बदली जलवायु से डेंगू-चिकनगुनिया जैसी बीमारियां हुईं संक्रामक, बदलता तापमान बढ़ा रहा मुश्किल
जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान और आर्द्रता में बदलावों से आने वाले समय में पैथोजेनिक बीमारियां जैसे कि इंफ्लुएंजा खसरा कोरोना डेंगू मलेरिया आदि का संक्रमण दुनिया में 58 फीसद और तेजी से बढ़ने की संभावना है। इसको ध्यान में रखते हुए तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है।
नई दिल्ली, विवेक तिवारी / देश भर में डेंगू का कहर जारी है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों की मानें तो दुनिया भर में 40 करोड़ लोग हर साल डेंगू से प्रभावित होते हैं। कोरोना की भयावहता का सामना अब तक लोग कर रहे हैं। दूसरी तरफ मलेरिया, चेचक खसरा जैसी बीमारियों की वजह से अब भी बड़ी तादाद में लोग काल के गाल में समा जाते हैं। हाल ही में आई रिपोर्ट बताती है कि जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान और आर्द्रता में आने वाले बदलावों से पैथोजेनिक बीमारियां जैसे कि इंफ्लुएंजा, खसरा, कोरोना, डेंगू, मलेरिया आदि का संक्रमण दुनिया में 58 फीसद और तेजी से बढ़ेगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि आम लोगों को जागरूक करने के साथ ही सरकार को जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए इन बीमारियों से बचाव के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि क्लाइमेट चेंज के प्रभावों के चलते आने वाले समय में संक्रामक रोग तेजी से बढ़ेंगे। मशहूर पत्रिका नेचर में छपी एक रिपोर्ट में अमेरिकी शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि अब तक ज्ञात लगभग 375 संक्रामक बीमारियों में से 58 फीसदी (लगभग 218 बीमारियां) बेहद गंभीर हो चुकी हैं। क्लाइमेट चेंज की वजह से इन बीमारियों के तेजी से फैलने का खतरा बढ़ चुका है। आने वाले दिनों में ये बीमारियां लोगों की सेहत के लिए तो मुश्किल पैदा करेंगी ही, इनसे बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान भी होगा। COVID-19 के चलते बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी जान गंवाई, साथ ही इस बीमारी से निपटने के लिए अकेले अमेरिका को लगभग 16 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने पड़े।
शोध में शामिल अमेरिका की हवाई यूनिवर्सिटी के भूगोल और पर्यावरण विभाग की रिसर्चर कैमिलो मोरा के मुताबिक ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस, जीका, मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, इन्फ्लूएंजा, इबोला, एमईआरएस और सार्स जैसी बीमारियों का बोझ हर साल दुनिया में लाखों लोगों की जान लेता है। इस अध्ययन के मुताबिक 277 संक्रामक रोग ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन से उत्पन्न होने वाले जलवायु परिवर्तन के खतरों को और बढ़ा सकते हैं। ये अध्ययन बताता है संक्रामक रोगों से बचाव के लिए जलवायु परिवर्तन और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर रोक के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है।
जलवायु परिवर्तन बढ़ाता है संक्रामक रोग
जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ता तापमान संक्रामक रोगों को बढ़ावा देता है। पिछले 4 दशकों में संयुक्त वैश्विक प्रयासों ने पूरी दुनिया में मलेरिया के मामलों को कम किया, लेकिन अन्य वेक्टर जनित बीमारियों, विशेष रूप से डेंगू से होने वाली मौतें बढ़ी हैं। जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य 2019 रिपोर्ट में लैंसेट ने खुलासा किया था कि पिछले कुछ वर्षों में मच्छरों द्वारा होने वाले रोगों (मलेरिया और डेंगू) में वृद्धि हुई है। अध्ययनों से पता चलता है कि दक्षिण एशिया के ऊंचे पहाड़ों में ज्यादा बारिश और बढ़ते तापमान के चलते संक्रामक बीमारियां तेजी से फैली हैं। ज्यादा बारिश के चलते इन पहाड़ी इलाकों में मच्छरों को प्रजनन में मदद मिली है। साथ ही बढ़ता तापमान इनके जीवन चक्र को तेज कर देता है।
पर्यावरणीय कारक जैसे ऊंचे पहाड़ों में तापमान में असमान वृद्धि, कम बर्फबारी, अत्यधिक मौसम की घटनाएं जैसे भारी वर्षा, पहाड़ी ढलानों में कृषि और कृषि गतिविधियों में वृद्धि और लोगों की पहुंच और गतिशीलता में वृद्धि हिंदुकुश और हिमालय (एचकेएच) क्षेत्र में पहले से काफी अधिक बढ़ गए हैं। पिछले कुछ दशकों में एचकेएच क्षेत्र में देखे गए इन परिवर्तनों से संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा बढ़ा है।
ICMR में सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर क्लाइमेट चेंज एंड वेक्टर बॉर्न डिजीज के प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर रहे डॉक्टर रमेश धीमान बताते हैं कि जल जनित और वेक्टर जनित रोग पैदा करने वाले जीव जलवायु के प्रति संवेदनशील होते हैं। मच्छर, सैंड फ्लाई, खटमल जैसे बीमारी फैलाने वाले कीटों का विकास और अस्तित्व तापमान और आर्द्रता पर निर्भर करता है। ये रोग वाहक मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी एन्सेफलाइटिस, कालाजार जैसी बीमारी बहुत तेजी से फैला सकते हैं। आने वाले समय में संभव है कि जलवायु परिवर्तन के चलते कुछ इलाके जहां पर कोई विशेष संक्रामक बीमारी नहीं थी, अचानक बीमारी फैलने लगे। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भौगोलिक रूप से एक समान नहीं होगा क्योंकि विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में अलग-अलग जलवायु विशेषताएं होती हैं। उदाहरण के लिए, भारत में हिमालयी क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील है क्योंकि तापमान में वृद्धि के कारण ठंडे तापमान वाले क्षेत्र मलेरिया और डेंगू के लिए उपयुक्त हो गए हैं। देश का दक्षिणी भाग कम प्रभावित होने की संभावना है क्योंकि यहां लगभग सभी 12 महीनों के लिए पहले से ही वेक्टर जनित रोगों के लिए जलवायु उपयुक्त है।
जलवायु परिवर्तन से बाढ़ के मामले बढ़ेंगे। बाढ़ से जलाशयों में ठहराव आ जाता है जहां मच्छर अत्यधिक प्रजनन कर सकते हैं और मलेरिया तथा जापानी इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारियां फैलाते हैं। बढ़ी हुई आर्द्रता भी मच्छरों और खटमल जैसे रोगवाहकों के अनुकूल स्थिति बनाती है। राजस्थान में मलेरिया का प्रकोप वर्ष के विशेष महीनों में अत्यधिक वर्षा से संबंधित है। कुछ क्षेत्रों में सूखा भी बीमारी फैलाने वाले कीटों के अनुकूल परिस्थितियां पैदा करता है क्योंकि नदी के तल मच्छरों को प्रजनन के लिए बेहतर स्थिति बनाते हैं। अत्यधिक तापमान से मच्छरों की मृत्यु हो जाती है और वे तेजी से उभरने के बाद थोड़े समय के बाद मर जाते हैं। इसलिए उम्मीद है कि जिन क्षेत्रों में अभी बहुत अधिक तापमान है (ओडिशा, राजस्थान और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्से), तापमान में और वृद्धि के साथ, मलेरिया जैसी बीमारियों का बोझ कम हो सकता है।
भारत में हीट वेव और वेक्टर जनित रोगों के फैलाव के कारण अत्यधिक मृत्यु दर के रूप में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव देखे जा रहे हैं। ध्यान रखने योग्य बात ये है कि जलवायु परिवर्तन से बढ़ने वाली बीमारियों पर बेहतर स्वास्थ्य योजनाओं के जरिए लगाम लगाई जा सकती है। भारत सरकार ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं।
जलवायु परिवर्तन ने बढ़ाए 200 से अधिक संक्रामक रोग
शारदा अस्पताल के एमडी (जनरल मेडिसिन) डॉ श्रेय श्रीवास्तव का कहना है कि जलवायु परिवर्तन ने 200 से अधिक संक्रामक रोगों को बढ़ा दिया है, क्योंकि तापमान में अंतर लगभग 2 डिग्री सेल्सियस तक है। वेक्टर जनित, पानी और हवा से होने वाली बीमारियां विभिन्न प्रकार के जलवायु परिवर्तनों से जुड़ी हैं। जैसे सूखा पड़ने पर वायरल एन्सेफलाइटिस, चिकनगुनिया, सांस से संबंधित रोगों के मामले बढ़ जाते हैं। बाढ़ के मामलों में वायरल गैस्ट्रोएंटेराइटिस, क्रिप्टोस्पोरिडियम, मलेरिया, डेंगू, हैजा, टाइफाइड, लसीका फाइलेरिया के मामले बढ़ते हैं। जलवायु परिवर्तन काफी तेजी से हो रहा है इसलिए भविष्य में इसके चलते कई संक्रामक रोगों का प्रकोप तेजी से बढ़ेगा।
पहाड़ों में बढ़ रहा डेंगू और मलेरिया
जलवायु परिवर्तन वैसे तो दुनिया के हर हिस्से में रहने वाले लोगों को प्रभावित कर रहा है लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर हिंदुकुश और हिमालय के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की सेहत पर पड़ रहा है। तापमान में हो रहे बदलावों से पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए मुश्किलें बढ़ी हैं। उन्हें कई ऐसी बीमारियों को सामना करना पड़ रहा है जो पहले पहाड़ों में पाई ही नहीं जाती थीं। ये बात स्विट्जरलैंड के एक रिसर्च पेपर में छपे एक शोध में भी सामने आई।
इस शोध में शामिल आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च के वैज्ञानिक रहे रमेश सी धीमान ने बताया कि गर्म मौसम में मच्छर तेजी से प्रजनन करते हैं और उनका जीवन चक्र भी तेज हो जाता है। वो जल्द अंडे से वयस्क मच्छर बन जाते हैं और जल्द मर भी जाते हैं। ठंड में इनका जीवन चक्र सुस्त हो जाता है। पिछले कुछ सालों में पहाड़ों में तापमान बढ़ा है। साल के अलग-अलग समय में तापमान में दो से तीन डिग्री तक का अंतर आ चुका है। ऐसे में पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि उत्तराखंड के जिन हिस्सों में पहले मलेरिया नहीं होता था वहां से मलेरिया के मरीज आने लगे हैं। हिमाचल के कुछ हिस्सों में डेंगू के मामले दर्ज किए गए हैं। पहले यहां लोगों को डेंगू नहीं होता था। ये जलवायु परिवर्तन का असर है। यदि जल्द इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर हिमालय के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों की सेहत पर दिखेगा।
इन बातों का रखें ध्यान
1) अपने आप को अत्यधिक गर्मी से बचाएं।
2) सूरज और यूवी किरणों से खुद को बचाएं।
3) स्मॉग के स्वास्थ्य प्रभावों को रोकें।
4) अपने आप को मच्छर और कीटों के काटने से बचाएं।
5) ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने में योगदान करें।
6) व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखें।
7) सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनने की कोशिश करें।
8) फिल्टर किया हुआ या उबला हुआ पानी पिएं।
रोग को जन्म देने वाले जीव
रोगजनक (pathogen) उन्हें कहा जाता है, जिनके कारण कई तरह की बीमारियों का जन्म होता है। इनमें विषाणु, जीवाणु, कवक, परजीवी आदि आते हैं। यह किसी भी जीव, पेड़-पौधे या अन्य सूक्ष्म जीवों को बीमार कर सकते हैं। मानव में जीवों के कारण होने वाले रोग को भी रोगजनक रोगों के रूप में जाना जाता है। इन रोगजनकों के कारण चेचक, इनफ्लुएंजा, गलसुआ, खसरा, कोरोना, इबोला वायरस रोग, इबोला और रूबेला आदि रोग हो सकते हैं।
इस वजह से बढ़ रहे हैं डेंगू के मामले
आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च के वैज्ञानिक रहे रमेश सी धीमान कहते हैं कि डेंगू फैलाने वाला मच्छर कचरे में पड़े हुए टूट कप, कागज के कप, नारियल के खोल सहित किसी ऐसी जगह पर जहां पानी जमा रहता है उसमें पनपते हैं। इस साल रुक- रुक कर काफी ज्यादा बारिश हुई है। इसके चलते इन छोटे बरतनों में पानी जमा रहा और मच्छरों को पनपने का मौका मिला है। दस दिन में मच्छर का एक साइकल पूरा हो जाता है। दस दिन के बाद ये मच्छर बीमारी फैलाने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं इनसे बचाव का सबसे अच्छा तरीका है कि किसी भी तरह से पानी जमा न होने दिया जाए। खास तौर पर घरों में और घरों के आसपास इसका खास ध्यान रखा जाए।