सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने नागरिकता कानून की धारा 6ए को वैधानिक करार देकर 1985 में राजीव गांधी सरकार और अखिल असम छात्र संघ के बीच हुए समझौते को लागू करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। इस समझौते के तहत नागरिकता कानून में धारा 6ए जोड़कर यह व्यवस्था की गई थी कि 25 मार्च 1971 के पहले बांग्लादेश से आए लोगों को नागरिकता दी जाएगी। इसके पहले यह तिथि 1 जनवरी 1966 थी। नागरिकता कानून की इस धारा की संवैधानिकता को दी गई चुनौती खारिज होने के बाद बांग्लादेश से असम आए वे लोग नागरिकता के लिए आवदेन कर सकेंगे, जो 25 मार्च 1971 के पहले आए थे, लेकिन उनकी पहचान करके वापस भेजा जाएगा, जो इसके बाद आए।

यह एक कठिन कार्य है, क्योंकि उनकी संख्या लाखों में है और उनकी पहचान करना भले आसान हो, लेकिन उन्हें वापस भेजना मुश्किल है। ऐसे लोगों को तभी वापस भेजा जा सकता है, जब बांग्लादेश उन्हें लेने को तैयार हो। यह स्पष्ट ही है कि इनमें से बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदू, बौद्ध आदि तो वापस जाने के लिए तैयार होने वाले नहीं। उनके वहां लौटने का मतलब है उनकी जान पर बन आना। अब तो इसकी आशंका और भी बढ़ गई है, क्योंकि बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद वहां इस्लामी कट्टरता कहीं अधिक बढ़ गई है और अल्पसंख्यकों का जीना दूभर हो गया है। सौभाग्य से इन्हें नागरिकता कानून में किए गए उस संशोधन का सहारा मिलेगा, जिसमें कहा गया है कि 31 दिसंबर 2014 के पहले बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान की जाएगी।

असम में कुछ लोग 1966 से 1971 के बीच बांग्लादेश से आए लोगों को नागरिकता देने के पक्ष में इसलिए नहीं, क्योंकि इससे राज्य का जनसांख्यिकीय संतुलन बिगड़ने का खतरा है। इस खतरे को निराधार नहीं कहा जा सकता, क्योंकि असम एक छोटा राज्य है और वहां पाकिस्तान बनने के बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश से लोग अवैध तरीके से आने लगे थे। कुछ शरणार्थी के रूप में आए और कुछ घुसपैठिए के रूप में। बांग्लादेश से एक बड़ी संख्या में लोग असम के अलावा अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ बंगाल में भी आ बसे हैं। इनमें से अनेक ने अवैध तरीके से भारतीय पहचान पत्र हासिल कर लिए हैं और मतदाता बन गए हैं। इनमें से जो घुसपैठिए के रूप में हैं, उन्हें वापस भेजा ही जाना चाहिए, क्योंकि वे स्थानीय संस्कृति को बदलने का काम कर रहे हैं और सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने के साथ देश की सुरक्षा के लिए खतरा भी पैदा कर रहे हैं। यह कहना कठिन है कि बांग्लादेशियों के साथ-साथ म्यांमार के रोहिंग्याओं और कुकी लोगों का भारत आना पूरी तरह थम गया है। यह थमना ही चाहिए। इसके लिए केंद्र सरकार के साथ राज्यों को भी सख्ती दिखानी होगी।