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IIT Kanpur: हमें यह समझना होगा... छात्रों व शिक्षकों में संवाद की कमी बढ़ा रहा तनाव, करियर का दबाव भी है बड़ी वजह

आइआइटी में 30 दिन के अंदर आत्महत्या की तीन घटनाओं ने छात्र-छात्राओं को अंदर तक झकझोर दिया है। संस्थान के आंतरिक माहौल से डरे छात्र-छात्राओं को प्रदर्शन का रास्ता चुनना पड़ा। आत्महत्या की वजह से छात्रों और शिक्षकों में संवाद की कमी और करियर को लेकर बढ़ता दबाव माना जा रहा है। मनोचिकित्सकों का मानना है कि युवाओं को समस्या से जूझने का हुनर सीखने की जरूरत है।

By akhilesh tiwari Edited By: Aysha SheikhUpdated: Sun, 21 Jan 2024 01:20 PM (IST)
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IIT Kanpur: हमें यह समझना होगा... छात्रों व शिक्षकों में संवाद की कमी बढ़ा रहा तनाव

जागरण संवाददाता, कानपुर। आइआइटी कानपुर में शुक्रवार को भड़के छात्र-छात्राओं का आक्रोश साढ़े सात साल बाद दोबारा देखने को मिला है। इसकी वजह छात्रों और शिक्षकों में संवाद की कमी और करियर को लेकर बढ़ता दबाव माना जा रहा है।

मनोचिकित्सकों का मानना है कि विफलताओं से विजेता बनने की सीख लेकर य़ुवाओं को समस्या से जूझने का हुनर सीखने की जरूरत है। दूसरी ओर आइआइटी निदेशक प्रो. एस गणेश ने शिक्षकों से कहा है कि एक सप्ताह के अंदर खुला मंच का आयोजन कर समस्याओं की पहचान कर समाधान कराएं। विद्यार्थियों के साथ अपने बच्चों जैसा ही व्यवहार करें।

आइआइटी में 30 दिन के अंदर आत्महत्या की तीन घटनाओं ने छात्र-छात्राओं को अंदर तक झकझोर दिया है। संस्थान के आंतरिक माहौल से डरे छात्र-छात्राओं को प्रदर्शन का रास्ता चुनना पड़ा। छात्रों का कहना है कि गाइड और शोध छात्र के संबंध अक्सर सामान्य नहीं रहते हैं। तनाव और खटास की वजह से शोध कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। शिक्षकों के नाराज होने से शोध छात्रों में फेल होने का डर बना रहता है।

विद्यार्थियों का कहना है कि वह अपने घर से दूर आकर पढ़ाई कर रहे हैं। शिक्षक को माता-पिता की तरह सम्मान देते हैं लेकिन उनसे दुत्कार ही मिलती है। सबक सिखाने के लिए फेल कर दिया जाता है। शुक्रवार को प्रदर्शन के दौरान छात्र-छात्राओं ने खुलकर अपनी बात कही थी। छात्रों को फेल करने वाली समिति में छात्रों को भी प्रतिनिधि बनाने और हर सेमेस्टर में दो बार शिक्षकों के बारे में फीडबैक लिए जाने की मांग की गई है।

असफलता से सफलता की तलाशें राह

मनोचिकित्सक और सीएसजेएमयू में शिक्षक डा. प्रियंका शुक्ला के अनुसार शोध छात्र-छात्राओं के आत्महत्या करने के कई कारण हो सकते हैं। केवल शैक्षिक दबाव ही कारण नहीं है। परिवार और भावनात्मक कारण भी हो सकते हैं। युवाओं को अपने जीवन की असफलताओं से सबक लेकर सफलता की राह खोलने की जरूरत है।

संस्थान के स्तर पर शिक्षकों व साथियों का व्यवहार, मनोविज्ञानी का परामर्श उपाय लागू किए जा सकते हैं। सीएसजेएमयू के प्रो. राजेश कुमार द्विवेदी ने बताया कि पीएचडी करना कभी आसान नहीं रहा है। मैंने भी जब आइआइटी से शोध किया तो मेरे बैच में 16 शोधार्थी थे लेकिन चार लोगों को ही पीएचडी मिल पाई थी। पीएचडी नहीं मिलने पर भी करियर के लिए तमाम रास्ते हैं।

वर्ष 2016 में हुआ था जोरदार हंगामा

इससे पहले पूर्व आइआइटी निदेशक प्रो. इंद्रानिल मन्ना के कार्यकाल में एक छात्र की मृत्यु के बाद व्यवस्था की लापरवाही से भड़के विद्यार्थियों ने दो दिन तक जमकर हंगामा किया था। नौ और 10 अगस्त 2016 को छात्रों के तीखे प्रदर्शन में प्रशासन की उदासीन कार्यशैली सामने आई थी। तब मैटेरियल साइंस के पीएचडी छात्र गाजीपुर निवासी आलोक पांडेय की हृदयाघात से आठ अगस्त को मौत हो गई थी।

इलाज में चिकित्सक की लापरवाही और आइआइटी प्रशासन के उपेक्षात्मक व्यवहार ने विद्यार्थियों को भड़का दिया था। कई शिक्षकों का घेराव भी किया गया। बिजली आपूर्ति रोक दी गई और पानी की आपूर्ति भी रोकने की कोशिश की गई। इस मामले का पटाक्षेप पीड़ित परिवार को आठ लाख रुपये की क्षतिपूर्ति देने और हेल्थ सेंटर के डाक्टर को निलंबित करने की कार्रवाई से हुआ।