जागरण संपादकीय: सवालों से घिरी सबसे प्रतिष्ठित सेवा, चयनित अभ्यर्थियों की सत्यनिष्ठा परखने में भारी चूक
संघ लोक सेवा आयोग की गिनती उन चुनिंदा संस्थाओं में होती है जिनकी साख आज भी बनी हुई है। बहुत से सामान्य परिवारों के अभ्यर्थी न सिर्फ सिविल सर्विस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर देश के शासकीय नेतृत्व का हिस्सा बनते हैं बल्कि उसे अपने उज्ज्वल भविष्य के प्रवेश द्वार के रूप में भी देखते हैं। ऐसे में फर्जीवाड़े की शिकायतें भले ही बहुत कम हों लेकिन चिंता का विषय हैं।
विकास सारस्वत। संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी द्वारा सिविल सेवा परीक्षा में पूजा खेडकर की उम्मीदवारी समाप्त कर एक विवादित प्रकरण का पटाक्षेप करने का प्रयास हुआ। महाराष्ट्र कैडर की प्रशिक्षु आइएएस अधिकारी रहीं खेडकर पर आयोग ने भविष्य में अपनी किसी भी परीक्षा में भागीदारी पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। सेवा में कदाचार और भर्ती के लिए फर्जी प्रमाण पत्रों से जुड़े इस मामले के सामने आने के बाद ऐसे तमाम अन्य मामले भी सतह पर आए हैं।
2011 बैच के पूर्व आइएएस अधिकारी अभिषेक सिंह भी ऐसे ही आरोपों में घिरे हैं। सिंह ने बेंचमार्क दिव्यांगता श्रेणी-3 में लोकोमोटर दिव्यांगता का दावा कर नौकरी पाई थी, जबकि उनके नृत्य और जिम में व्यायाम करने के तमाम वीडियो सामने आए हैं। लोकोमोटर दिव्यांगता में ठीक से चल पाना भी संभव नहीं होता।
सिंह नौकरी छोड़कर फिल्मों में काम करने चले गए थे और बाद में राजनीति में भी अपने हाथ आजमाना चाहते थे। लोकसभा चुनावों में टिकट न मिलने पर उन्होंने सेवा में वापसी की अर्जी डाली थी, परंतु योगी सरकार ने उसे नामंजूर कर दिया।
दिव्यांगता और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के झूठे प्रमाण पत्रों का प्रयोग करने के आरोप केवल पूजा और अभिषेक सिंह पर ही नहीं, बल्कि कई अन्य आइएएस अधिकारियों पर भी लगे हैं।
ऐसे आरोपों के बाद इंटरनेट मीडिया पर व्यापक रूप से सक्रिय कई अधिकारियों ने अपने प्रोफाइल या तो प्राइवेट कर लिए या फिर डिलीट कर दिए हैं। पूजा खेडकर मामला इसलिए बहुत चौंकाने वाला है कि इसमें एक नहीं, बल्कि कई स्तरों पर गड़बड़ी हुई और उनके संज्ञान में आने के बावजूद खेडकर को आइएएस में नियुक्ति मिल गई।
पिता के भी वरिष्ठ अधिकारी रहने के बावजूद पूजा ने स्वयं को क्रीमी लेयर से अलग दर्शाया और फर्जी दिव्यांगता बताई। खुद पूजा खेडकर के नाम पर 17 करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्ति है और उनके माता पिता के नाम 50 करोड़ की घोषित संपत्ति है। आयोग द्वारा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में छह बार मेडिकल टेस्ट हेतु बुलाए जाने के बावजूद वह नहीं आईं। बाद में यह रिपोर्ट भी आई कि उन्होंने अपनी आयु भी कम करके दर्शाई।
दिलचस्प यह है कि खेडकर इतना फर्जीवाड़ा करके बच निकलीं और उन पर कार्रवाई तब हुई, जब उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अभद्रता और दुर्व्यवहार शुरू कर दिया।
फरवरी 2023 में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण यानी कैट ने अधिकृत संस्थान दिल्ली एम्स से एमआरआइ न कराने पर पूजा खेडकर के चयन को रद करने का आदेश दिया था, परंतु यूपीएससी ने पुणे के एक अनधिकृत अस्पताल से भेजी गई रिपोर्ट को मानकर खेडकर के चयन को बहाल रखा और आइएएस कैडर आवंटित कर दिया।
संघ लोक सेवा आयोग की गिनती उन चुनिंदा संस्थाओं में होती है, जिनकी साख आज भी बनी हुई है। बहुत से सामान्य परिवारों के अभ्यर्थी न सिर्फ सिविल सर्विस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर देश के शासकीय नेतृत्व का हिस्सा बनते हैं, बल्कि उसे अपने उज्ज्वल भविष्य के प्रवेश द्वार के रूप में भी देखते हैं।
ऐसे में दिव्यांगता और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को लेकर आ रहीं फर्जीवाड़े की शिकायतें चयन के अनुपात में भले ही बहुत कम हों, लेकिन चिंता का विषय हैं। चिंता की बात यह भी है कि देश की सबसे सम्मानित सेवा के चयन और प्रशिक्षण में ऐसी कौन सी खामियां हैं जो इन अधिकारियों में वैसा चरित्र निर्माण नहीं कर पा रहीं, जैसा सेना के प्रशिक्षुओं में देखने को मिलता है।
यूपीएससी के प्रयास चयन में सामाजिक विविधता लाने में तो कारगर रहे हैं, परंतु भ्रष्टाचार में संलिप्तता के चौंकाने वाले मामले दर्शाते हैं कि चयनित उम्मीदवारों की सत्यनिष्ठा परखने में भारी चूक हो रही है। यह तब है जब मुख्य परीक्षा में एक प्रश्न पत्र नैतिकता और सत्यनिष्ठा पर केंद्रित होता है।
प्रशासनिक अधिकारियों के भ्रष्टाचार की स्थिति कितनी खराब है, इसका पता 2021 में कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह द्वारा संसद में दिए एक जवाब से चलता है, जिसमें उन्होंने केवल वित्त वर्ष 2020-21 में आइएएस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की 581 शिकायतें मिलने की बात कही थी। इसके पूर्व दो वित्त वर्षों में आइएएस अधिकारियों के खिलाफ 753 और 643 शिकायतें प्राप्त हुई थीं। संभव है कि एक ही अधिकारी के खिलाफ एक से ज्यादा शिकायतें आई हों।
यह भी संभव है कि इनमें कई शिकायत झूठी एवं द्वेषपूर्ण हों, परंतु देश भर में आइएएस अधिकारियों की सीमित संख्या को देखते हुए इतनी अधिक शिकायतें गंभीर चिंता का विषय हैं। आइएएस में भ्रष्टाचार का मुख्य कारण राज्य की बहुमूल्य संपदा को वितरित करने की असीमित शक्तियां, सक्षम तृतीय पक्ष निगरानी का अभाव, नेताओं की उन पर अतिनिर्भरता और नौकरशाही एवं नेताओं की साठगांठ है।
कड़ी राजनीतिक इच्छाशक्ति और नौकरी के प्रति असुरक्षा के भाव से ही इस समस्या का समाधान संभव है, परंतु चयन और प्रशिक्षण से लेकर अपने सिंहावलोकन में भी सिविल सेवा को बड़े फेरबदल की जरूरत है।
जहां परीक्षा के प्रारूप में निरंतर बदलाव से प्रतिभावान अभ्यर्थियों के लिए अवसर बढ़ेंगे, वहीं अंक तालिका में एकतरफा रुझान बनाने वाले ‘वैकल्पिक’ विषयों को हटाकर सेवाओं में काम आने वाला उपयोगी पाठ्यक्रम वांछित प्रत्याशियों के चयन में उपयोगी होगा। इंटरव्यू में मनोविश्लेषक की भागीदारी अभ्यार्थियों के चरित्र को गहराई से समझने में सहायक होगी।
अच्छा तो यह हो कि आवेदन करने वाले परीक्षार्थी पहले निजी या सरकारी क्षेत्र में दो या पांच वर्ष का अनुभव लेकर आएं। इससे इन परीक्षार्थियों में परिपक्वता आएगी और जिस समाज की इन्हें सेवा करनी है, उसके प्रति संवेदनात्मक दृष्टिकोण भी बनेगा। साथ ही, आइएएस या समकक्ष सेवाओं को सही मायने में जनसेवकों का प्रारूप दिया जाए।
बंगला, गाड़ी और अर्दली, ड्राइवर जैसी सुविधाओं से बना ठाट-बाट अधिकारियों को अंग्रेजी राज वाला अभिजात्य दर्जा देता है। साथ ही समाज में वर्ग श्रेष्ठता का भाव खुद को आमजन के लिए बने कानूनों से ऊपर होने का भाव देता है। कोई आश्चर्य नहीं कि ऐसी मानसिकता के चलते भ्रष्टाचार सहजता से पनपता है।
(लेखक इंडिक अकादमी के सदस्य एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)