नीति निर्माताओं को टियर-2, टियर-3 शहरों के इन्फ्रा पर फोकस करना चाहिए: विशेषज्ञ
हमारे जो शहर हैं उनकी शासन व्यवस्था अभी उतनी विकसित नहीं है जितनी भारत सरकार की है या राज्य सरकार की है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय शहरों की स्थानीय सरकारों को कई अधिकार हैं। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती अगले बीस पच्चीस साल में शहरों की शासन व्यवस्था को सशक्त करने की है। किस तरह से हम उनको एंपावर करें ताकि वो बड़े निर्णय ले पाएं।
नई दिल्ली। अठारहवीं लोकसभा के लिए तीसरे चरण का मतदान हो चुका है। जागरण न्यू मीडिया मतदाताओं को जागरूक करने के लिए ‘मेरा पावर वोट- नॉलेज सीरीज’ लेकर आया है। इसमें हमारे जीवन से जुड़े पांच बुनियादी विषयों इकोनॉमी, सेहत, शिक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा पर चर्चा की जाएगी। हमने हर सेगमेंट को चार हिस्से में बांटा है- महिला, युवा, शहरी मध्य वर्ग और किसान। इसका मकसद आपको एंपावर करना है ताकि आप मतदान करने में सही फैसला ले सकें।
आज के अंक में चर्चा देश में हो रहे बुुनियादी ढांचे के विकास और शहरीकरण से जुड़ी चुनौतियों की। हमने उद्योग संगठन फिक्की के महासचिव शैलेष पाठक और एनएचएआई के पूर्व सलाह कार वैभव डांगे से इसे लेकर बात की।
अब तक हम कोई वर्ल्ड क्लास सिटी तैयार क्यों नहीं कर पाएंगे, इस सवाल के जवाब में पाठक ने कहा कि एक शहर को हम देखें तो कोई भी शहर क्या करता है। शहर में आप रहते हैं, काम करते हैं। और जहां रहते हैं और जहां काम करते हैं, उसके बीच आप सफर करते हैं। स्कूल में बच्चों को पढ़ने भेजते है, इलाज कराने अस्पताल में जाते हैं, पार्क में बच्चों को खिलाने के लिए ले जाते हैं। शहर का मोटा मोटा अर्थ यही है।
तो क्या हम अपने शहरों में सस्ते घर उपलब्ध करा पा रहे हैं? क्या हम अपने शहरों में अच्छे ऑफिस स्पेस बना पाए हैं? क्या हम घर और ऑफिस के बीच सुगम पब्लिक ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था हम कर पा रहे हैं? क्या हम अच्छे पार्क बना पा रहे हैं? अपने शहरों में क्या हम ऐसे सुरक्षित स्थान बना सकते है जहां महिलाएं और बच्चे निर्भीक जा सकें? क्या हम अच्छे अस्पताल बना पाए हैं? उत्तर ये है कि अभी हमें इस पर अभी बहुत मेहनत करनी है।
हम अब तक पीछे क्यों हैं, इसका कारण है कि हर शहर आबादी में हर 20 साल में दोगुना हो जा रहा है। हमें अभी से सोचना होगा कि 20 साल बाद की जरूरतें क्या होंगी और उसके हिसाब से शहर में व्यवस्थाएं करनी होंगी। इन्फ्रास्टक्चर विकास के चार चरण होते हैं। पहला होता है डिजाइन, दूसरा प्लानिंग, तीसरा कंस्ट्रक्शन और चौथा ऑपरेट करना। शहरों में हमें चारों फेज में बहुत मेहनत करने की जरूरत है।
प्लानिंग की बात करें तो कभी भी किसी भी शहर में हमने भविष्य की आबादी का कभी से सही आकलन नहीं किया। जहां तक बात फंडिंग की है, तो अफसोस ये है कि हमारा कोई भी शहर अपनी स्ववित्त पोषित नहीं है। उनके पास अपना पैसा नहीं है, उनको राज्य सरकार और भारत सरकार पर निर्भर होना पड़ता है।
एनएचएआई के पूर्व सलाहकार वैभव डांगे ने कहा कि हमारे देश की इतनी आबादी होने के कारण हमारा शहरीकरण भी बहुत तेजी से हो रहा है। लगभग हर पंद्रह बीस साल में हमारी शहरी आबादी डबल होती जा रही है। हम पैच वर्क ज्यादा कर रहे हैं।
डांगे ने कहा कि एक बदलाव जो मुझे नजर आ रहा है, वह टियर-2 सिटीज में है। यहां अच्छा इन्फ्रास्ट्रक्चर बन रहा है। क्या हम इन शहरों को सबसे पहले अच्छा इन्फ्रास्ट्रक्चर दे सकते हैं। हमारे ऐसे शहरों में इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण की लागत कम है। हमारे पास यहां प्लानिंग के लिए बहुत सारी संभावनाएं है। मुझे लगता है कि हमारे देश के नीति निर्माताओं को टियर-2, टियर-3 शहरों के इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने पर फोकस करना चाहिए। सौभाग्य से पिछले दो बजट से शहरी इन्फ्रास्ट्रक्चर सरकार की प्रायोरिटी में आया है। सरकार ने पिछले बजट में ऐलान किया था कि हम देश भर में अर्बन प्लानिंग एक्सीलेंस सेंटर बनाएंगे।
हमारे जो शहर हैं, उनकी शासन व्यवस्था अभी उतनी विकसित नहीं है, जितनी भारत सरकार की है या राज्य सरकार की है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय शहरों की स्थानीय सरकारों को कई अधिकार हैं। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती अगले बीस पच्चीस साल में शहरों की शासन व्यवस्था को सशक्त करने की है। किस तरह से हम उनको एंपावर करें ताकि वो बड़े निर्णय ले पाएं।
डांगे ने कहा कि मेरा मानना है कि देश के सारे अर्बन प्लानिंग लॉ को रिव्यू करने की जरूरत है। समय के अनुसार नए मॉर्डन बदलाव लाने की आवश्यकता है। पार्किंग आज भी हमारे अर्बन प्लानिंग का इंटीग्रल पार्ट नहीं है, जबकि शहरों में सबसे अधिक परेशानी पार्किंग के कारण ही हो रही है।
डांगे ने कहा कि मुझे लगता है प्लानिंग लेवल पर एक व्यापकl सोच आने की आवश्यकता है, जिसकी शुरुआत हुई है। लेकिन अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है।