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Punjab: HC ने भूमि अधिग्रहण में हस्‍तक्षेप करने से किया इन्‍कार, कहा- 'राष्ट्रीय सुरक्षा से नहीं होना चाहिए समझौता'

Punjab हाई कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण में हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया है। साथ ही निर्देश दिया है कि यदि यह अधिग्रहण सैन्य क्षेत्र के भीतर आता है तो इसे निर्माण से मुक्त रखा जाना चाहिए और राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किए बिना खुले हरित क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। याचिका में अधिग्रहीत भूमि की प्रकृति के आधार पर अधिग्रहण को चुनौती दी गई थी।

By Jagran NewsEdited By: Himani SharmaUpdated: Sat, 11 Nov 2023 09:21 AM (IST)
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राज्य सैन्य क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण कर सकता है पर राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने राज्य के अधिकारियों द्वारा किए गए भूमि अधिग्रहण में हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया है। साथ ही, निर्देश दिया है कि यदि यह अधिग्रहण सैन्य क्षेत्र के भीतर आता है तो इसे निर्माण से मुक्त रखा जाना चाहिए और राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किए बिना खुले हरित क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।

अधिग्रहण भूमि सैन्य क्षेत्र में आती है

हरियाणा सरकार ने गुरुग्राम नगर निगम के भीतर एयर फोर्स स्टेशन के 1000 गज के दायरे में भूमि अधिग्रहण को लेकर नौ मई 1988 व चार मई 1989 अधिसूचना जारी की थी। गुरुग्राम निवासी लेफ्टिनेंट कर्नल इंद्र सिंह कल्लन समेत कई आइएएस-आइपीएस अधिकारियों ने अधिसूचना को चुनौती देते हुए कई याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि अधिग्रहण भूमि सैन्य क्षेत्र में आती है और इसलिए इसका अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है।

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50,000 रुपये का जुर्माना लगाया

हालांकि, कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और याचिका दायर करने के लिए 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया। जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस कुलदीप तिवारी की खंडपीठ ने अधिग्रहण प्राधिकारी को यह निर्देश दिया कि अधिग्रहित भूमि, यदि वे सैन्य क्षेत्र या प्रतिबंधित क्षेत्र में आती हैं, तो उन्हें सभी प्रकार के निर्माणों से मुक्त रखा जाएगा।

प्रकृति के आधार पर अधिग्रहण को चुनौती दी गई

याचिका में अधिग्रहीत भूमि की प्रकृति के आधार पर अधिग्रहण को चुनौती दी गई थी। यह तर्क दिया गया कि भूमि सैन्य क्षेत्र में आती है और इसलिए इसे अधिग्रहित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह रक्षा अधिनियम द्वारा शासित है। दलीलों पर विचार करते हुए कोर्ट ने अपने एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया था कि रक्षा अधिनियम के प्रविधान को स्थानीय कानूनों या कार्यकारी नीतियों की तुलना में ओवर-राइडिंग प्रभाव दिया जाना आवश्यक है।

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उपरोक्त को स्पष्ट करते हुए कोर्ट ने कहा कि यद्यपि रक्षा अधिनियम को स्थानीय कानूनों, कार्यकारी नीतियों पर अधिभावी प्रभाव दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी निजी व्यक्ति ने सैन्य क्षेत्र या संवेदनशील क्षेत्र पर निर्माण किया है तो वह रक्षा अधिनियम में सन्निहित उचित वैधानिक प्रविधान के प्रकोप को आमंत्रित करेगा।

याचिकाओं का कोई आधार नहीं

ऐसा निर्माण ध्वस्त कर दिए जाने के लिए उत्तरदायी है, ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किए बिना अधिग्रहण के बाद हरित क्षेत्र को बनाए रखा जा सके। उपरोक्त के आधार पर कोर्ट ने अधिग्रहण को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि याचिकाओं का कोई आधार नहीं है। कोर्ट ने इस तरह की याचिका दायर करने पर याचिकाकर्ताओं को 50,000 रुपये का जुर्माना लगाने का भी आदेश दिया।