Yogi Cabinet: संतानों को संपत्ति से बेदखल करने वाली नियमावली और होगी साफ, कानूनी पहलुओं के अध्ययन के निर्देश
Yogi Cabinet Meeting उत्तर प्रदेश माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण नियमावली में संशोधन का प्रस्ताव मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में कैबिनेट ने वापस कर दिया। इसमें कानूनी पहलुओं का अध्ययन कर संशोधित प्रस्ताव भेजने के लिए कहा गया है। समाज कल्याण विभाग के इस प्रस्ताव में संतानों एवं रिश्तेदारों को संपत्ति से बेदखल करने की प्रक्रिया आसान बनाई जा रही है।
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। उत्तर प्रदेश माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण नियमावली में संशोधन का प्रस्ताव मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में कैबिनेट ने वापस कर दिया। इसमें कानूनी पहलुओं का अध्ययन कर संशोधित प्रस्ताव भेजने के लिए कहा गया है।
समाज कल्याण विभाग के इस प्रस्ताव में बुजुर्ग माता-पिता या वरिष्ठ नागरिकों पर अत्याचार करने वाली संतानों एवं रिश्तेदारों को संपत्ति से बेदखल करने की प्रक्रिया आसान बनाई जा रही है। दरअसल, विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण नियमावली 2014 के नियम-22 में तीन उप धाराएं जोड़ने की सिफारिश की थी।
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समाज कल्याण विभाग ने दिया था संशोधन का प्रस्ताव
इसी के बाद समाज कल्याण विभाग ने नियमावली में संशोधन का प्रस्ताव तैयार किया था। इसमें वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति से संतानों एवं रिश्तेदारों की बेदखली के लिए एसडीएम की अध्यक्षता में गठित अधिकरण में आवेदन कर सकेंगे।
अगर वरिष्ठ नागरिक स्वयं आवेदन करने में असमर्थ हैं तो कोई संस्था भी उनकी ओर से ऐसा आवेदन दाखिल कर सकती है। अधिकरण को यह अधिकार होगा कि वो बेदखली का आदेश जारी कर सके। कोई व्यक्ति आदेश जारी होने के 30 दिनों के अंदर वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति से बेदखली आदेश को नहीं मानता है तो अधिकरण उस संपत्ति पर पुलिस की मदद से कब्जा कर सकता है।
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अधिकरण ऐसी संपत्ति को बाद में बुजुर्ग को सौंप देगा। अधिकरण के आदेश के खिलाफ वरिष्ठ नागरिक जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित अपीलीय अधिकरण में भी अपील कर सकेंगे।
कैबिनेट के समक्ष जब यह प्रस्ताव आया तो इसमें कहा गया कि माता-पिता केवल अपनी स्वयं की अर्जित संपत्ति से ही संतानों को बेदखल कर सकते हैं, उन्हें पुश्तैनी मिली संपत्ति से बेदखल का अधिकार नहीं है, किंतु नियमावली में यह स्पष्ट नहीं है। इस पर कानूनी राय लेकर फिर से संशोधित नियमावली कैबिनेट में भेजने के लिए कहा गया है।