भोजशाला का भी सच सामने आया: जैसे अयोध्या मसले का शांतिपूर्ण समाधान हुआ, वैसे ही मथुरा-काशी और भोजशाला का भी होना चाहिए
जिस तरह अयोध्या काशी और मथुरा से हिंदू समाज का एक गहरा भावनात्मक रिश्ता है उसी तरह भोजशाला से भी। काशी विश्वनाथ मंदिर का विवाद तो सर्वविदित है। औरंगजेब ने उसे तोड़कर ज्ञानवापी परिसर बनाया। सैकड़ों वर्ष के संघर्ष के बाद 1991 में यह मामला कोर्ट में पहुंचा। 2021 में पांच हिंदू महिलाओं ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल कर ज्ञानवापी स्थित शृंगार गौरी में पूजा की अनुमति मांगी।
हरेंद्र प्रताप। हाल में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने मध्य प्रदेश स्थित धार शहर के ऐतिहासिक भोजशाला परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण की रिपोर्ट मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ को सौंपी। दावा है कि इस सर्वेक्षण में 94 टूटी हुई मूर्तियों सहित 1,700 से अधिक चीजें ऐसी मिली हैं, जो बताती हैं कि भोजशाला स्थित वाग्देवी यानी सरस्वती देवी के मंदिर को मुस्लिम आक्रांताओं ने तोड़कर उसके अवशेष से मस्जिद बनाई थी।
इस रिपोर्ट के न्यायालय में प्रस्तुत होने के बाद हिंदुओं को अब न्याय की प्रतीक्षा है। धार में परमार वंश के राजा भोज ने वर्ष 1000 से 1055 तक शासन किया था। वह मां सरस्वती के अनन्य भक्त थे। वर्ष 1034 में उन्होंने एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे ‘भोजशाला’ के नाम से जाना जाता है। वर्ष 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने उसे ध्वस्त कर दिया।
फिर वर्ष 1401 में दिलावर खान ने भोजशाला के एक हिस्से में मस्जिद बनवा दी। भोजशाला को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। इस पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में कई याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। इसी के तहत हाई कोर्ट ने गत मार्च में एक आदेश जारी कर एएसआइ को भोजशाला का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था।
जिस तरह अयोध्या, काशी और मथुरा से हिंदू समाज का एक गहरा भावनात्मक रिश्ता है, उसी तरह भोजशाला से भी। काशी विश्वनाथ मंदिर का विवाद तो सर्वविदित है। औरंगजेब ने उसे तोड़कर ज्ञानवापी परिसर बनाया। सैकड़ों वर्ष के संघर्ष के बाद 1991 में यह मामला कोर्ट में पहुंचा। फिर 2021 में पांच हिंदू महिलाओं ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल कर ज्ञानवापी स्थित शृंगार गौरी में पूजा की अनुमति मांगी।
न्यायालय के काफी चक्कर लगाने के बाद अंततः 2023 में वाराणसी जिला अदालत ने ज्ञानवापी परिसर में पुरातात्विक सर्वे की अनुमति दी। सर्वे करने वाली एएसआइ की टीम ने वैज्ञानिक सर्वेक्षण, वास्तुशिल्प अवशेषों, कलाकृतियों, शिलालेखों, कला और मूर्तियों के अध्ययन के आधार पर वहां मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले एक हिंदू मंदिर होने कि पुष्टि करते हुए इसी साल जनवरी में अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंपी।
ज्ञानवापी और भोजशाला की तरह ही मथुरा में भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर की ईदगाह मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। उसके फैसले की प्रतीक्षा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट आगरा स्थित शाही मस्जिद की सीढ़ियों में भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह दबे होने के दावे की जांच एएसआइ विभाग से कराने की मांग वाली एक याचिका की सुनवाई कर रहा है। हाई कोर्ट ने सर्वे के संबंध में एएसआइ से जवाब मांगा है। इस मामले की अगली सुनवाई 5 अगस्त को होनी है।
मुस्लिम पक्ष के विरोध के बाद भी उच्च न्यायालयों द्वारा मथुरा तथा भोजशाला मंदिर की जांच एएसआइ विभाग को देने के आदेश के बाद जहां एक तरफ यह विश्वास बढ़ा है कि हिंदू मंदिरों का सत्य अब सामने आएगा, वहीं दूसरी तरफ एक शंका यह भी है कि क्या अयोध्या में प्रभु श्रीराम के जन्मस्थान पर मंदिर तोड़ कर बनाए गए विवादित ढांचे को हटाने के लिए दशकों चले मुकदमे की तरह उपरोक्त मामले भी न्यायालय में लटक तो नहीं जाएंगे? सच्चाई सामने न आए, इसके लिए मुस्लिम पक्ष बार-बार न्यायालय में जाकर सुनवाई को रुकवाने का प्रयास कर रहा है।
उपासना स्थल अधिनियम, 1991 का हवाला देकर मुस्लिम आक्रांताओं के कृत्यों को नकारने का असफल प्रयास किया जा रहा है। यह एक सच्चाई है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने भारत पर आक्रमण कर इस देश के अनेक पूजा स्थलों को तोड़ा, विश्वविद्यालयों को जलाया और महिलाओं-बच्चों समेत सभी पर भयंकर अत्याचार किए। गैर हिंदुओं पर अत्याचार का सिलसिला भारत विभाजन के बाद बने पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी जारी है। इन देशों में हिंदुओं के पूजा स्थल अभी भी तोड़े जा रहे हैं।
आक्रांता इस्लामी आक्रमणकारियों ने पूजा स्थल नहीं तोड़े, यह कहना सरासर झूठ है। वामपंथी इतिहासकार इरफान हबीब ने भी स्वीकार किया है कि मथुरा और काशी के मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गई थीं। उन्होंने यह भी माना कि औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर गलत किया। राम भक्तों के धैर्य की सीमा जब समाप्त हो गई तो छह दिसंबर, 1992 को उन्होंने अयोध्या में विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया।
अयोध्या में उस दिन वह आक्रोश इस्लामिक आक्रमण और न्यायपालिका के टाल-मटोल के खिलाफ भड़का था। भविष्य में ऐसी कोई अनहोनी न घटे और हिंदुओं-मुस्लिमों में आपसी तनाव न भड़के, इसका ध्यान रखना होगा। पुरातात्विक प्रमाण होने के बाद भी न्यायालय इन मामलों का जल्द निपटारा नहीं कर पा रहे हैं।
इस्लाम भले ही बाहर से आयातित पंथ हो, लेकिन उसके अनुयायी इसी मिट्टी के लोग हैं। यह भी एक तथ्य है कि इस्लामिक आक्रमण, इस्लामिक आतंकवाद तथा इस्लाम के आधार पर हुए देश के बंटवारे के कारण इस्लाम और हिंदुत्व के बीच अविश्वास की दीवार खड़ी हुई है। प्रार्थना या इबादत में अंतर मानकर पूजा स्थल से अतिक्रमण हटाकर इबादत या नमाज के लिए दूसरी जगह की मांग और उसकी व्यवस्था समस्या का एक सकारात्मक हल होगा।
जिस प्रकार अयोध्या का शांतिपूर्ण समाधान हुआ, उसी प्रकार काशी, मथुरा और धार स्थित भोजशाला का भी समाधान इस देश के अंदर सद्भाव का वातावरण निर्मित करेगा। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में अयोध्या के मुस्लिम पक्ष की सहभागिता ने एक नए युग की शुरुआत का संदेश दिया है। हिंदू पक्ष को मुस्लिम पक्ष से जो अपेक्षा है, उसकी पूर्ति होनी चाहिए।
(लेखक बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य हैं)