आखिरकार इजरायल ईरान पर हमला करके ही माना। इस हमले की आशंका तभी बढ़ गई थी, जब ईरान ने इस माह के प्रारंभ में इजरायल पर सैकड़ों मिसाइलें दागी थीं। ईरान ने ऐसा इसलिए किया था, क्योंकि वह लेबनान में हिजबुल्ला के सरगना नसरल्ला के इजरायली हमले में मारे जाने से खफा था। वह हमास नेता इस्माइल हानिए के तेहरान में मारे जाने से भी चिढ़ा था। ईरान ने इजरायल पर हमला करके उसे अपने पर हमले का मौका देने का ही काम किया था। वैसे इजरायल ने ईरान पर हमला करके बदला लेने की औपचारिकता ही पूरी की, क्योंकि उसने न तो उसके परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया और न ही तेल ठिकानों को।

ईरान का इजरायल पर हमला भी एक औपचारिकता ही था, क्योंकि उस हमले में इजरायल को कोई विशेष क्षति नहीं हुई थी। लगता है ईरान और इजरायल केवल अपने अहं को पूरा करने के लिए एक-दूसरे को निशाना बना रहे हैं, लेकिन उनके बीच का टकराव कभी भी व्यापक युद्ध में तब्दील हो सकता है। अब ईरान ने कहा है कि वह इजरायल को जवाब देगा। यदि वह ऐसा करता है तो फिर इजरायल भी पलटवार करेगा। पता नहीं यह सिलसिला कहां जाकर थमेगा, लेकिन इस सिलसिले के कायम रहने का अर्थ है पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ना और कच्चे तेल के दाम में उछाल आने की आशंका गहराना।

पश्चिम एशिया में तनाव की जड़ है इजरायल और हमास के बीच का संघर्ष। इस संघर्ष की शुरुआत पिछले साल सात अक्टूबर को तब हुई थी, जब हमास ने इजरायल में भीषण आतंकी हमला किया था। इस बर्बर हमले में हमास आतंकियों ने इजरायल के 1200 लोगों को मार दिया था और ढाई सौ लोगों को बंधक बना लिया था। इनमें से करीब सौ अभी भी गाजा में बंधक बने हुए हैं। हमास उन्हें छोड़ नहीं रहा और इजरायल उनकी रिहाई होने तक गाजा में हमले बंद करने को तैयार नहीं।

इजरायल के हमलों में गाजा में 40 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, लेकिन हमास की पीठ पर हाथ रखे ईरान और कतर जैसे देश उसे इसके लिए राजी नहीं करना चाहते कि वह बंधकों को रिहा कर दे। ऐसा करके वे इजरायल को गाजा और लेबनान में सैन्य कार्रवाई जारी रखने का ही अवसर दे रहे हैं। निःसंदेह इजरायल अत्यधिक आक्रामकता दिखा रहा है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि ईरान और साथ ही उसकी कठपुतली हमास और हिजबुल्ला जैसे संगठन उसके अस्तित्व को मिटाने पर आमादा हैं। साफ है कि पश्चिम एशिया में जंगी हालात का कारण केवल यह नहीं कि इजरायल फलस्तीन को अलग राष्ट्र के रूप स्वीकार करने को तैयार नहीं, बल्कि यह भी है कि ईरान इजरायल का नामोनिशान मिटाना चाहता है। समस्या यह है कि संयुक्त राष्ट्र इतना सक्षम नहीं कि दोनों पक्षों को अतिवादी रवैया छोड़ने के लिए कह सके।