जागरण संपादयकीय: कठघरे में अदाणी, बढ़ सकती हैं समूह की मुश्किलें
एक ऐसे समय जब यह अपेक्षा बढ़ रही है कि भारतीय कारोबारी देश के साथ दुनिया में भी अपना प्रभाव बढ़ाएं तब यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वे न केवल भारत में बल्कि विदेश में भी नियम-कानूनों के तहत काम करें। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो भारतीय कंपनियों का भी नाम खराब होगा ही और भारत का भी।
एक अमेरिकी अदालत ने जाने-माने कारोबारी गौतम अदाणी, उनके भतीजे सागर अदाणी और उनकी कंपनी अदाणी ग्रीन एनर्जी के कुछ अधिकारियों के खिलाफ भारत में सौर ऊर्जा आपूर्ति का अनुबंध हासिल करने के लिए दो हजार करोड़ रुपये से अधिक की रिश्वत देने और अमेरिकी निवेशकों को गुमराह करने के जो आरोप लगाए, वे सनसनीखेज तो हैं ही, अदाणी समूह की मुश्किल बढ़ाने वाले भी हैं। चूंकि आरोप गंभीर हैं, इसलिए केवल यही नहीं देखा जाना चाहिए कि अमेरिकी अदालत अंततः किस नतीजे पर पहुंचती है, बल्कि भारत में भी इन आरोपों की जांच होनी चाहिए। यह जांच न केवल नीर-क्षीर ढंग से होनी चाहिए, बल्कि ऐसा होते हुए दिखनी भी चाहिए।
हाल के समय में यह दूसरी बार है, जब अदाणी समूह किसी विवाद में फंसा और उसके चलते शेयर बाजार लड़खड़ाया। इसके पहले अमेरिकी शार्ट सेलिंग कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने अदाणी समूह पर शेयरों में हेराफेरी के आरोप लगाए थे, जिसके चलते उसे अच्छा-खासा नुकसान उठाना पड़ा था। अदाणी समूह इस नुकसान से उबरा ही था कि अमेरिकी अदालत की पहल ने उसे कठघरे में खड़ा कर दिया। इस कार्रवाई ने अदाणी समूह की साख पर बट्टा लगाने का ही काम नहीं किया, बल्कि यह गंभीर सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या भारत में राजनीतिक रसूख और रिश्वत के जरिये ठेके हासिल करना आसान है? दावा कुछ भी किया जाए, तथ्य यही है कि अपने देश में छोटे-बड़े कारोबारी समूह नेताओं और नौकरशाहों को अपने प्रभाव में लेकर मनचाहे सौदे करने में सफल रहते हैं। इस मामले में कोई भी राजनीतिक दल अपने दामन को पाक-साफ नहीं कह सकता।
एक ऐसे समय जब यह अपेक्षा बढ़ रही है कि भारतीय कारोबारी देश के साथ दुनिया में भी अपना प्रभाव बढ़ाएं, तब यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वे न केवल भारत में, बल्कि विदेश में भी नियम-कानूनों के तहत काम करें। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो भारतीय कंपनियों का भी नाम खराब होगा और भारत का भी। खतरा इसका भी है कि भारतीय कंपनियों को जानबूझकर निशाना बनाने और उन्हें बदनाम करने का सिलसिला कायम हो जाए। भारतीय कंपनियों की साख के साथ उनका अंतरराष्ट्रीय प्रभाव बढ़े, इसकी चिंता सरकार के साथ विपक्ष को भी करनी चाहिए। यह ठीक है कि कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दल अदाणी समूह के साथ मोदी सरकार के प्रति हमलावर हैं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कठघरे में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा की पिछली सरकारें भी हैं और तमिलनाडु की वर्तमान सरकार के साथ जम्मू-कश्मीर सरकार भी। इसमें संदेह नहीं कि गौतम अदाणी और उनके सहयोगियों पर लगे आरोप गंभीर हैं, लेकिन अभी इस नतीजे पर भी पहुंचने की हड़बड़ी नहीं दिखाई जानी चाहिए कि अमेरिकी अदालत ने जो कुछ कहा, वही अंतिम सत्य है। ध्यान रहे कि अभी तक पैसे के लेन-देन के कोई प्रमाण सामने नहीं आए हैं।