[संजय गुप्त]। भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नुपुर शर्मा का समर्थन करने वाले उदयपुर के कन्हैयालाल को बर्बर तरीके से मारने वाले जिहादी रियाज की फोटो राजस्थान भाजपा के एक नेता के साथ दिखने और जम्मू-कश्मीर में लश्कर के एक आतंकी तालिब के भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चे से जुड़े रहने को कांग्रेस ने जिस तरह तूल दिया, उसका औचित्य समझना कठिन है। कांग्रेस ने इन दोनों जिहादियों के भाजपा से कथित जुड़ाव का उल्लेख करके यह साबित करने की कोशिश की कि यह दल आतंकियों से मिला हुआ है।

यदि कांग्रेस इसी तरह की हास्यास्पद मानसिकता का प्रदर्शन करती रही तो उसकी बची-खुची साख बचना भी मुश्किल है। कांग्रेस भाजपा को आतंकवाद में लिप्त साबित करने के लिए कितनी बेचैन थी, इसे इससे समझा जा सकता है कि उसने इस विषय पर एक ही दिन 22 शहरों में प्रेस कांफ्रेंस की। कांग्रेस को जिसने भी इस तरह की प्रेस कांफ्रेंस करने का सुझाव दिया, उसके विवेक और बुद्धि पर तरस ही खाया जा सकता है, क्योंकि किसी के भी गले यह बात नहीं उतरने वाली कि कन्हैयालाल की बर्बर हत्या में भाजपा का हाथ है या फिर उसकी लश्कर आतंकियों से साठगांठ है।

इस मसले पर 22 शहरों में प्रेस कांफ्रेंस करने के पीछे यदि कांग्रेस का उद्देश्य भाजपा को आतंकवाद का समर्थक साबित करना और मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग में बढ़ती कट्टरता से मुंह मोडऩा था, जैसा कि प्रतीत भी हो रहा है, तो इसे तुष्टीकरण की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा।

यदि कांग्र्रेस उदयपुर और अमरावती की घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में मुस्लिम समाज के एक वर्ग में बढ़ती कट्टरता पर खुलकर कुछ नहीं कहना चाह रही थी, तो फिर उसे कम से कम यह शिगूफा छेडऩे से बचना चाहिए था कि भाजपा आतंकवाद को संरक्षण दे रही है। कांग्रेस ने इसी तरह का शिगूफा पुलवामा कांड के बाद भी छेड़ा था। तब उसने परोक्ष रूप से यह कहने की कोशिश की थी कि इस कांड में भाजपा का हाथ इसलिए हो सकता है, क्योंकि इसका राजनीतिक लाभ उसे ही मिलेगा।

इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि मुंबई हमले को किस तरह कुछ कांग्रेस नेताओं ने आरएसएस की साजिश बताने की कोशिश की थी। अपने ऐसे आचरण से कांग्रेस इस्लामी कट्टरता और जिहादी आतंक से मुंह मोड़ती ही दिखती है। क्या यह विचित्र नहीं कि कांग्रेस इस पर कुछ बोलने को तैयार नहीं कि झारखंड के मुस्लिम बहुल इलाकों में कई स्कूलों में प्रार्थना का तरीका बदलने के साथ रविवार के स्थान पर शुक्रवार को छुट्टी की जाने लगी। कांग्रेस बिहार के फुलवारी शरीफ में पीएफआइ के उन संदिग्ध आतंकियों की गिरफ्तारी पर भी मौन सा धारण किए हुए है, जो भारत को 2047 तक इस्लामी राष्ट्र बनाने की साजिश रच रहे थे।

कांग्रेस नेता अजमेर शरीफ के उन खादिमों की निंदा करने को भी तैयार नहीं दिख रहे, जिन्होंने अपने विषैले बयानों से माहौल खराब किया। कांग्र्रेस अपने रवैये से मुस्लिम समाज को मुख्यधारा में लाने में बाधक तो बन ही रही है, उसके बीच के कट्टरपंथी तत्वों को जाने-अनजाने बल भी प्रदान कर रही है।

भाजपा जहां खुद को मुसलमानों से जोडऩे की कोशिश करती दिख रही है, वहीं काग्रेस उसे उनका दुश्मन सिद्ध करने पर जोर दे रही है। यह गैर जिम्मेदाराना राजनीति ही है। कांग्रेस जैसा रवैया स्वयं को सेक्युलर कहने वाले अन्य विपक्षी दलों और कथित लिबरल बुद्धिजीवियों का भी है। वे एक अर्से से यह माहौल बनाने में जुटे हुए हैं कि भारत में मुसलमानों को सताया और दबाया जा रहा है।

इस तरह का दुष्प्रचार उन तत्वों का काम आसान करता है, जो मुसलमानों को बरगला और उकसाकर कट्टरपंथ के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं। यह महज दुर्योग नहीं हो सकता कि कांग्रेस और इस जैसे अन्य दल मुस्लिम सांप्रदायिकता के खिलाफ कुछ कहने के लिए मुश्किल से ही तैयार होते हैं। वे कभी स्कूलों में हिजाब पहनने की छूट देने की मुस्लिम संगठनों की मांग का समर्थन करते हैं और कभी लाउडस्पीकरों से अजान देने की जिद का।

यह किसी से छिपा नहीं कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ मुसलमानों को किस तरह बरगलाया और भड़काया गया। वास्तव में इसी कारण इस कानून के खिलाफ जो धरना-प्रदर्शन हुए, उस दौरान देश के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। इन धरना-प्रदर्शनों की कोई आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि इस कानून का भारत के किसी नागरिक से कोई लेना-देना ही नहीं।

कांग्रेस और अन्य कथित सेक्युलर दल मुसलमानों को एक वोट बैंक मानकर तुष्टीकरण की जो राजनीति कर रहे हैं, वह लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है, क्योंकि किसी विशेष समुदाय को हर तरह की छूट देने या इसकी वकालत करने से जहां बहुसंख्यक समाज खुद को उपेक्षित महूसस करता है, वहीं वह विशेष समुदाय छोटी-छोटी बातों पर उग्र होकर कानून हाथ में लेने पर उतर आता है।

दुर्भाग्य से कांग्रेस और अन्य दल आजादी के बाद से यही रवैया अपनाए हुए हैं। वे यह मानने को तैयार ही नहीं कि मुगलों के शासन में हिंदू अस्मिता को कुचला गया और हिंदुओं के उपासना स्थलों को नष्ट करके उन्हें अपमानित किया गया। इस अपमान का संज्ञान लेने के बजाय हिंदू समाज को यह संदेश देने का प्रयास होता रहा कि वह इस अपमान को भूल जाए।

इसे हिंदू समाज की वेदना की अनदेखी के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता। इस अनदेखी ने तो कई बार हिंदू विरोध का रूप ले लिया। यह किसी से छिपा नहीं कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की हिंदू समाज की आकांक्षा का कांग्र्रेस और अन्य तथाकथित सेक्युलर दलों ने किस तरह विरोध किया। यह सिलसिला अभी भी कायम है।

वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर और मथुरा के कृष्ण जन्म स्थान मंदिर में जबरन बनाई गईं मस्जिद और ईदगाह के मामले में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल हिंदू समाज की भावनाओं को महत्व देने के लिए तैयार नहीं। एक ओर ये दल हिंदू अस्मिता की अनदेखी करते हैं और दूसरी ओर इस पर हैरान भी होते हैं कि भाजपा लगातार बढ़त क्यों हासिल करती जा रही है?

यदि भाजपा देश की सबसे बड़ी और राजनीतिक दृष्टि से सबसे ताकतवर पार्टी बन गई है तो इसीलिए कि उसने हिंदू अस्मिता को अपनी आवाज दी और उसे यथोचित सम्मान देने की प्रतिबद्धता प्रदर्शित की। यदि कांग्रेस ने मुस्लिम समाज के तुष्टीकरण की अपनी राजनीति का परित्याग नहीं किया तो आने वाले समय में उसकी और अधिक दुर्दशा होना तय है।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]