बंजर धरती का इलाज किया और बागबान बने
32 बीघा बंजर भूमि को उपजाऊ बना लगाए फलदार एवं औषधीय पौधे...
जासं (औरंगाबाद)। बड़े-बुजुर्ग कहते थे कि मेहनत करने का जज्बा हो तो बंजर जमीन से भी सोना उपजाया जा सकता है। इसे साकार कर दिखाया हसुपरा प्रखंड के किसान रामाशंकर वैद्य ने। गांव में इनकी खास पहचान भी इसी वजह से है कि इन्होंने अपने जोश और जुनून के बल पर बंजर भूमि को हरे-भरे बाग में तब्दील
कर दिया। हसपुरा प्रखंड के बाघारेवा पंचायत के टेरी गांव निवासी 56 वर्षीय किसान रामाशंकर को हरियाली, फलदार वृक्ष और औषधीय पौधों से ऐसा आकर्षण हुआ कि इन्होंने आजीवन पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया।
उन्होंने इसकी शुरुआत विरासत में मिली आठ एकड़ जमीन पर फलदार और औषधीय पेड़-पौधे लगाकर की। इसके बाद 32 बीघे बंजर जमीन खरीदी और दिन-रात पसीना बहाकर बंजर जमीन को उपजाऊ बना औषधीय
एवं फलदार वृक्ष लगाए। आज उनकी गिनती प्रतिष्ठित किसानों में होती है और दूर-दूर से किसान उनका बाग देखने आते हैं। कई लोग उनसे प्रेरित होकर अपनी कम उपजाऊ जमीन पर बाग लगा रहे हैं। रामशंकर कहते हैं कि पर्यावरण बचाने के लिए ही उन्होंने कृषि को अपना पेशा बनाया। उनके बाग में सैकड़ों फलदार, औषधीय, सुगंधित पौधे हैं।
इनमें आम, अमरूद, फलीदा, जामुन, अंगूर, मेंथा, लेमनग्रास, अखरोट, जापानी तेल समेत सैकड़ों प्रकार के पौधे हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए पेड़ लगाने की प्रेरणा उन्हें दिवंगत दादा रामचरित्र सिंह से मिली। दादा से विरासत में मिली आठ एकड़ भूमि पर खूब मेहनत कर पेड़ लगाए। जब सफलता मिली तो 1990 में बाग के समीप 32 बीघा बंजर जमीन खरीद ली। जैविक खाद वर्मी कम्पोस्ट, गो-मूत्र आदि का इस्तेमाल कर इसे उपजाऊ बनाया। रामाशंकर कृषि कार्य के साथ आयुर्वेदिक दवाओं के भी जानकार हैं। रामाशंकर की इच्छा है कि आने वाली पीढ़ी पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक हो और यह कार्य जारी रहे।
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