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फाइलों में दफन हो गई बुद्धा ड्रेन परियोजना

बांसी क्षेत्र में तलहटी की हजारों बीघा निचली कृषि भूमि का कायाकल्प करने के लिए जीवन रेखा मानी जाने वाली सिचाई विभाग की 8.86 करोड़ की महत्वाकांक्षी बुद्धा ड्रेन परियोजना किसानों के लिए सिर्फ ड्रीम बनकर रह गई।

By JagranEdited By: Updated: Thu, 04 Mar 2021 06:00 AM (IST)
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फाइलों में दफन हो गई बुद्धा ड्रेन परियोजना

सिद्धार्थनगर : बांसी क्षेत्र में तलहटी की हजारों बीघा निचली कृषि भूमि का कायाकल्प करने के लिए जीवन रेखा मानी जाने वाली सिचाई विभाग की 8.86 करोड़ की महत्वाकांक्षी बुद्धा ड्रेन परियोजना किसानों के लिए सिर्फ ड्रीम बनकर रह गई। अब तो विभाग को उसका स्मरण भी नहीं रहा। निराशा के साथ किसानों में आक्रोश भी है।

क्षेत्र में फैले तालों के जाल व जल-जमाव वाले हजारों बीघा खेतों जमा रहने वाले पानी को बुद्धा नदी में गिराने के लिए विभाग ने वर्ष 1990 में ड्रेनों के निर्माण की योजना बनाई थी। जिसे बुद्धा ड्रेन नाम दिया गया था। लंबे समय से फसलों के डूबने का दंश झेल रहे किसानों में तब खुशी के आंसू छलक पड़े थे। प्रथम किस्त के रूप में अवमुक्त हुए 80 लाख रुपये से क्षेत्र में 12 स्थानों पर पुल निर्माण भी हुआ था। उसके बाद धन आना बंद हो गया। जानकारी की मानें तो विभाग अब यह प्रोजेक्ट ही बंद कर चुका है। बने पुल हाथी दांत की तरह निष्प्रयोज्य पड़े हुए हैं।

इन तालों व गांवों ड्रेन से मिलता लाभ : डुमरियागंज तहसील में स्थित मेंही ताल, पथरा ताल, पचमोहनी ताल ,निशहर ताल सहित गिधौरा, सेहरी बुजुर्ग, खोरिया रघुवीर सिंह, गौरी पाठक, बिशुन पुरवा, पथरा बाजार, सुमहा, मणिकौरा तिवारी, कम्हरिया बुजुर्ग, कम्हरिया खुर्द, डड़वा राजा, महुआ, धर्म पुरवा आदि गांव के हजारों बीघा निचली कृषि भूमि में आने वाली समस्या से किसानों को निजात मिल जाती। साकेत मणि ने कहा कि तलहटी में जल-जमाव की पीड़ा हम सदियों से भोग रहे। आद्र वन का हिस्सा होने के कारण ताल व तलहटी अधिक है। हमारी खेती जल जमाव से प्रभावित होती है। श्रीपति अग्रहरि ने कहा कि हमारा खेत पथरा ताल में है जहां धान के समय चार पांच फीट पानी जमा रहता है, कभी हम धान नहीं काट पाते। बुद्धा ड्रेन से काफी आस जगी थी पर वह भी फाइलों में दफन हो गई।

आशुतोष मणि त्रिपाठी ने कहा कि मनिकौरा तिवारी व गिधौरा के डाबर में हमारी छह एकड़ कृषि भूमि है, लेकिन कभी भी धान का पूरा पैदावार नहीं होता। ड्रेन बन जाती तो सदियों की समस्या समाप्त हो जाती । नवी सरवर चौधरी ने कहा कि हमारा गांव ही तलहटी में बसा है, बरसात में हमारे खेत खलिहान व घर सभी पानी से घिरे रहते हैं। ड्रेन निर्माण क्षेत्र के लिए एक वरदान साबित होता पर योजना ही बंद हो गई। अधिशासी अभियंता उग्रसेन सिंह ने कहा कि मामला बहुत पुराना है, हमारे संज्ञान में नहीं है। मैं इसका अवलोकन करूंगा। अगर ऐसी कोई योजना होगी, तो विभाग के उच्चाधिकारियों से संपर्क कर जो भी उचित कार्रवाई होगी की जाएगी।