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बंजर भूमि में उगाए सबसे महंगे फल

साहिबगंज एक मॉडल के रूप में आसपास के लोगों के सामने आएगा- यह बताने के लिए कि काजू की खेती पत्थर के खनन से ज्यादा फायदेमंद है।

By Srishti VermaEdited By: Updated: Wed, 28 Jun 2017 08:53 AM (IST)
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बंजर भूमि में उगाए सबसे महंगे फल

साहिबगंज (राजेंद्र पाठक)। काजू की खेती झारखंड के साहिबगंज जिले में वन समिति के सदस्यों के जीवनमें खुशहाली लाने वाली है। जो पथरीली जमीन खेती के लिए अनुपयुक्त थी वही अब काजू की खेती का आधार बनेगी। सोने पे सुहागा यह है कि इससे क्षेत्र में पत्थर के खनन पर भी रोक लगने के आसार हैं। साहिबगंज एक मॉडल के रूप में आसपास के लोगों के सामने आएगा- यह बताने के लिए कि काजू की खेती पत्थर के खनन से ज्यादा फायदेमंद है। वन विभाग ने नर्सरी में लगभग दस हजार काजू के पौधे तैयार किए हैं, जिसे वन समितियों के माध्यम से तीन ब्लॉक में लगाया जाएगा।

बोरियो ब्लॉक के अंतर्गत बांझी जसायडी गांव, बरहेट के पतौड़ा और तालझारी के मालीटोक गांव का चयन किया गया है। यहां लगभग 15 एकड़ पथरीली भूमि पर काजू के पौधे लगाए जाएंगे। वन विभाग अपनी तीन नर्सरी में काजू के पौधे तैयार कर रहा है। पौधे अभी 6 इंच लंबे हुए हैं। जैसे ही इनकी लंबाई डेढ़ फीट होगी, इन्हें रोपने का काम शुरू किया जाएगा। विभाग के अनुसार एक पौधे के पेड़ बनने व फल देने में लगभग पांच से छह साल का समय लगता है। एक पेड़ से एक साल में लगभग दस किलो तक काजू का उत्पादन हो सकता है। यानी कुछ एकड़ भूमि पर इसकी खेती कर सालाना पांच से दस लाख रुपये की आमदनी की जा सकती है। जिले की आदिवासी पहाड़िया व अन्य जाति के लोग इसका लाभ ले सकते हैं। वन विभाग ने बरहड़वा ब्लॉक में कोटालपोखर मयूरकोला गांव में प्रयोग के तौर पर लगभग छह साल पहले सात हजार काजू के पौधे वन समितियों के माध्यम से लगवाए थे। इनमें इस वर्ष पहली बार फल लगे हैं।

उसी फल के बीज से तीन नर्सरी में लगभग दस हजार पौधे फिर तैयार किए गए हैं। विभाग के अनुसार यदि भविष्य में इसकी खेती को लोगों ने अपनाया तो एक प्रोसेसिंग मशीन भी लगाई जाएगी। काजू की मार्केटिंग के लिए जमशेदपुर में एक बड़ा बाजार भी उपलब्ध है। समिति में आदिवासी व पहाड़िया ग्रामीण हैं। काजू की बिक्री से मिले लाभ में समिति के सदस्य बराबर के हिस्सेदार होंगे। वन संरक्षण एवं रखरखाव के लिए संबंधित क्षेत्रों के 15-20 ग्रामीणों के समूह से वन समिति गठित होती है। इसमें एक तिहाई भागीदारी महिलाओं की होती  है। चूंकि खेती करने से लेकर रखरखाव व अन्य जिम्मेदारी वन समिति की होगी, ऐसे में लाभ सिर्फ समिति के सदस्यों को ही मिलेगा। अन्य लोग भी समिति बना इसकी खेती कर लाभ ले सकते हैं।

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