आ गए हैं और यह भी किसी से छिपा नहीं कि इस तरह के मामलों में पीड़ितों की कोई सुनवाई नहीं होती। यही कारण है पाकिस्तान के बचे-खुचे हिंदू खुद को सुरक्षित नहीं महसूस करते। इस पर गौर करें कि रहीम यार खान जिले के जिस इलाके में मंदिर पर हमला किया गया, उसके आसपास के हिंदुओं के पलायन की खबरें आ रही हैं। पता नहीं वे पलायन कर कहां जाएंगे, लेकिन हर किसी को इससे अवगत होना चाहिए कि पाकिस्तान में प्रताड़ित हिंदू किसी न किसी बहाने भारत आना पसंद करते हैं। वे वहां रहे तो या तो सताए जाएंगे या फिर मतांतरण के लिए मजबूर किए जाएंगे।
पाकिस्तान के हिंदू केवल दोयम दर्जे के नागरिक ही नहीं बन गए हैं। उनके लिए सम्मान के साथ जीना भी मुश्किल हो गया है। पाकिस्तान में हिंदुओं की लड़कियों को अगवा कर उनका निकाह किसी मुस्लिम के साथ कराना अब आम हो गया है। नि:संदेह बांग्लादेश में पाकिस्तान सरीखा र्धािमक अतिवाद नहीं, लेकिन वहां के भी हिंदुओं का कोई भविष्य नहीं। वास्तव में हिंदुओं को प्रताड़ित करने के मामले में बांग्लादेश पाकिस्तान के रास्ते पर ही जा रहा है। बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ हो रही घटनाएं यही रेखांकित करती हैं कि नागरिकता कानून में संशोधन कर यह प्रविधान करना कितना जरूरी हो गया था कि इन दोनों देशों के साथ अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान की जाएगी। उचित यह होगा कि इस कानून में ऐसे भी प्रविधान किए जाएं, जिससे इन तीनों देशों के अल्पसंख्यकों को और अधिक उदारता से नागरिकता देने का रास्ता साफ हो सके। इसी के साथ इस कानून के विरोधी न केवल खुद को आईने में देखें, बल्कि बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं की दुर्दशा पर भी गौर करें।