संघर्ष और जीवन एक दूसरे के पर्याय हैं। संघर्ष इस खूबसूरत जीवन का अभिन्न हिस्सा है। हम लोगों की सत्ता को तो देखते हैं, मगर उस सफलता को प्राप्त करने के लिए उन्होंने जो संघर्ष किया है, उसे जाने-अनजाने अनदेखा कर देते हैं। व्यक्ति जितना बड़ा बनता है, उसका संघर्ष भी उसके जीवन में उतना ही ज्यादा होता है। भगवान श्रीराम राजा के पुत्र थे, लेकिन उन्होंने चौदह साल वनवास में संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत किया और आज हम उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के नाम से जानते हैं व उन्हें पूजते भी हैं। यह उनके जीवन का संघर्ष ही था जिसने उन्हें उत्तम पुरुष बना दिया। गौतम बुद्ध भी राजा के लड़के थे। वह संघर्षरहित जीवन जी सकते थे, किंतु जीवन के वास्तविक व अंतिम सत्य को जानने के लिए उन्हें कड़ा संघर्ष करना पड़ा और अंतत: उन्होंने उस सात्विक सत्य को दुनिया के समक्ष रखा और भगवान का दर्जा प्राप्त किया। भगत सिंह ने देश को आजाद कराने का प्रण बचपन में ही कर लिया था और उन्होंने मरते दम तक संघर्ष को अपनाया।

दरअसल हर इंसान के जीवन में संघर्ष होता है। केवल उसके रूप अलग-अलग होते हैं। हमें संघर्ष से घबराना नहीं चाहिए। यह वह गहना है जो व्यक्ति को आंतरिक रूप से सुंदर और बलिष्ठ बनाता है। यह हममें त्याग और दूसरों के प्रति समर्पण की भावना पैदा करता है। संघर्ष जीवन की वह किताब है जिसके पन्ने कभी खत्म नहीं होते। यह वह शक्ति है जो आजीवन हमारी चेतना को जागृत करने का काम करती है। जीवन के मूल्यों से अवगत कराता है। जीवन में हर पल संघर्ष है। फर्क इतना है कि जो लोग मानसिक प्रबलता और ढृढ़ता के साथ इसका सामना करते हैं, वे जन संघर्ष पर विजय प्राप्त कर लेते हैं।

जो व्यक्ति संघर्ष करने से घबराता है, उससे दूर भागने की कोशिश करता है, संघर्ष उसके लिए एक बोझ की तरह प्रतीत होता है, जिसके कारण वह आंतरिक रूप से कमजोर होता जाता है और जीवन के पगपग पर असफलताओं से घिरता चला जाता है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि सफलता प्राप्त करने के बाद संघर्ष खत्म हो जाता है। केवल उसका स्वरूप बदल जाता है और उसका सामना करने की ज्यादा हिम्मत हममें आ जाती है। दुनिया में जो भी महान व्यक्ति हुए हैं, वे संघर्ष को बोझ नहीं समझते।

[ सौरभ पाठक ]