डा. मनसुख मांडविया। ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी एक ऐसा नाम है, जिससे शायद ही कोई अनभिज्ञ हो। यह बीमारी बहुत पुरानी है। पिछले 200 वर्षों में विश्व में संचारी रोगों से होने वाली मौतों में सबसे अधिक का कारण टीबी रहा है। अगर शोधकर्ताओं के दावों को मानें तो मिस्र की ममी में भी टीबी के लक्षण पाए गए थे। भारत की बात करें तो सुश्रुत संहिता में ‘यक्षमा’ और ‘बलासा’ रोगों का उल्लेख किया गया है। हमारे विशेषज्ञों का मानना है कि यह दोनों नाम टीबी के ही हैं। यजुर्वेद में भी टीबी जैसे रोग का जिक्र है और ऐसे चिह्नित लोगों को ऊंचाई वाले स्थान पर रहने की सलाह दी गई है। यह दर्शाता है कि टीबी हजारों साल पुरानी बीमारी है, जो जिंदगियों को लील रही है।

टीबी को खत्म करने के लिए मनुष्य जाति की लड़ाई भी पुरानी है, लेकिन अभी तक हम इस लड़ाई को जीतने में कामयाब नहीं हुए हैं। पिछले कई वर्षों से विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने टीबी को दुनिया से मिटाने के लिए कई देशों के साथ सामंजस्य स्थापित किया और राजनीतिक प्रतिबद्धता पर सहमति बनाई है। इसके अंतर्गत वर्ष 2030 तक टीबी उन्मूलन का अभियान चलाया जा रहा है। इसके अच्छे परिणाम भी मिलने लगे हैं। डब्ल्यूएचओ ने भले ही टीबी उन्मूलन के लिए 2030 तक का लक्ष्य रखा हो, लेकिन 14 मार्च 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने ‘टीबी हारेगा, देश जीतेगा’ के नारे के साथ भारत से वर्ष 2025 तक टीबी को मिटाने का अभियान आरंभ किया है। पूरा विश्व भारत की इस प्रतिबद्धता और उसे पूरा करने के लिए हो रहे प्रयासों की सराहना कर रहा है। कोविड महामारी के दौरान करीब तीन साल में टीबी उन्मूलन की इस लड़ाई में हमें परेशानी हुई और हमारा टीबी उन्मूलन कार्यक्रम गंभीर तरीके से पिछड़ गया। हमें यह तीन-चार वर्षों का काम एक साल में करना था। इसके लिए जब हमने मंथन किया तो हमें प्रधानमंत्री मोदी जी की दिखाई राह से इसका समाधान मिला। यह समाधान था-जनभागीदारी।

टीबी उन्मूलन के लिए भारत ने अपना माडल तय किया है-‘टेस्ट, ट्रेस, ट्रीट और टेक्नोलोजी।’ अब इनके साथ-साथ जनभागीदारी भी जुड़ गया है। भारत के इस माडल को आज पूरे विश्व से सराहना मिल रही है। जब मैंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का जिम्मा संभाला था तब 9 सितंबर, 2022 को हमने तय किया कि प्रधानमंत्री जी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में हम देश के लोगों को टीबी मिटाने में भागीदार बनाएंगे और उनसे आग्रह करेंगे कि वह निक्षय मित्र बनकर टीबी मरीज को गोद लें और ऐसे मरीजों को जल्दी से ठीक होने के लिए पोषण की सहायता प्रदान करें। साथ ही में उन्हें जरूरी परीक्षण और नौकरी देकर मदद करें। निक्षय मित्र से एक और अपेक्षा की गई कि वह गोद लिए गए मरीजों को दुलार कर उसे अहसास दिलाए कि वह जल्दी से ठीक होकर फिर से सामान्य जीवन जी सकते हैं और समाज का अभिन्न हिस्सा बन सकते हैं।

राष्ट्रपति जी द्वारा 9 सितंबर 2022 को निक्षय मित्र अभियान का शुभारंभ किया गया और देखते ही देखते 17 सितंबर, 2022 तक देश में करीब एक लाख निक्षय मित्र बन गए। जिन मरीजों ने गोद लेने के लिए अनुमति दी थी उन्हें गोद लिया गया। इनकी संख्या करीब दस लाख थी। उनके ठीक होने तक हर महीने पोषण किट उपलब्ध कराई जा रही है। निक्षय मित्र नियमित अंतराल पर उनका हाल-चाल पूछ कर उन्हें हर तरह की मदद मुहैया करा रहे हैं। ऐसे प्रयासों के चलते टीबी मुक्त भारत बनाने के हमारे संकल्प को बल मिला है। निक्षय मित्र के साथ-साथ माइक्रो लेवल पर काम करते हुए हमने टीबी मुक्त गांव की संकल्पना पर भी काम शुरू किया। इसके अंतर्गत करीब ढाई लाख गांव टीबी मुक्त हो चुके हैं। हमारे इस अभियान में नई दवाओं और आवश्यक परीक्षणों को भी मुफ्त में उपलब्ध कराया जा रहा है, ताकि वित्तीय पहलू उपचार में बाधा न बने।

डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी ‘ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2023’ में उल्लिखित है कि भारत ने अच्छे परिणाम हासिल किए हैं। टीबी के खिलाफ चल रही लड़ाई के हमारे प्रयासों की प्रशंसा इस रिपोर्ट में की गई है। रिपोर्ट के अनुसार 2015 के मुकाबले 2022 में भारत में टीबी के मरीजों में 16 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि इस दौरान विश्व में यह कमी 8.7 प्रतिशत रही। यह दर्शाता है कि भारत में दुनिया के मुकाबले दो गुना तेजी से टीबी के मरीज कम हो रहे हैं। 2021 में देश में टीबी से 4.94 लाख लोगों की जान गई थी, जबकि 2022 में टीबी से मरने वाले लोगों की संख्या 3.31 लाख रही। यह 34 प्रतिशत की कमी को दर्शाता है। रिपोर्ट के अनुसार कोविड महामारी के दौरान पूरे विश्व में टीबी की टेस्टिंग और स्कैनिंग में कमी आई थी, जबकि हमने 2022 से फिर कोविड पूर्व वाली स्थिति हासिल कर ली। यह हमारे लिए बहुत उत्साहवर्धक है।

विकसित भारत यात्रा जिन गांवों से गुजरी ऐसे ढाई लाख गांवों में स्वास्थ्य सुविधा कैंप लगाए गए। इन कैंपों में टीबी की जांच को प्राथमिकता दी गई। इस अभियान के माध्यम से हमने फिर से टीबी उन्मूलन कार्यक्रम की गति बढ़ाई है। भारत ने सभी टीबी मरीजों के ट्रीटमेंट और रिकवरी प्रोग्रेस की निगरानी के लिए निक्षय पोर्टल बनाया है। यह निक्षय पोर्टल एक ऐसा तकनीकी समाधान है, जिसके माध्यम से हम सभी मरीजों पर करीबी नजर रख सकते हैं। इस पोर्टल पर पंजीकृत मरीजों को निक्षय पोषण योजना से हर महीने आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। वर्ष 2018 में आरंभ किए गए इस आर्थिक सहयोग के अंतर्गत अभी तक करीब 2,613 करोड़ रुपये से ज्यादा की धनराशि वितरित की जा चुकी है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान निक्षय मित्र और हेल्थ कैंप के माध्यम से चलाए गए अभियान से भारत ने टीबी मिटाने की ओर बहुत तेजी से कदम बढ़ाए हैं। मुझे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री ने एक बहुत महत्वाकांक्षी संकल्प रखते हुए 2025 तक टीबी मिटाने का जो सपना देखा है, वह जनभागीदारी से हम अवश्य पूरा करेंगे। अंततः टीबी हारेगा, देश जीतेगा।

(लेखक केंद्रीय श्रम एवं रोजगार और युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्री हैं)