विवेक देवराय और आदित्य सिन्हा। जर्मन चांसलर ओलाफ शुल्ज के भारत दौरे से द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम मिला है। नई दिल्ली में 25 अक्टूबर को भारत-जर्मनी अंतर-सरकारी परामर्श यानी आइजीसी के सातवें दौर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शुल्ज द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने की दिशा में कई बिंदुओं पर सहमति बनाने में सफल हुए हैं। शुल्ज के साथ आए प्रतिनिधिमंडल में जर्मन सरकार के दस मंत्री भी शामिल रहे।

इस दौरान रक्षा, जलवायु परिवर्तन और शिक्षा जैसे अहम क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाएं तलाशकर उन्हें मूर्त रूप देने की योजना पर चर्चा हुई। साथ ही, जर्मनी ने भारत के बढ़ते आर्थिक एवं राजनीतिक कद को भी मान्यता प्रदान की। यूरोपीय संघ में जर्मनी भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। दोनों देशों के बीच व्यापार 2022 में 24.85 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया।

करीब 1,700 से अधिक जर्मन कंपनियां भारत में सक्रिय हैं। परस्पर आर्थिक, तकनीकी और सुरक्षा हितों से जुड़ी यह मैत्री दोनों देशों की क्षमताओं का एक दूसरे को लाभ दिलाएगी। चूंकि द्विपक्षीय संबंधों के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में यह आयोजन हुआ तो इसकी अहमियत और बढ़ गई। जर्मनी के उद्योगपतियों के 18वें एशिया-प्रशांत सम्मेलन यानी एपीके का भी इसी दौरान साथ-साथ आयोजन हुआ।

भारत को जर्मनी से मिल रहे महत्व का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हो रहे कुल जर्मन निवेश का 50 प्रतिशत भारत में हो रहा है। हाल में ही आटोमोटिव एवं अक्षय ऊर्जा जैसे अत्याधुनिक तकनीक वाले क्षेत्रों में जर्मनी से निवेश प्राप्त हुआ है। वास्तव में सतत तकनीकी एवं ऊर्जा साझेदारी के मोर्चे पर हुई पहल बहुत उपयोगी साबित होगी।

इससे संबंधित इंडिया-जर्मनी इनोवेशन एंड टेक्नोलाजी पार्टनरशिप रोडमैप और इंडो-जर्मन ग्रीन हाइड्रोजन रोडमैप जैसी पहल हुई हैं। इनका लक्ष्य वर्ष 2030 तक भारत के 50 लाख मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लक्ष्य को साकार करना है। ये योजनाएं विकासशील देशों में अक्षय ऊर्जा के स्तर पर जर्मनी के 10 अरब डॉलर के निवेश को मूर्त रूप देने से भी जुड़ी हैं।

वर्ष 2022 में आरंभ हुई ऐसी पहल के जरिये स्वच्छ ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं के लिए भारत में 1.2 अरब डॉलर का निवेश पहले ही आ चुका है। ग्रीन हाइड्रोजन में निरंतर निवेश का उद्देश्य भी भारत को इस क्षेत्र में शीर्ष पर स्थापित करना है। इसके माध्यम से 2030 तक 1.5 लाख नई नौकरियां सृजित होने के आसार हैं।

जर्मन तकनीक का लोहा पूरी दुनिया मानती है तो भारतीय युवाशक्ति की क्षमताओं से भी पूरा विश्व परिचित है। इन्हीं संभावनाओं को भुनाने के लिए दोनों देशों ने 50 वर्षीय वैज्ञानिक साझेदारी की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। इसके अंतर्गत 2015 से ही 500 से अधिक संयुक्त शोध परियोजनाओं पर काम होने के साथ ही दोनों देशों के छात्रों के बीच विनिमय में भी 75 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

दोनों देशों के कई शिक्षण संस्थान मिलकर काम करेंगे, जिनमें जर्मनी के ड्रेस्डेन के टीयू और आइआइटी मद्रास जैसे संस्थान शामिल हैं। इंडो-जर्मन साइंस एंड टेक्नोलाजी सेंटर भी अपने दायरे का विस्तार करेगा। इंडो-जर्मन डिजिटल डायलाग के विस्तार पर भी सहमति बनी, जिसमें डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी डीपीआइ में भारत की विशेषज्ञता का लाभ उठाया जाएगा।

भारत और जर्मनी दोनों देश लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुधारों और सुरक्षा परिषद के विस्तार की वकालत करते आए हैं। संयुक्त राष्ट्र के 60 प्रतिशत से अधिक विवादों-टकरावों का निपटारा न होने का हवाला देते हुए दोनों ने इस अवसर पर इन सुधारों की आवश्यकता को फिर से दोहराया। सामरिक क्षेत्र में भी दोनों देशों ने सहयोग के कई बिंदुओं को चिह्नित किया है और आतंकवाद से निपटने के प्रभावी उपाय का निश्चय किया है।

दोनों नेताओं ने आतंकवाद की कड़ी निंदा करते हुए अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से आतंकियों के लिए वित्तीय संसाधनों और उनके लिए सुरक्षित ठिकानों पर कार्रवाई का आह्वान किया। इस दौरान उस दिल्ली घोषणापत्र के क्रियान्वनय का भी समर्थन किया गया, जिसे दोनों देशों ने 2002 में अपनाया था। इसके अंतर्गत आतंकी गतिविधियों से निपटने में नई उभरती हुई तकनीकों के उपयोग का प्रविधान है।

जर्मनी की फैसिलिटी फॉर एंटी-प्रोटोन एंड आयोन रिसर्च (फेयर) जैसी पहल में भी भारत की भागीदारी जारी रहेगी। इस परियोजना को समय से पूरा करने के लिए दोनों पक्षों ने 20 करोड़ यूरो की अतिरिक्त राशि पर भी सहमति जताई। डुअल डिग्री और विभिन्न शोध परियोजनाओं को लेकर बनी सहमति से भी दोनों देशों के छात्रों के लाभान्वित होने की उम्मीद बढ़ी है।

भारत की सामरिक एवं आर्थिक आकांक्षाओं के अनुरूप जर्मनी के साथ प्रगाढ़ होते रिश्ते और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता और व्यापक सुधारों के लिए जर्मनी की पैरवी असल में आज के बहुपक्षीय होते विश्व का एक बेहतर प्रतिबिंब नजर आती है।

एक ऐसे दौर में जब भारत यूरोप के साथ मुक्त व्यापार समझौते सहित विभिन्न मोर्चों पर अपनी सहभागिता-सक्रियता को रफ्तार देने की संभावनाएं तलाश रहा है तो उसे लेकर जर्मनी की प्रतिबद्धता बहुत मायने रखती है। इससे व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिक के स्तर पर तेजी आएगी। दोनों देश महत्वपूर्ण बिंदुओं को लेकर जिस प्रकार से आगे बढ़े हैं, उससे न केवल द्विपक्षीय लाभ, बल्कि ग्लोबल गवर्नेंस के स्तर में भी सुधार होगा।

(देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख और सिन्हा परिषद में ओएसडी-अनुसंधान हैं)