राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की जिंदगी के कई अनछुए पहलुओं को बताती किताब, दिसंबर में होगी लांच
द्रौपदी मुर्मू का आम लड़की से राष्ट्रपति बनने का सफर प्रेरणादायी है। जीवन में पहाड़ सा दुख सहने और संघर्ष के बाद फिर खड़े होने की कहानी बताती है उन पर लिखी हुई किताब। अंग्रेजी में लिखी किताब दिसंबर में लांच होगी। इसके बाद हिंदी व ओड़िया में आएगी।
नई दिल्ली, संदीप राजवाड़े। यह वाकया 1969 का है। ओड़िशा के मयूरभंज जिले के उपरबेड़ा मिडिल इंग्लिश स्कूल में एक शिक्षक थे बासुदेव बेहरा। दादाजी का निधन होने के कारण उन्होंने मुंडन कराया था और टोपी पहनकर स्कूल आ रहे थे। एक दिन ब्लैकबोर्ड साफ करने के लिए डस्टर नहीं मिला तो उन्होंने टोपी से ही बोर्ड साफ करना शुरू कर दिया। यह देख सभी बच्चे हंसने लगे। लेकिन कक्षा में मौजूद एक छात्रा को यह ठीक न लगा। घर जाकर उसने पुराने कपड़ों से दो डस्टर तैयार किए और अगले दिन स्कूल लेकर आई। घर में किसी से इसका जिक्र तक नहीं किया। महज सातवीं कक्षा में इतनी संवेदनशीलता और जिम्मेदारी दिखाने वाली उस छात्रा के हाथों में आज पूरे देश का दारोमदार है। वे हैं, भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू।
मयूरभंज के छोटे से गांव बैदापोसी में जन्मीं, सीधी-सादी लड़की द्रौपदी मुर्मू की देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद तक की यात्रा सचमुच प्रेरणादायी है। जीवन में किसी से बैर नहीं रखने वाली, सबकी मदद और हर जिम्मेदारी के लिए हमेशा तैयार रहने वाली द्रौपदी को समय की बर्बादी बचपन से पंसद नहीं थी। पुस्तक “President Droupadi Murmu: A Reflection of Changing Bharat” (राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मूः बदलते भारत का प्रतिबिंब) उनके जीवन से जुड़ी ऐसी अनेक अनकही बातों और अनुछुए पहलुओं को उजागर करती है।
यह किताब उनके राजनीतिक मेंटर मनोरंजन मोहंती की बेटी डॉ. विजया लक्ष्मी मोहंती ने लिखी है। दिसंबर में उनके राष्ट्रपति बनने के 6 महीने पूरे होने के अवसर पर इसका विमोचन किया जाएगा। एक आम नागरिक के सबसे बड़े संवैधानिक पद तक पहुंचने की गाथा, यह किताब अंग्रेजी में लिखी गई है।
इसमें राष्ट्रपति मुर्मू के संघर्षमय जीवन-दुख, चुनौतियां तथा उनसे मिली सीख और राजनीतिक यात्रा का रोचक वर्णन किया गया है। गांव-मोहल्ले, स्कूल-कॉलेज, संस्थान के साथी-संगियों की जुबान से यह वर्णन जीवंत हो उठा है। ऐसे वाकये भी हैं जिनसे अभी तक लोग अनजान हैं। दुख के उन पलों का भी जिक्र है जो किसी भी शख्स को सहज ही विचलित कर देते हैं।
ऐसा ही एक पल उनके जीवन में तब आया जब उनके बड़े बेटे लक्ष्मण की अचानक मौत हो गई। 25 साल के जवान बेटे को खोने का सदमा इतना गहरा था कि वे एकबारगी टूट गईं। उन्होंने खुद को एक कमरे तक सीमित कर लिया। उनकी स्थिति देख उनके पति और परिवार के अन्य सदस्य काफी चिंतित हो उठे। आखिरकार इस अवस्था से निकलने के लिए उन्होंने ध्यान करना शुरू किया और नई जिम्मेदारियों के लिए खुद को तैयार किया।
जिम्मेदारी और सहयोग का भाव उनमें हमेशा से था। रमा देवी कन्या महाविद्यालय से 1979 में स्नातक के बाद वे अपनी दीदी डेल्हा सोरन और चार अन्य लड़कियों के साथ शेयरिंग में रहती थीं। कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद परिवार की आर्थिक जरूरतें पूरी करने के लिए वे नौकरी करने लगीं। इस दौरान वे साथ रह रहीं लड़कियों के लिए खाना बनातीं, बाजार से उनकी जरूरत के सामान लातीं और ऑफिस भी जाती थीं।
आज के दौर में नेताओं से नैतिकता की उम्मीद बेमानी होती जा रही है, लेकिन द्रौपदी मुर्मू सार्वजनिक जीवन में इसे आवश्यक मानती हैं। 2009 में उन्हें दूसरी पार्टियों से कई बड़े ऑफर दिए गए, परिवार के कुछ सदस्य भी ऐसा ही चाहते थे, लेकिन उन्होंने ऑफर के बजाय वफादारी को चुना। उनका राष्ट्रपति चुना जाना शायद इसी नैतिकता का परिणाम है।
पुस्तक में द्रौपदी मुर्मू की सहेलियों और शिक्षकों के हवाले से भी कई रोचक बाते बताई गई हैं। सातवीं कक्षा तक उनकी सहेली रहीं कनक लता मंडल के पिता जुगल किशोर मंडल भी उपरबेड़ा स्कूल में शिक्षक थे। कनक लता बताती हैं, “मैंने उनके साथ सातवीं तक पढ़ाई की। उनका पढ़ाई के प्रति लगन और समर्पण गजब का था। हर दिन नाला पार करके स्कूल आती थीं। वे बेहद आज्ञाकारी लड़की थीं। स्कूल से छुट्टी होने के बाद वे जल्द से जल्द घर लौट जाती थीं, क्योंकि उनकी मां का आदेश था। उनकी मां मुझसे भी बहुत प्यार करती थीं। हम दोनों को एक दूसरे की परवाह रहती थी। आज मैं अपने परिवार के साथ राउरकेला में रहती हूं और अक्सर स्कूल में उनके साथ बिताए दिनों को याद करती हूं।”
उपरबेड़ा स्कूल में उनकी सहेली रहीं तपती मंडल के अनुसार, “द्रौपदी को पढ़ाई-लिखाई में गहन रुचि थी। समय बर्बाद करना उन्हें पसंद नहीं था। मैंने उन्हें कभी किसी के साथ गलत या अभद्र व्यवहार करते नहीं देखा। खेलों के साथ वे पढ़ाई में अव्वल थीं और स्कूल में आयोजित म्यूजिकल चेयर, पुच्ची खेला, कबड्डी और झिलपी दौड़ में भाग लेती थीं।”
तपती बताती हैं, “हम पड़ोसी थे। मकर संक्रांति के दिन टुसू मेले में हम साथ जाते थे। वहां से किताब और स्याही खरीद कर लाते थे। उन दिनों हमारे पास बॉल पेन या फाउंटेन पेन नहीं होते थे। हम बांस को चीर कर कलम बनाते और दावात में डुबाकर लिखते थे।”
तपती ने बताया कि खुद की शादी जल्दी हो गई थी। पति के रिटायर होने के बाद वे अब उपरबेड़ा में ही रहती हैं। ओड़िशा में मंत्री रहने के दौरान तथा अन्य अनेक मौकों पर द्रौपदी मुर्मू उन्हें मिलने के लिए बुलाती रहती थीं। हालांकि परिवार की जिम्मेदारियों के कारण वे कभी मिलने नहीं जा पाईं। लेकिन आज वे उनसे मिलना चाहती हैं और राष्ट्रपति भवन को भी देखना चाहती हैं।
बिश्वेवर मोहंता 1967 में उपरबेड़ा एमई स्कूल के हेड मास्टर बने और द्रौपदी ने 1968 में स्कूल में प्रवेश लिया था। पुराने दिनों को याद करते हुए उन्होंने किताब में बताया है, “वह बेहद शांत एवं सरल स्वभाव की लड़की थी। मॉनीटर के रूप में पूरी कक्षा को अच्छे ढंग से संचालित करती थी। पढ़ाई के दौरान किसी भी तरह की शंका होने पर तुरंत हाथ उठा देती और अच्छी तरह समझने के बाद ही चैन से बैठती थी।”
(फोटोः स्कूल जीवन के दौरान अपनी सहेलियों के साथ मध्य में खड़ी द्रोपदी मुर्मू)
1970 में सातवीं पास होने के बाद उच्च शिक्षा के लिए भुवनेश्वर जाने वाली द्रौपदी मुर्मू गांव की पहली लड़की थीं। वे पढ़ने के साथ खेल और गायन प्रतियोगिताओं में भी अव्वल आती थीं। मोहंता के अनुसार, “पढ़ाई में उसकी लगन को देखकर लगता था कि वह जरूर एक दिन टीचर बनेगी। राष्ट्रपति बनेंगी, यह कभी नहीं सोचा था।”
द्रौपदी मुर्मू परिवार की करीबी डॉ. विजया लक्ष्मी मोहंती ने इस किताब में राष्ट्रपति की जीवन यात्रा के जरिए भारतीय मूल्यों को भी रेखांकित किया है। यह पाठकों को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के कम जाने-माने भौगोलिक क्षेत्र और सांस्कृतिक विरासत को भी जानने का मौका देती है। किताब में लोगों को प्रेरित करने के लिए काफी ऊर्जा है। इसके जरिए महिला सशक्तीकरण के महत्व को भी समझा जा सकता है। डॉ. विजया वर्मतान में श्रीश्री विश्वविद्यालय में निदेशक ह्यूमन रिसोर्सेस डेवलपमेंट सेंटर, हेड पब्लिक रिलेशंस एंड सोशल आउटरीच के साथ अन्य जिम्मेदारी संभाल रही हैं।
किताब का प्रकाशन करने वाले दिल्ली के ज्ञान बुक के संचालक अमित गर्ग कहते हैं, एक आम लड़की का देश के सबसे बड़े पद पर बैठना भारत के लोकतंत्र की सबसे बड़ी उपलब्धियों में एक है। वे जिस समुदाय और जगह से आती हैं, वहां से यहां तक पहुंचने की यात्रा अपने आप में विशेष और प्रेरित करने वाली है। ज्ञान बुक के मैनेजिंग डायरेक्टर बीपी गर्ग ने बताया कि हमने करीब 20 हजार लेखकों के बीच चर्चा कर ऐसे लेखक को तलाशा जो वास्तव में उनके जीवन को कलमबद्ध कर सके। यह किताब अंग्रेजी में लाई जा रही है, जल्द ही इसका हिंदी और ओड़िया संस्करण प्रकाशित होगा। इस किताब को प्रकाशित करने का मकसद उनके जीवन की प्रेरणादायक कहानी को हर वर्ग पहंचाना है।