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'यह दिन संभव होने का सर्वाधिक श्रेय Narendra Modi को', राम मंदिर पर बोले डॉ. रामविलासदास वेदांती; कई सवालों के दिए जवाब

डा. वेदांती ने राम मंदिर से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी की प्रबल इच्छा शक्ति के चलते ही सुप्रीमकोर्ट में मामले की नियमित सुनवाई हो सकी अन्यथा निर्णय आने में पांच सदी और लग जाती। कहा कि राम राज्य में भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं है। हिंदुत्व को मुस्लिमों के विरोध में देखना न्यायसंगत नहीं है। ।

By Raghuvar Sharan Edited By: Aysha SheikhUpdated: Tue, 16 Jan 2024 12:42 PM (IST)
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'यह दिन संभव होने का सर्वाधिक श्रेय नरेंद्र मोदी को', राम मंदिर पर बोले डॉ. रामविलासदास वेदांती

जागरण टीम, अयोध्या। रामजन्मभूमि मुक्ति का आंदोलन निरंतर युवा हो रहा था, किंतु उसका नेतृत्व बूढ़ा हो रहा था। 22-23 दिसंबर 1949 की रात रामजन्मभूमि पर रामलला के प्राकट्य में केंद्रीय भूमिका निभाने वाले बाबा अभिरामदास 1984 में आंदोलन शुरू होने से एक वर्ष पूर्व ही चल बसे, किंतु रामजन्मभूमि की दावेदारी की विरासत आगे बढ़ाने के लिए वह अपने शिष्य डा. रामविलासदास वेदांती को तैयार कर गए।

यद्यपि प्रारंभ में आंदोलन का नेतृत्व महंत अवेद्यनाथ, महंत रामचंद्रदास परमहंस एवं महंत नृत्यगोपालदास जैसे शीर्ष धर्माचार्य कर रहे थे। अशोक सिंहल मुख्य समंवयक की भूमिका में थे। वह भी सेवानिवृत्ति की उम्र के करीब थे। महंत अवेद्यनाथ 60 से ऊपर के थे और परमहंस 75 के। यह सभी तेजस्वी, प्रतिभावान और परिपक्व थे।

इन्हें आंदोलन के लिए जब कभी युवा ऊर्जा की जरूरत होती थी, तब उमाभारती, साध्वी ऋतंभरा, विनय कटियार के साथ डा. रामविलास वेदांती जैसे नई पीढ़ी के नायक कमान संभालते थे। उस समय वह युवा थे। वाल्मीकि रामायण पर तो उन्होंने विशेष शोध के साथ डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त कर रखी थी।

अन्य ग्रंथों और शास्त्रों में भी वह पारंगत थे। उनके सामने अध्यापन और उपदेशक बनने का सहज अवसर था, किंतु उन्होंने अपनी ऊर्जा और प्रतिभा मंदिर आंदोलन के लिए समर्पित किया। वह दो बार सांसद भी रहे। राम मंदिर के रूप में चिर स्वप्न साकार होने की बेला में डा. वेदांती से हमारे संवाददाता रघुवरशरण ने इस स्वप्न से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में विस्तार से बात की, जो इस प्रकार है-

प्रश्न - जिस स्वप्न के लिए आपने जीवन समर्पित किया, उसे साकार होते देखना कैसा लग रहा है?

उत्तर - मुझे मंदिर आंदोलन की प्रारंभिक रूपरेखा का स्मरण हो रहा है। अशोक सिंहल और डा. मुरलीमनोहर जोशी जैसे शीर्ष लोगों के साथ गांव-गांव की खाक छानना और छोटी से बड़ी सभाओं में मंदिर की मुक्ति का आह्वान करना और इस बीच अतीत के गौरव से लेकर मध्यकाल की त्रासदी साझा करने का अभियान आज भी रोमांचित करता है।

प्रश्न- आपकी राय में रामजन्मभूमि की मुक्ति के सुदीर्घ अभियान को सफलता के शिखर पर पहुंचाने वाले मुख्य प्रेरक क्या थे?

उत्तर - मुक्ति का सुदीर्घ अभियान तीन खंडों में देखा जा सकता है। सशस्त्र संघर्ष, न्यायालय में साक्ष्य प्रस्तुत करना और संगठित आंदोलन। सभी का अपना महत्व है, किंतु मेरी समझ में आंदोलन का दौर निर्णायक बना। आंदोलन के ही चलते न्यायालय में पक्ष प्रस्तुत करने के भी प्रति पूरे प्रभाव का परिचय दिया गया। यह भावभूमि उस पीढ़ी के प्रतिनिधि अशोक सिंहल, महंत अवेद्यनाथ, मोरोपंत पिंगले जैसे नेताओं ने तैयार की और उसके प्रेरक-संवाहक भी बने।

प्रश्न - निर्णय से पूर्व रामजन्मभूमि मुक्ति के अभियान में किस मोड़ को सर्वाधिक प्रमुख मानते हैं?

उत्तर - 1949 में गुरुदेव अभिरामदास ने अपनी तपस्या से रामजन्मभूमि पर रामलला को प्रकट किया। ...तो छह दिसंबर 1992 को उत्साही कारसवेकों द्वारा ढांचा गिराया जाना, मंदिर की ओर बढ़ते हुए हंस-हंस कर कारसेवकों का गोली खाना और शीर्ष से लेकर आंदोलन के स्थानीय पदाधिकारियों की प्रतिबद्धता अविस्मरणीय है। आंदोलन के प्रांरभिक दौर में यहां संघ के विभाग प्रचारक हृदयनाथ सिंह थे, बलरामपुर में जिला प्रचारक हृषिकेश ओझा थे। उनकी समझ-संवेदना और तत्परता की छाप अभी तक है और आज उन जैसे जमीनी नेतृत्व का प्रयास फलीभूत प्रतीत हो रहा है। ... और सबसे बढ़कर मोदी हैं।

प्रश्न - आपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम लिया। इस सफलतापूर्ण अभियान में उनकी भूमिका को किस रूप में देखते हैं?

उत्तर - प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी की प्रबल इच्छा शक्ति के चलते ही सुप्रीमकोर्ट में मामले की नियमित सुनवाई हो सकी, अन्यथा निर्णय आने में पांच सदी और लग जाती। न्याय की संभावना प्रशस्त करने के साथ मोदी का श्रीराम, राम मंदिर और अयोध्या के प्रति समर्पण तथा इसे श्रेष्ठतम नगरी बनाए जाने के प्रति प्रतिबद्धता भी अभूतपूर्व है।

प्रश्न - रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के समारोह में प्रधानमंत्री के आगमन को राजनीतिक लाभ से जोड़कर देखा जा रहा है। इस शिकायत के बारे में आपका क्या कहना है?

उत्तर - ऐसी शिकायत में कोई दम नहीं है। सत्य यह है कि यह दिन संभव होने का सर्वाधिक श्रेय नरेन्द्र मोदी को है। प्रधानमंत्री के रूप में वह इस महनीय अवसर पर उपस्थित होने के भी हकदार हैं। मुझे उम्मीद है कि वह तीसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ लेने के बाद अयोध्या आने तक जनसंख्या नियंत्रण और समान नागरिक संहिता लागू कर चुके होंगे और यहां से रामराज्य की घोषणा कर रहे होंगे। यद्यपि इससे पूर्व ही वह अयोध्या के लिए भारतीय लोककथाओं के नायक महाराज विक्रमादित्य की तरह साबित हो चुके हैं।

प्रश्न - हिंदुत्व, राम मंदिर और राम राज्य के सपने के बीच मुस्लिमों के लिए क्या संदेश होगा?

उत्तर - राम राज्य में भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं है। हिंदुत्व को मुस्लिमों के विरोध में देखना न्यायसंगत नहीं है। प्राण प्रतिष्ठा के महोत्सव से मुस्लिम भी खुश हैं, आए दिन की खबरों से यह सत्य उजागर होता है।