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Lok Sabha Election 2024: पीर-पंजाल की पहाड़ियों के बीच कमल खिलाने की जुगत में जुटी भाजपा, पीएम मोदी के दौरे से बदला माहौल

Lok Sabha Election 2024 चुनाव के लिए जम्मू-कश्मीर एक नया केंद्र बन गया है। पीएम मोदी के दौरे के बाद घाटी का माहौल बदल गया है। भाजपा पहली बार जम्मू क्षेत्र की दो सीटों से आगे निकलकर कश्मीर में कमल खिलाने की तैयारी में है और इसके लिए जोर लगा रही है। वहीं कश्मीरी दलों के समक्ष अपना घर बचाने की चुनौती है।

By Jagran News Edited By: Prince Sharma Updated: Sat, 09 Mar 2024 12:57 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: पीर-पंजाल की पहाड़ियों के बीच कमल खिलाने की जुगत में जुटी भाजपा
नवीन नवाज, श्रीनगर। लोकसभा चुनाव को लेकर जम्मू-कश्मीर में न सिर्फ राजनीतिक बल्कि प्रशासनिक गतिविधियां भी तेज हो चुकी हैं। भले ही जम्मू-कश्मीर में पांच ही लोकसभा क्षेत्र हों, लेकिन यहां के मुद्दे देश की सियासत के लिए महत्वपूर्ण हैं। यही वजह है कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति में उठापटक होना लाजिमी है।

कश्मीर में कमल खिलाने की तैयारी में भाजपा

भाजपा पहली बार जम्मू क्षेत्र की दो सीटों से आगे निकलकर कश्मीर में कमल खिलाने की जुगत में है और इसके लिए जोर लगा रही है। वहीं, कश्मीरी दलों के समक्ष अपना घर बचाने की चुनौती है। आइएनडीआइए की आपसी खींचतान उनकी चुनौती को और बढ़ा रही है। पूर्व में जम्मू-कश्मीर में चुनाव के दौरान अलगाववादी नारे गूंजते थे और इन्हीं नारों के सहारे कश्मीर के सियासी दल अपनी जीत की राह खोजते दिखते थे।

जम्मू-कश्मीर का बदल रहा माहौल

मगर जम्मू-कश्मीर का भूगोल क्या बदला, पूरा माहौल ही अब बदला नजर आ रहा है। अब पहली बार इन मुद्दों की चुनाव में कोई चर्चा नहीं है और पूरा चुनाव विकास की पगडंडी पर बढ़ता दिख रहा है। कांग्रेस और नेकां जैसे दल राज्य के दर्जे की आवाज उठा रहे हैं। पांच वर्ष में आया यह बदलाव यूं ही नहीं है। पहली बार है कि जम्मू-कश्मीर के आम आदमी ने विकास को अपने आसपास बखूबी महसूस किया है। दशकों से पहचान और न्याय के लिए वंचित आबादी को पहली बार अपने अधिकार मिले हैं और यही बदलाव प्रदेश में चुनावी चर्चा का हिस्सा बना है। जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद हुए परिसीमन ने इस बदलाव में काफी अहम योगदान दिया है।

जम्मू-कश्मीर सियासत का नया केंद्र

पांच लोकसभा क्षेत्रों का इस तरह से पर सीमन किया गया है कि सभी क्षेत्र लगभग एक समान आबादी और क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। पहली बार अस्तित्व में आया अनंतनाग-राजौरी लोकसभा क्षेत्र जम्मू और कश्मीर की आपसी प्राकृतिक सीमाओं को तोड़ता दिख रहा है।

यहीं से खेमों में बंटी सियासत को नई राह मिलती दिख रही है और भाजपा को नई उम्मीद। पीर-पंजाल की पहाड़ियों के दोनों ओर के क्षेत्रों को मिलाकर बना यह क्षेत्र जम्मू-कश्मीर की सियासत का नया केंद्र बन गया है। नेकां और पीडीपी इस गढ़ को बचाने के लिए हर दांव लगाने को तत्पर दिखते हैं और भाजपा इसे कश्मीर में पहचान मजबूत करने की उम्मीद के तौर पर देख रही है।

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राजनीति विश्लेषक प्रो: हरि ओम कहते हैं कि अनंतनाग-राजौरी सीट पर भाजपा की जीत राजौरी-पुंछ व अनंतनाग में मतदान के प्रतिशत पर निर्भर करेगी। भाजपा को उम्मीद है कि वह राजौरी-पुंछ से पहाड़ी व गुज्जर बक्करवाल और हिंदू मतदाताओं के अधिकांश वोट ले जाएगी। गुलाम नबी आजाद अब लोगों को रोशनी अधिनियम वापस बहाल करने का यकीन दिला रहे हैं। साफ है कि वह कश्मीरी दलों का नुकसान करेंगे।

यूं बदल गए मुद्दे 

करीब नौ वर्ष पहले नरेन्द्र मोदी ने पहली जनसभा में ही बदलाव का संकेत दे दिया था। उन्होंने कश्मीर से रिश्तों के साथ विकास की बात की और कश्मीर में जाकर पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने अलगाववादियों और पाक से वार्ता की बात नहीं की। 2019 तक जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अनुच्छेद-370, अलगाववाद जैसे मुद्दे उठते थे, पर अब यह मुद्दे दफन हो गए हैं।

प्रधानमंत्री ने फरवरी में जम्मू में अपनी रैली में अनुच्छेद-370 को हटाने के फायदे गिनाते हुए जम्मू-कश्मीर में विकास, पर्यटन, निवेश से आ रहे बदलाव की तस्वीर पेश की थी।

साथ ही परिवारवाद की सियासत पर प्रहार करते हुए कहा कि परिवारवादियों ने सिर्फ अपनी चिंता की, आम लोगों की नहीं। इसके साथ ही गुज्जर-बक्करवाल, पहाड़ियों और पिछड़ा वर्ग के लिए किसी ने पहली बार इंसाफ की बात की है। पहाड़ी और गुज्जर-बक्करवाल जम्मू कश्मीर की कई सीटों पर निर्णायक पकड़ रखते हैं।

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