जागरण संपादकीय: शुभ और समृद्धि का संदेश, दीपावली प्रकाश का ही पर्व नहीं
दीपावली केवल प्रकाश का ही पर्व नहीं है यह सुख समृद्धि और वैभव की महत्ता को रेखांकित करने वाला का भी एक बड़ा और अनूठा आयोजन है। इस अवसर पर हम अपने और अपनों के साथ दूसरों के भी कल्याण की कामना करते हैं क्योंकि यही हमारी संस्कृति का मूल भाव है। इस भाव को बनाए रखना हम सबका साझा उत्तरदायित्व है।
दीपावली एक ऐसा अनूठा उत्सव है, जिसकी छटा सर्वत्र देखने को मिलती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि यह हमारा सबसे बड़ा पर्व है। अब तो यह दुनिया भर में मनाया जाने लगा है- न केवल भारतवंशियों की ओर से, बल्कि विभिन्न देशों के लोगों की ओर से भी। एक तरह से दीप पर्व भारतीयता के प्रसार का सबसे प्रभावी प्रतीक बनकर उभरा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस अवसर पर सबके सुख की कामना की जाती है- वह चाहे जिस जाति, पंथ, नस्ल या राष्ट्रीयता का हो।
दीपावली का यही संदेश उसे विश्व स्तर पर तेजी से लोकप्रिय बना रहा है। यह संदेश जितना फैलेगा, विश्व में सुख, शांति और सद्भाव उतना ही बढ़ेगा। प्रभु श्रीराम के अयोध्या आगमन की स्मृति में मनाए जाने वाले इस पर्व का इस बार इसलिए विशेष महत्व है, क्योंकि सदियों बाद यह पहली बार है, जब अयोध्या में श्रीराम के बाल स्वरूप का भव्य मंदिर निर्मित हो गया है और वह उसमें विराजमान हो चुके हैं। इस दिन के लिए लंबी प्रतीक्षा की गई। प्रकाश पर्व की महत्ता केवल इसलिए नहीं है कि इसे मनाने के लिए हर कोई अपनी सामर्थ्य भर व्यापक तैयारियां करता है, बल्कि इसलिए भी है कि यह सबमें आनंद और उल्लास भरता है। यह जीवन की एकरसता को तोड़ता है और हमें हमारी हजारों वर्ष परंपराओं से जोड़ते हुए यह संदेश देता है कि हम एक प्राचीन राष्ट्र हैं और हमें अपनी संस्कृति से जुड़े रहना है और उसे संभालकर भी रखना है।
दीपावली केवल प्रकाश का ही पर्व नहीं है, यह सुख, समृद्धि और वैभव की महत्ता को रेखांकित करने वाला का भी एक बड़ा और अनूठा आयोजन है। इस अवसर पर हम अपने और अपनों के साथ दूसरों के भी कल्याण की कामना करते हैं, क्योंकि यही हमारी संस्कृति का मूल भाव है। इस भाव को बनाए रखना हम सबका साझा उत्तरदायित्व है। चारों ओर शुभ का प्रकाश फैले, सभी का कल्याण हो, हर तरह का अंधकार मिटे और सबके जीवन में खुशियां भर जाएं, यह केवल हमारी अभिलाषा ही नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसके लिए हमें अपने-अपने स्तर पर प्रयत्न भी करने चाहिए।
दीपावली यह अच्छे से बताती है कि मगंलकारी जीवन का एक आधार समृद्धि है, लेकिन पिछले कुछ समय से कुछ नेता और उनके समर्थक इस पर जोर देने में लगे हुए हैं कि समृद्ध होना बुरी बात है। वे संपदा के सर्जकों की निंदा और आलोचना ही नहीं करते, उन्हें समाज के खलनायक के रूप में भी चित्रित करते हैं। यह अतिवादी वामपंथी विचार अभारतीय और अमंगलकारी है। भारत में इस विजातीय विचार के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। संपदा के सर्जकों को तो सम्मान मिलना चाहिए, क्योंकि वे देश को समृद्धि की ओर ले जाने में सहायक बनते हैं। आइए हम सब कामना करें कि यह प्रकाश पर्व शुभ और समृद्धि का संदेश जन-जन तक पहुंचाए।